नई दिल्ली: राजस्थान के राज्यपाल कलराज मिश्र ने आज INDIA TV से Exclusive बातचीत की। इस दौरान उन्होंने राम मंदिर आंदोलन की पूरी इनसाइड स्टोरी बताई। कलराज मिश्र ने बताया कि किस तरह से राम मंदिर आंदोलन के लिए माहौल बना और किस तरह से राम मंदिर के निर्माण के लिए बलिदान दिए गए। INDIA TV से बात करते हुए कलराज मिश्र ने कहा कि आज पूरा देश आनंदित है, क्योंकि पूरे देश को ऐसा लग रहा है कि भगवान राम अयोध्या वापस आ रहे हैं। 22 जनवरी को भगवान राम की प्राण प्रतिष्ठा उसी गर्भगृह में होगी जहां बाबरी ढांचा था।
संत महात्माओं ने लिया मंदिर बनवाने का निर्णय
कलराज मिश्र ने कहा कि आज 500 वर्ष हो गए जब बाबर ने मंदिर को ध्वस्त किया था। इसके बाद समय-समय पर लोगों ने राम मंदिर बनाने के लिए आंदोलन किया, लाखों लोगों ने इस मंदिर के लिए बलि दी। जब मैं आरएसएस का कार्यकर्ता था तब से लेकर भारतीय जनसंघ में आने तक मैं इसके लिए कार्य करता रहा। उन्होंने कहा कि आंदोलन का अवसर तब आया जब सभी संत महात्माओं ने निर्णय लिया कि भगवान राम के गर्भगृह के स्थान पर हम मंदिर बनवाएंगे। उस समय संत लगातार आवाज उठाते थे और आंदोलन करते थे, लेकिन सरकार उनकी मांगों को नहीं सुनती थी।
30 अक्टूबर को दर्शन का लिया गया निर्णय
कलराज मिश्र ने बताया कि जब न्यायालय के आदेश पर ताला खुला तो उस समय राजीव गांधी प्रधानमंत्री थे। लोग उस समय आशान्वित थे कि जल्द ही मंदिर का निर्माण हो जाएगा, लेकिन सरकार विलंब करती रही और मामला वहीं रह गया। उस समय शिलान्यास भी किया गया, लेकिन जब मामला आगे नहीं बढ़ा तो आंदोलन की योजना बनानी पड़ी। इसी क्रम में तय हुआ कि 30 अक्टूबर को हम जाएंगे और रामलला के दर्शन करेंगे। उस समय प्रदेश में समाजवादी पार्टी और मुलायम सिंह यादव की सरकार थी। सरकार ने राम भक्तों को चुनौती दी कि यहां से कोई परिंदा भी पर नहीं मार सकता है।
देश भर से पैदल अयोध्या आए लोग
देश के कोने-कोने से लोग अयोध्या के आस-पास के जिलों में पैदल आए थे। यहां पर 30 अक्टूबर के दिन साफ नियत के साथ लोग प्रदर्शन कर रहे थे, हिंसा की कोई संभावना नहीं थी, लेकिन दुर्भाग्य से किसी ने एक पत्थर उठाकर अशोक सिंघल जी को मारा। सिंघल जी के सिर से खून बहने लगा तो और भी लोग आए। इस पर सरकार ने गोलियां चलवा दीं। इसके बाद कई लोग उसमें मर गए, इसका आंकड़ा भी नहीं है। बिकानेर से गए कोठारी बंधुओं की हत्या की गई। लोगों ने बताया कि बहुत सारी लाशें सरयू में बहा दी गईं। इस वातावरण के कारण लोगों में आक्रोश हो गया। गोली चलने के बाद आंदोलन की गति और भी बढ़ गई।
6 दिसंबर के दिन गिराया गया ढांचा
आंदोलन समिति ने निर्णय लिया कि 6 दिसंबर को हम आएंगे और कारसेवा करेंगे। प्रधानमंत्री नरसिंहा राव से भी कहा गया कि जो जमीन मंदिर के नाम पर सुरक्षित है वहां कारसेवा की जाएगी। फिर 6 दिसंबर के दिन राम भक्तों का एक भीषण स्वरूप बना। मेरी जानकारी के आधार पर कोई इस प्रकार की योजना नहीं थी, जिसमें ढांटा गिराए जाने की बात हो, लेकिन आक्रोश ऐसा था कि वहां जाकर लोगों ने तय किया कि हमें तो कुछ करना है। फिर एक तरफ मंच पर भाषण चल रहे थे, इसी बीच 10 या 11 बजे के आसपास लोगों ने बैरियर को तोड़ दिया और आगे बढ़ गए। और फिर लोगों ने ढांचे को गिरा दिया।
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