Highlights
- तीन बार यूपी के मुख्यमंत्री रहे मुलायम सिंह यादव
- मुलायम सिंह यादव ने यूपी में खड़ा किया यादव-मुस्लिम का अटूट गठजोड़
- देवगौड़ा सरकार में पहली बार बने देश के रक्षामंत्री
Mulayam Singh Yadav:मुलायम सिंह यादव भले ही अब इस दुनिया में नहीं हैं, लेकिन उनकी राजनीति में कई ऐसे उतार चढ़ाव आए, जिसने उनकी पूरी छवि ही बदल डाली। वर्ष 1989 में वह पहली बार यूपी के मुख्यमंत्री बने। तब तक समाजवादी पार्टी का गठन नहीं हुआ था। तब मुलायम सिंह यादव ने लोकदल(ब) का जनता दल में विलय कर लिया था और पहली बार में ही मुख्यमंत्री बन गए। मगर इस दौरान उनके मत्थे पर ऐसा खूनी कलंक लगा कि जो कभी धुल नहीं सका, लेकिन इससे यूपी में मुस्लिम-यादव का नया गठजोड़ तैयार हो गया, जिसने मुलायम को कई बार मुख्यमंत्री बनवाया।
अपने नाम के मुताबिक मुलायम सिंह यादव उर्फ नेताजी काफी सरल और सौम्य स्वभाव के राजनेता थे। वह अपने कार्यकर्ताओं को नाम से बुलाते थे। सभी वर्गों में उनकी मजबूत पकड़ थी। वह जनता से बेहद मिलनसार थे। विरोधी दलों में भी वह सम्मान के नजरिये से देखे जाते थे। लोग उन्हें उनके नाम की तरह ही मुलायम होने की बात भी कहा करते थे। मगर उनकी जिंदगी में एक दौर ऐसा आया, जिसने कि उन्हें सबसे ज्यादा कठोर बना दिया।
कार सेवकों पर गोली चलवाकर दिया कठोरता का परिचय
अभी तक मुलायम सिंह अपने नाम के मुताबिक मुलायम ही रहा करते थे। मगर जब वह वर्ष 1989 में पहली बार उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने थे तो इसी दौरान राम जन्मभूमि आंदोलन ने तेजी पकड़ ली। इसके बाद देश और प्रदेश की राजनीति इसी मुद्दे पर आकर केंद्रित हो गई। देखते ही देखते अयोध्या में कारसेवकों का जमावड़ा लग गया। कार सेवकों की भीड़ बाबरी मस्जिद को तहत-नहस कर देने के लिए उतावली हो गई। उग्र कारसेवक तेजी से बाबरी मस्जिद की ओर 30 अक्टूबर 1990 को कूच करने लगे। इसके बाद उन्होंने उन कारसेवकों पर गोली चलाने का आदेश दे दिया। इसमें कई कार सेवक मारे गए। इसके बाद एक नवंबर और दो नवंबर 1990 को भी कार सेवकों ने बाबरी मस्जिद को तोड़ने का प्रयास किया, लेकिन तत्कालीन सीएम मुलायम सिंह यादव ने फिर गोली चलवा दी। इसें कई कार सेवकों की जान चली गई। कोठारी बंधुओं की भी इसी हमले में मौत हो गई। इस प्रकार मुलायम सिंह पहली बार इतने कठोर कहलाए।
हिंदू विरोधी छवि ने यूपी में दिया यादव-मुस्लिम गठजोड़ को जन्म
कार सेवकों पर गोलियां चलवाने के बाद मुलायम सिंह यादव की छवि हिंदू और श्रीराम विरोधी हो गई। क्योंकि उन्होंने बाबरी मस्जिद के लिए बिना संकोच किए निहत्थे कार सेवकों पर गोलियों की बरसात करा दी। इससे उन्मादा भीड़ को पीछे हटना पड़ा और बाबरी मस्जिद विध्वंस होने से बच गई। इसके बाद हिंदूवादी संगठनों और हिंदुओं ने उन्हें ...