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President Election: धर्म संकट में फंसी झामुमो, पहला आदिवासी राष्ट्रपति बनाने में योगदान दे या गठबंधन के साथ चले

President Election: राष्ट्रपति चुनाव में NDA उम्मीदवार के तौर पर द्रौपदी मुर्मू के नाम की घोषणा पर झारखंड मुक्ति मोर्चा पार्टी के सामने बहुत बड़ी दुविधा खड़ी हो गई है। अब ऐसे में पार्टी का क्या रूख होगा। झामूमो दलित राष्ट्रपति के रूप में NDA उम्मीदवार का समर्थन करेगा या विपक्ष के संयुक्त उम्मीदवार सिन्हा के साथ जाएगा।

Written by: Pankaj Yadav @ThePankajY
Published : June 22, 2022 18:16 IST
JMM Stand on President Election
JMM Stand on President Election 

Highlights

  • राष्ट्रपति चुनाव में NDA की उम्मीदवार के रूप में द्रौपदी मुर्मू के नाम पर लगी मुहर
  • आदिवासी समाज के के लोग खुश लेकिन मुर्मू की उम्मीदवारी ने झामुमो को दुविधा में डाला
  • संयुक्त विपक्ष के उम्मीदवार यशवंत सिन्हा का भी झारखंड से गहरा नाता रहा है

President Election: राष्ट्रपति चुनाव में NDA की तरफ से उम्मीदवार के रूप में आदिवासी नेता द्रौपदी मुर्मू के नाम की घोषणा ने झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) के लिए दुविधा खड़ी कर दी है। झामुमो के सामने यह बहुत बड़ी चुनौती है कि वह देश को पहला आदिवासी राष्ट्रपति देने में अपना योगदान दे या फिर गठबंधन धर्म का पालन करे। वर्तमान में पृथक झारखंड राज्य आंदोलन में अग्रणी भूमिका निभाने वाला तथा आदिवासी अस्मिता हितैषी राजनीति करने वाला झामुमो राज्य सरकार का नेतृत्व कर रहा है। झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की अगुवाई वाली इस सरकार को कांग्रेस और राष्ट्रीय जनता दल (राजद) का समर्थन हासिल है। मुर्मू की उम्मीदवारी की घोषणा के कुछ समय बाद ही आदिवासी बहुल राज्य ओड़िशा की सत्ताधारी बीजू जनता दल (बीजद) ने उन्हें समर्थन देने की घोषणा कर दी। लेकिन अभी तक इस बारे में झामुमो की कोई स्पष्ट राय नहीं आई है कि वह दलित राष्ट्रपति के रूप में NDA उम्मीदवार का समर्थन करेगा या विपक्ष के संयुक्त उम्मीदवार सिन्हा के साथ जाएगा। 

क्या है झामूमो का स्टैंड

लोकसभा में झामुमो के एकमात्र सांसद विजय कुमर हंसदक ने बताया कि राष्ट्रपति चुनाव पर पार्टी का जो भी रुख होगा, उससे जल्द ही सभी को अवगत करा दिया जाएगा। यह पूछे जाने पर कि क्या मुर्मू की उम्मीदवारी ने झामुमो के लिए दुविधा वाली स्थिति पैदा कर दी है, उन्होंने कहा कि पार्टी के लिए दुविधा वाली स्थिति क्यों होगी? पार्टी फोरम पर इस बारे में चर्चा होना अभी बाकी है। हालांकि उन्होंने NDA का उम्मीदवार घोषित किए जाने के लिए द्रौपदी मूर्मू को बधाई दी और कहा कि इस घोषणा से बिल्कुल हमारे समाज के लोग खुश हैं। इस बात को हम खुशी-खुशी स्वीकार भी करते हैं लेकिन जहां तक पार्टी की बात है तो कोई भी निर्णय लेने से पहले उस बारे में पार्टी में चर्चा होती है। भाजपा ने कल ही अपने उम्मीदवार की घोषणा की है। कुछ समय इंतजार कर लीजिए। चर्चा के बाद आपको बता दिया जाएगा। 

