सुप्रीम कोर्ट ने अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति में कोटे में कोटे को मंजूरी दी है। इस बारे में कोर्ट का कहना है कि ये असमानता के खिलाफ नहीं है। सुप्रीम कोर्ट के सात जजों की पीठ ने कहा कि राज्य सरकार अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों में सब कैटेगरी बना सकती हैं, जिससे मूल और जरूरतमंद कैटेगरी को आरक्षण का अधिक फायदा मिलेगा। कोर्ट के इस फैसले का भाजपा और जदयू ने स्वागत किया है लेकिन एनडीए के सहयोगी लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) के नेता चिराग पासवान इस फेसले से खुश नहीं हैं। उन्होंने कहा है कि उनकी पार्टी इस फैसले के खिलाफ अपील करेगी।
चिराग पासवान ने कहा है कि सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले जिसमें अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षण के भीतर आरक्षण के फैसले से वह सहमत नहीं हैं और वे इस अनुमति देने वाले सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ अपील करेंगे।
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चिराग की पार्टी सुप्रीम कोर्ट में करेगी अपील
पीटीआई के मुताबिक एक प्रेस कॉन्फ्रेंस को संबोधित करते हुए चिराग पासवान ने कहा कि वह जाति जनगणना के पक्ष में हैं, जिसके लिए विपक्ष के नेता राहुल गांधी जोरदार मांग कर रहे हैं, हालांकि उनका यह भी मानना है कि इसके परिणामों को सार्वजनिक नहीं किया जाना चाहिए। चिराग ने कहा कि हमारी पार्टी सुप्रीम कोर्ट से 15 प्रतिशत एससी कोटे के भीतर क्रीमी लेयर की अनुमति देने वाले अपने हालिया फैसले की समीक्षा करने का अनुरोध करते हुए अपील करेगी।
चिराग ने कहा कि SC-ST कोटे में क्रीमी लेयर की अनुमति नहीं दी जा सकती. एससी कोटे के भीतर क्रीमी लेयर की अनुमति देने से सामाजिक रूप से हाशिए पर पड़े वर्ग का उत्थान नहीं होगा, जो छुआछूत की प्रथा का शिकार रहा है। शनिवार को एक संवाददाता सम्मेलन को संबोधित करते हुए, लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) प्रमुख ने तर्क दिया कि अनुसूचित जातियों के वर्गीकरण का मुख्य आधार अस्पृश्यता है, जिसका उल्लेख सुप्रीम कोर्ट के आदेश में कहीं भी नहीं किया गया है।
चिराग पासवान ने साफ कहा कि...
"सुप्रीम कोर्ट ने उप-वर्गीकरण पर एक फैसला दिया है और मैं ऐसा कुछ भी नहीं कहना चाहता जिसे अदालत की अवमानना के रूप में देखा जा सके, लेकिन हमें निश्चित रूप से आपत्ति है। लोकशक्ति पार्टी (रामविलास) इस मामले में सुप्रीम कोर्ट में समीक्षा याचिका दायर करेगी।" मैं यह स्पष्ट कर दूं कि जब एससी की बात आती है, तो इन सभी जातियों को अस्पृश्यता को आधार बनाकर अनुसूचित श्रेणी में जोड़ा गया है।
उन्होंने तर्क दिया, "तो आरक्षण के भीतर आरक्षण की अवधारणा अनुसूचित जाति पर लागू नहीं हो सकती... क्रीमी लेयर कभी भी अनुसूचित जाति पर लागू नहीं हो सकती क्योंकि इसका आधार अस्पृश्यता है। लेकिन सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणियों में अस्पृश्यता का उल्लेख तक नहीं है। आज भी हमें ऐसा दलित देखने को मिलता है जिस दूल्हे को घोड़े पर चढ़ने से रोका जा रहा है, यहां तक कि अच्छे परिवारों से आने वाले शिक्षित अनुसूचित जाति के लोगों को भी अस्पृश्यता का सामना करना पड़ता है।''