मुल्ला- मुलायम... भी कहना शुरू कर दिया। वह जून 1991 तक यूपी के सीएम रहे। मुसलमानों को मुलायम सिंह के रूप में एक नया मसीहा मिल गया। इसने यूपी की राजनीति में यादव-मुस्लिम के नए गठजोड़ को जन्म दिया। व इससे उत्साहित मुलायम सिंह यादव ने बाद में वर्ष 04 अक्टूबर 1992 में समाजवादी पार्टी का गठन कर लिया। तब से मुस्लिम-यादव गठजोड़ के चलते कई बार मुलायम सिंह यादव यूपी के मुख्यमंत्री बनने में कामयाब रहे। वर्ष 2012 में सपा को पूर्ण बहुमत मिला, लेकिन तब उन्होंने अपने युवा बेटे अखिलेश यादव को मुख्यमंत्री बनवा दिया।
बाबरी विध्वंस के बाद फिर सीएम बने मुलायम
छह दिसंबर वर्ष 1992 को कारसेवकों की भीड़ पुनः अयोध्या में जमा हो गई। उस दौरान भाजपा नेता कल्याण सिंह उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री थे। मगर उन्होंने भीड़ को रोकने का प्रयास नहीं किया। इसके बाद बाबरी मस्जिद को उन्मादित कार सेवकों की भीड़ ने ढहा दिया। इसके बाद कल्याण सिंह बड़े हिंदुत्ववादी नेता के तौर पर उभरे। उन्होंने इस विध्वंस की जिम्मेदारी भी अपने सिर ले ली और उन्होंने मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया। इसके बाद वर्ष 1993 में मुलायम सिंह यादव बसपा के समर्थन से दोबारा यूपी के सीएम बन गए। हालांकि यह गठबंधन ज्यादा दिन नहीं चला और बसपा ने अपना समर्थन वापस लेकर उनकी सरकार को गिरा दिया।
1996 से राष्ट्रीय राजनीति में बढ़ाई सक्रियता
मुख्यमंत्री पद से हटने के बाद मुलायम सिंह यादव ने राष्ट्रीय राजनीति की ओर अपना कदम आगे बढ़ाया। 1996 में उन्होंने पहली बार मैनपुरी से लोकसभा का चुनाव जीता और संसद पहुंच गए। इसके बाद वह तीसरे मोर्चे के प्रधानमंत्री देवगौड़ा की सरकार में रक्षा मंत्री भी बनाए गए।सुखोई लड़ाकू विमानों का सौदा मुलायम सिंह यादव के रक्षामंत्री रहने के दौरान ही हुआ। हालांकि इसके बाद वह 2003 में फिर से यूपी के तीसरी बार सीएम बने। इसके बाद फिर वह कभी मुख्यमंत्री नहीं हुए। हालांकि 2012 में उन्हें एक बार फिर यह मौका मिला था, लेकिन उन्होंने बेटे अखिलेश को आगे बढ़ा दिया।
मुलायम के हटते ही टूट गई सपा
अखिलेश यादव के हाथ में सत्ता और समाजवादी पार्टी की कमान जाते ही आपसी खींचतान शुरू हो गई। इसके बाद पार्टी में बिखराव शुरू हो गया। मुलायम सिंह के भाई शिवपाल यादव और अखिलेश यादव में भी ठन गई। पार्टी के कई नेता इधर-उधर हो गए। इसके बाद अखिलेश यादव स्वयं पार्टी के अध्यक्ष बन गए। मुलायम सिंह यादव संरक्षक की भूमिका में आ गए। हालांकि उन्होंने इसके बाद कई बार पार्टी को जोड़ने की कोशिश की। वह 2022 के लोकसभा चुनाव में इस दौरान काफी कामयाब भी हुए। अखिलेश और शिवपाल ने तब मिलकर चुनाव लड़ा, लेकिन विपक्ष बनकर ही सपा को संतोष करना पड़ा। 2012 के बाद सपा कभी दोबारा यूपी की सत्ता में वापस नहीं आ सकी। योगी आदित्यनाथ ने 2017 और 2022 के चुनाव में लगातार जीत दर्ज की और सीएम बने।