महाविकास अघाड़ी की सरकार के ढाई साल पूरे हो गए थे और गठबंधन की ये सरकार ठीक-ठाक चल रही थी लेकिन अचानक आई एक खबर ने पूरी सरकार को डीरेल कर दिया। शिवसेना के एक नेता एकनाथ शिंदे ने अचानक गठबंधन की बंधन से आजाद होने का एलान कर दिया और पार्टी के 40 से ज्यादा विधायकों को उद्धव ठाकरे की नाक के नीचे से ले उड़े। जिस वक्त सीएम उद्धव ठाकरे सीएम हाउस वर्षा में चैन की नींद सो रहे थे उसी वक्त एकनाथ शिंदे महाराष्ट्र की राजनीति में पासा पलटने की तैयारी कर रहे थे। सुबह हुई तो महाराष्ट्र की सियासत में भूचाल आ गया। शिवसेना के 55 में से 34 विधायक राज्य छोड़ कर जा चुके थे, यानी खेल हो चुका था।
ताजा हालात ऐसे हैं कि शिवसेना के कर्ताधर्ता उद्धव ठाकरे दोहरी चुनौती का सामना कर रहे हैं, एक तरफ कुआं है तो दूसरी तरफ खाईं। सरकार तो खतरे में है ही लेकिन शिवसेना को कैसे बचाया जाए, यह भी एक बड़ा सवाल बन चुका है क्योंकि एकनाथ शिंदे ने सरकार को तो अल्पमत में डाल ही दिया है साथ ही साथ शिवसेना पर भी दावेदारी ठोक रहे हैं।
क्यों बागी हुए शिवसेना के विधायक?
क्या शिवसेना के कद्दावर नेता एकनाथ शिंदे रातों-रात बागी हो गए? क्या पार्टी में इतनी बड़ी टूट एक रात की कहानी है? बागी विधायकों की बात से ये कहानी पुरानी लगती है। एकनाथ शिंदे के साथ गए विधायकों ने जो खुलासा एक खत के जरिए किया है उससे साफ होता है कि पार्टी में नेतृत्व और विश्वास की कमी दिनों दिन बढ़ती जा रही थी और आरोप ये भी है कि बार बार इस ओर ध्यान दिलाने के बाद भी उद्धव ठाकरे ने इस गंभीर मामले को तवज्जो देना जरुरी नहीं समझा। शिवसेना विधायक संजय शिरसाट की मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे को लिखी चिट्ठी काफी चर्चा में है। चिट्ठी की भाषा से लग रहा है कि शिवसेना में बगावत का सबसे बड़ा कारण उद्धव ठाकरे का कांग्रेस और NCP के करीब आना रहा है।
चिट्ठी में क्या लिखा है?
शिरसाट ने चिट्ठी में लिखा है कि वर्षा बंगले को खाली करते समय आम लोगों की भीड़ देखकर उन्हें खुशी हुई, लेकिन पिछले ढाई सालों से इस बंगले के दरवाजे बंद थे। उन्होंने लिखा है, ‘हमें आपके (उद्धव के) आसपास रहने वाले, और सीधे जनता से न चुनकर विधान परिषद और राज्यसभा से आने वाले लोगों का, आपके बंगले में जाने के लिए मान-मनौव्वल करना पड़ता था। ऐसे स्वघोषित चाणक्य के चलते राज्यसभा और विधान परिषद चुनाव में क्या हुआ यह सबको पता है। हम पार्टी के विधायक थे, लेकिन हमें विधायक होकर भी कभी बंगले में सीधे प्रवेश नहीं मिला। छठी मंजिल पर मंत्रालय के दफ्तर में सीएम सबको मिलते थे, लेकिन हमारे लिए कभी यह प्रश्न नहीं आया क्योंकि आप कभी मंत्रालय ही नहीं गए। आम लोगों के कामों के लिए हमें घंटों बंगले के गेट के बाहर खड़ा रहना पड़ता था। फोन करने पर उठाया नहीं जाता था, अंदर एंट्री नहीं होती थी, और आखिर में हम थककर चले जाते थे। 3 से 4 लाख लोगों के बीच से चुनकर आने वाले विधायक का ऐसा अपमान क्यों किया जाता था? यह हमारा सवाल है, यही हाल हम सारे विधायकों का है। आपके आसपास के लोगों ने कभी हमारी व्यथा नहीं सुनी। आपके पास पहुंचने का कभी मौका नहीं दिया गया। उसी समय हमें एकनाथ शिंदे जी का साथ मिला। शिंदे ने हमारे क्षेत्र की हर समस्या सुनी, चाहे वह फंड की हो या जनता की, और उसका समाधान निकाला। एनसीपी कांग्रेस से जो समस्याएं हो रही थीं, शिंदे उसे भी सुनते थे, हल करते थे। विधायकों के हक के लिए हमने शिंदे साहब का साथ दिया।’
महाराष्ट्र की सियासत में आगे क्या होगा?
एकनाथ और बागी विधायकों के तेवर से ये तो साफ है कि शिवसेना में वापसी का विचार इन विधायकों ने छोड़ दिया है और एकनाथ शिंदे के साथ किसी भी परिस्थिति में रहने को तैयार हैं। आज एक वीडियो सामने आया जिसमें एकनाथ शिंदे विधायकों के साथ बैठक करते नजर आ रहे हैं और विधायकों से कह रहे हैं कि 'आप लोगों को डरने की जरुरत नहीं है। हमारे पीछे बहुत बड़ी महाशक्ति है जो हमारे साथ है। हम मुकाबला करेंगे और जीत हासिल करेंगे।' मौजूदा परिस्थिति में उद्धव सरकार अल्पमत में है और अगर फ्लोर टेस्ट होता है तो सरकार गिरनी तय है तो वहीं दूसरी तरफ शिवसेना और NCP, कांग्रेस मिलकर एक नई रणनीति पर काम कर रहे हैं जिसमें एकनाथ शिंदे और बागी विधायकों को मुंबई वापस आने का दबाव बनाया जा रहा है। इसके पीछे की रणनीति ये है कि जो संख्या इस वक्त शिंदे के साथ है उसमें से कुछ विधायकों पर दबाव बना कर उसे अपने पाले में किया जाए जिससे कि एकनाथ शिंदे के पास मौजूदा बागी विधायकों की संख्या कम हो जाए और दलबदल कानून के तहत शिंदे के साथ गए विधायकों को बर्खास्त कर दिया जाए। इसलिए महाविकास अघाड़ी के तीनों घटक दल एक सुर में कह रहे हैं कि बागी विधायकों को मुंबई वापस आकर बात करनी चाहिए। एकनाथ शिंदे अब इस चुनौती का सामना कैसे करेंगे और अगर फ्लोर टेस्ट होता है तो विधायकों को एकजुट कैसे रखेंगे, ये देखना दिलचस्प होगा।
डिसक्लेमर : ऊपर व्यक्त विचार लेखक के अपने हैं