झारखंड में आदिवासियों का वोट बैंक

राजमहल झारखंड का सुरक्षित लोकसभा क्षेत्र है और शुरू से ही यह संताल राजनीति का केंद्र रहा है। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक इस संसदीय क्षेत्र में 37 प्रतिशत आबादी आदिवासी, जिनमें अधिकांश संताल हैं। इसकी छह में से चार विधानसभा सीटें भी आरक्षित हैं। साल 2011 की जनगणना के अनुसार झारखंड की आबादी में आदिवासियों का हिस्सा 26.2 प्रतिशत है। संताल यहां सबसे अधिक आबादी वाली अनुसूचित जनजाति है। आधिकारिक आंकड़ों के मुताबिक यहां की कुल आदिवासी आबादी में करीब 31 प्रतिशत संताल है। अन्य में मुंडा, ओरांव, खरिया, गोड कोल कंवार इत्यादी शामिल हैं। 

जानें कौन हैं द्रौपदी मूर्मू

Draupdi Murmu

Image Source : PTI/FILE
Draupdi Murmu

द्रौपदी मुर्मू  का जन्म 20 जून 1958 को ओडिशा में एक साधारण संथाल आदिवासी परिवार में हुआ था। द्रौपदी मूर्मू मूल रूप से ओड़िशा के मयूरभंज जिले की हैं और वह आदिवासी समुदाय संताल (संथाल) से ताल्लुक रखती हैं। झारखंड के राज्यपाल के रूप में उनका कार्यकाल भी निर्विवाद रहा है। उन्होंने 1997 में अपने राजनीतिक जीवन की शुरुआत की थी।  वह 1997 में ओडिशा के रायरंगपुर में जिला बोर्ड की पार्षद चुनी गई थीं। राजनीति में आने के पहले वह श्री अरविंदो इंटीग्रल एजुकेशन एंड रिसर्च, रायरंगपुर में मानद सहायक शिक्षक और सिंचाई विभाग में कनिष्ठ सहायक के रूप में काम कर चुकी थीं। वह उड़ीसा में दो बार विधायक रह चुकी हैं और उन्हें नवीन पटनायक सरकार में मंत्री पद पर भी काम करने का मौका मिला था। उस समय बीजू जनता दल और बीजेपी के गठबंधन की सरकार थी। ओडिशा विधानसभा ने द्रौपदी मुर्मू को सर्वश्रेष्ठ विधायक के लिए नीलकंठ पुरस्कार से भी नवाजा था। 

राज्यपाल के तौर पर पांच वर्ष का उनका कार्यकाल 18 मई 2020 को पूरा हो गया था, लेकिन कोरोना के कारण राष्ट्रपति द्वारा नई नियुक्ति नहीं किए जाने के कारण उनके कार्यकाल का स्वत: विस्तार हो गया था। अपने पूरे कार्यकाल में वह कभी विवादों में नहीं रहीं। झारखंड के जनजातीय मामलों, शिक्षा, कानून व्यवस्था, स्वास्थ्य से जुड़े मुद्दों पर वह हमेशा सजग रहीं। कई मौकों पर उन्होंने राज्य सरकारों के निर्णयों में संवैधानिक गरिमा और शालीनता के साथ हस्तक्षेप किया। विश्वविद्यालयों की पदेन कुलाधिपति के रूप में उनके कार्यकाल में राज्य के कई विश्वविद्यालयों में कुलपति और प्रतिकुलपति के रिक्त पदों पर नियुक्ति हुई।

विनोबा भावे विश्वविद्यालय के वरिष्ठ शिक्षक प्रो. डॉ शैलेश चंद्र शर्मा बताते हैं कि उन्होंने राज्य में उच्च शिक्षा से जुड़े मुद्दों परखुद लोक अदालत लगायी थी, जिसमें विवि शिक्षकों और कर्मचारियों के लगभग पांच हजार मामलों का निबटारा हुआ था। राज्य के विश्वविद्यालयों में और कॉलेजों में नामांकन प्रक्रिया केंद्रीयकृत कराने के लिए उन्होंने चांसलर पोर्टल का निर्माण कराया।

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