मुंबई: दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने बुधवार को कहा कि शिवसेना (यूबीटी) के नेता उद्धव ठाकरे ने राजधानी में सेवाओं के नियंत्रण से जुड़े केंद्र के अध्यादेश के खिलाफ उनका साथ देने का भरोसा दिया है। आम आदमी पार्टी के नेता केजरीवाल ने महाराष्ट्र से पूर्व मुख्यमंत्री से उनके आवास पर मुलाकात के बाद एक प्रेस कॉन्फ्रेंस को संबोधित करते हुए कहा कि उद्धव ठाकरे ने हमें अपने परिवार का सदस्य बना लिया है, और हम जीवन भर दोस्ती का ये रिस्ता निभाएंगे। उन्होंने कहा कि मोदी सरकार ने हमसे हमारी सारी शक्तियां छीन ली हैं।
‘शिवसेना हमारा समर्थन करेगी’
केजरीवाल ने कहा, 'जनतंत्र में जनता की चलनी चाहिए या गवर्नर की? मतलब ये कह रहे हैं कि हम कोर्ट की बात नहीं मानते हैं। कोर्ट ने जो फैसला दिया है वह लोकतंत्र के हित में है, लेकिन सरकार इसके खिलाफ अध्यादेश लेकर आई है। इनके लोग पूर्व जजों को गालियां देते हैं, ऐसे कैसे देश चलेगा। सबसे बड़ी पीड़ित शिवसेना है जिसकी चुनी हुई सरकार गिरा दी गई। इन्होंने दिल्ली में ऑपरेशन लोटस किया लेकिन हमारे विधायक नहीं टूटे। बहुत अहंकार हो गया है इनको। शिवसेना ने हमें भरोसा दिलाया है कि जब यह बिल आएगा तब वह हमारा समर्थन करेगी।'
संजय सिंह और राघव चड्ढा भी थे साथ
वहीं, उद्धव ठाकरे ने इस मौके पर कहा कि हम उन लोगों को हराने के लिए एक साथ आए हैं, जो लोकतंत्र के खिलाफ हैं। बता दें कि उद्धव से मुलाकात के दौरान पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान, AAP के राज्यसभा सदस्य संजय सिंह और राघव चड्ढा तथा दिल्ली सरकार में मंत्री आतिशी भी केजरीवाल के साथ थीं। राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में सेवाओं के नियंत्रण से जुड़े केंद्र के अध्यादेश के खिलाफ विपक्षी दलों का समर्थन जुटाने के लिए देशभर की यात्रा के तहत केजरीवाल और मान ने मंगलवार को कोलकाता में पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी से मुलाकात की थी।
क्या है केंद्र सरकार के अध्यादेश में?
केंद्र सरकार भारतीय प्रशासनिक सेवा (आईएएस) और दानिक्स कैडर के अधिकारियों के तबादले और उनके खिलाफ प्रशासनिक कार्यवाही के लिए राष्ट्रीय राजधानी लोक सेवा प्राधिकरण गठित करने के वास्ते 19 मई को एक अध्यादेश लेकर आई थी। इससे एक हफ्ते पहले ही उच्चतम न्यायालय ने पुलिस, लोक सेवा और भूमि से संबंधित विषयों को छोड़कर बाकी सभी मामलों में सेवाओं का नियंत्रण दिल्ली की चुनी हुई सरकार को सौंप दिया था। किसी अध्यादेश को छह महीने के भीतर संसद की मंजूरी मिलना आवश्यक होता है। माना जा रहा है कि केंद्र सरकार संसद के मानसून सत्र में इस अध्यादेश से संबंधित विधेयक पेश कर सकती है।