Friday, November 15, 2024
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सेंगोल के साथ नेहरू की तस्वीर आई सामने, मोदी सरकार ने शेयर किया 'बड़ा सबूत', बैकफुट पर कांग्रेस

नए संसद भवन में सेंगोल स्थापित करने के विवाद में अब एक नया ट्विस्ट आ गया है। पंडित जवाहर लाल नेहरू को सेंगोल सौंपने का नया सबूत सामने आया है।

Edited By: Khushbu Rawal @khushburawal2
Updated on: May 26, 2023 17:29 IST
sengol nehru- India TV Hindi
Image Source : PTI सत्ता के ट्रांसफर के प्रतीक के तौर पर देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू को सेंगोल यानी राजदंड सौंपा गया था

नई दिल्ली: नई संसद के उद्घाटन में अब 48 घंटे से भी कम वक्त बचा है लेकिन इसको लेकर पॉलिटिक्स पीक पर है। पहले राष्ट्रपति से उद्घाटन को मुद्दा बनाया गया अब सेंगोल को लेकर मोदी विरोधी एक सुर में बात कर रहे हैं। नए संसद भवन में सेंगोल स्थापित करने के विवाद में अब एक नया ट्विस्ट आ गया है। पंडित जवाहर लाल नेहरू को सेंगोल सौंपने का नया सबूत सामने आया है। सत्ता के ट्रांसफर के प्रतीक के तौर पर देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू को सेंगोल यानी राजदंड सौंपा गया था। इसका खुलासा टाइम मैगजीन की एक रिपोर्ट से भी हो रहा है। 25 अगस्त 1947 को TIME मैगजीन में छपी वो रिपोर्ट सामने आ गई है जिसमें नेहरू को राजदंड दिए जाने का जिक्र है। आज कांग्रेस ने बीजेपी के उस दावे को झूठा कह दिया था जिसमें कहा गया है कि 1947 में सत्ता ट्रांसफर के प्रतीक के तौर पर सेंगोल नेहरू को दी गई थी।

जयराम रमेश ने कसा था तंज

आज जयराम रमेश ने व्हाट्सएप यूनिवर्सिटी वाला तंज कसा तो गृह मंत्री अमित शाह ने कह दिया कि भारतीय सभ्यता और संस्कृति से इतनी नफरत क्यों है। सोशल मीडिया पर भी बहस छिड़ी हुई है ऐसे में अब सरकार ने सबसे बड़े सबूत के तौर पर 25 अगस्त 1947 की टाइम मैगजीन में प्रकाशित रिपोर्ट शेयर की है। इसमें जो लिखा है उससे बहुत कुछ साफ हो जाता है। टाइम का वो आर्टिकल पढ़ने से पहले यह जान लीजिए कि कांग्रेस का विरोध किस बात को लेकर है।

जयराम रमेश ने बीजेपी पर सेंगोल के बारे में झूठी कहानी फैलाने का आरोप लगाया है। उनका साफ तौर पर कहना है कि माउंटबेटन, राजाजी और पंडित जवाहरलाल नेहरू द्वारा इसे भारत में ब्रिटिश सत्ता के हस्तांतरण के प्रतीक के रूप में मानने का कोई दस्तावेजी सबूत नहीं है। सेंगोल (राजदंड) का इस्तेमाल सैकड़ों साल पहले चोल साम्राज्य के समय होता था। अब टाइम मैगजीन की वो रिपोर्ट को केंद्रीय मंत्री हरदीप सिंह पुरी ने प्रूफ के तौर पर दिखाया है।

टाइम मैगजीन की ग्राउंड रिपोर्ट में क्या है?
''जैसे ही बड़ा ऐतिहासिक दिन करीब आता गया, भारतीयों ने अपने-अपने ईश्वर को धन्यवाद देना शुरू किया और विशेष पूजा प्रार्थना, भजन आदि सुनाई देने लगे... भारत के पहले प्रधानमंत्री बनने से पहले शाम को जवाहरलाल नेहरू धार्मिक अनुष्ठान में व्यस्त रहे। दक्षिण भारत में तंजौर से मुख्य पुजारी श्री अंबलवाण देसिगर स्वामी के दो प्रतिनिधि आए थे। श्री अंबलवाण ने सोचा कि प्राचीन भारतीय राजाओं की तरह, भारत सरकार के पहले भारतीय प्रमुख के रूप में नेहरू को पवित्र हिंदुओं से सत्ता का प्रतीक और अथॉरिटी हासिल करनी चाहिए। पुजारी के प्रतिनिधि के साथ भारत की विशिष्ट बांसुरी की तरह के वाद्य यंत्र नागस्वरम को बजाने वाले भी आए थे। दूसरे संन्यासियों की तरह इन दोनों पुजारियों के बाल बड़े थे और बालों में कंघी नहीं की गई थी... उनके सिर और सीने पर पवित्र राख थी... 14 अगस्त की शाम को वे धीरे-धीरे नेहरू के घर की तरफ बढ़े...।

पुजारियों के नेहरू के घर पहुंचने के बाद नागरस्वम बजता रहा। इसके बाद उन्होंने पूरे सम्मान के साथ घर में प्रवेश किया। एक संन्यासी ने पांच फीट लंबा सोने का राजदंड लिया हुआ था जिकी मोटाई 2 इंच थी। उन्होंने तंजौर से लाए पवित्र जल को नेहरू पर छिड़का और उनके माथे पर पवित्र भस्म लगाया। इसके बाद उन्होंने नेहरू को पीतांबर ओढ़ाया और उन्हें गोल्डन राजदंड सौंप दिया। उन्होंने नेहरू को पके हुए चावल भी दिए, जिसे तड़के दक्षिण भारत में भगवान नटराज को अर्पित किया गया था। वहां से प्लेन से दिल्ली लाया गया था।''

क्या है सेंगोल?
सेंगोल संस्कृत शब्द "संकु" से लिया गया है, जिसका अर्थ होता है "शंख"। हिंदू धर्म में शंख को काफी पवित्र माना जाता है। यह चोला साम्राज्य से जुड़ा हुआ है। पुरातन काल में सेंगोल को सम्राटों की शक्ति और अधिकार का प्रतीक माना जाता था। इसे राजदंड भी कहा जाता था। 1947 में जब भारत आजाद हुआ तो इस सेंगोल को अंग्रेजों से सत्ता मिलने का प्रतीक माना गया। अब नए संसद भवन में सेंगोल को स्थापित किया जाएगा। शाह ने बताया है कि अभी तक इस सेंगोल को इलाहाबाद के संग्रहालय में रखा गया था।

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अंग्रेजों से सत्ता मिलने का प्रतीक है सेंगोल
अमित शाह ने बताया था कि 14 अगस्त 1947 को एक अनोखी घटना हुई थी लेकिन 75 साल बाद आज देश के अधिकांश नागरिकों को इसकी जानकारी नहीं है। इस दौरान सेंगोल ने एक अहम भूमिका निभाई थी। यह सेंगोल अंग्रेजों से सत्ता के हस्तांतरण का प्रतीक बना था। दरअसल जब लॉर्ड माउंट बैटेन ने पंडित नेहरू से सत्ता के हस्तांतरण की प्रक्रिया के बारे में पूछा था तो राजगोपालचारी ने सेंगोल की परंपरा के बारे में बताया था। इस तरह से सेंगोल की प्रक्रिया तय हुई थी। इसके बाद तमिलनाडु से पवित्र सेंगोल लाया गया था और पंडित नेहरू को मध्य रात्रि में दिया गया। जिसके बाद ये माना गया कि अंग्रेजों ने नेहरू को सत्ता सौंप दी है।

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