Highlights
- दनसारी अनसूईया ने माओवाद से प्रभावित होकर बंदूक उठा ली थी।
- माफी योजना के तहत सीथक्का ने किया था आत्मसमर्पण।
- सीथक्का ने 2017 में TDP को छोड़ कांग्रेस का हाथ थाम लिया।
MLA Danasari Anasuya Seethakka PhD: किसी जमाने में उन्होंने माओवाद से प्रभावित होकर बंदूक उठा ली थी, फिर माओवाद से नाता तोड़ा और पढ़-लिखकर वकील बनीं, फिर विधायकी भी जीती और अब उन्होंने पीएचडी भी कर लिया है। हम बात कर रहे हैं कांग्रेस नेता और तेलंगाना से विधायक दनसारी अनसुईया उर्फ सीथक्का। राजनीति विज्ञान में पीएचडी करने वाली सीथक्का का जीवन संघर्षों से भरा है। उन्होंने मंगलवार को ट्विटर पर घोषणा की कि उन्होंने उस्मानिया यूनिवर्सिटी से पीएचडी पूरी की है। 50 साल की आदिवासी विधायक ने पीएचडी के लिए आदिवासियों से जुड़ा विषय उठाया और ‘वारंगल और खम्मम जिले में गोटी कोया जनजातियों की केस स्टडी’ में पीएचडी की।
‘कभी नहीं सोचा था कि माओवादी बनूंगी’
मुलुगु की विधायक सीतक्का ने अपनी भावनाओं को व्यक्त करते हुए लिखा, ‘बचपन में मैंने कभी नहीं सोचा था कि मैं माओवादी बनूंगी, जब मैं माओवादी थी तो मैंने कभी नहीं सोचा था कि मैं वकील बनूंगी, जब मैं वकील बनी, मैंने कभी नहीं सोचा था कि मैं विधायक बनूंगी, जब मैं विधायक बनीं तो मैंने कभी नहीं सोचा था कि मैं पीएचडी करूंगी। अब आप मुझे राजनीति विज्ञान में पीएचडी, डॉक्टर अनुसूया सीथक्का कह सकते हैं। लोगों की सेवा करना और ज्ञान हासिल करना मेरी आदत है। मैं अपनी आखिरी सांस तक इसे करना कभी बंद नहीं करूंगीं।’
कांग्रेस के कई नेताओं ने सीथक्का को दी बधाई
सीथक्का ने अपने पीएचडी गाइड प्रोफेसर एवं उस्मानिया यूनिवर्सिटी के पूर्व कुलपति टी. तिरुपति राव, एचओडी प्रोफेसर मुसलिया, प्रोफेसर अशोक नायडू और प्रोफेसर चंद्रू नायक को धन्यवाद दिया। कांग्रेस के नेताओं और दूसरे क्षेत्र से संबंध रखने वाले के लोगों ने उन्हें बधाई दी और उनके भविष्य के प्रयासों के लिए शुभकामनाएं दीं। पार्टी के केंद्रीय नेता और तेलंगाना में पार्टी मामलों के प्रभारी मनिकम टैगोर, राज्य कांग्रेस प्रमुख ए. रेवंत रेड्डी और वरिष्ठ नेता मधु गौड़ यास्की ने भी उन्हें बधाई दी।
कम उम्र में ही सीथक्का ने उठा ली थी बंदूक
कोया जनजाति से ताल्लुक रखने वाली सीतक्का कम उम्र में ही माओवादी आंदोलन में शामिल हो गई थीं और आदिवासी इलाके में सक्रिय सशस्त्र दस्ते का नेतृत्व करने लगीं। उनकी पुलिस के साथ कई मुठभेड़ भी हुईं जिनमें उन्होंने अपने पति और भाई को खो दिया। आंदोलन से निराश होकर, 1994 में एक माफी योजना के तहत उन्होंने पुलिस के सामने आत्मसमर्पण कर दिया। इसके साथ ही सीतक्का के जीवन ने एक नया मोड़ लिया। उन्होंने पढ़ाई की और कानून की डिग्री हासिल की। उन्होंने वारंगल की एक अदालत में एक वकील के रूप में भी प्रैक्टिस भी की।
TRS की लहर में भी जीत गई थीं चुनाव
बाद में वह तेलुगु देशम पार्टी में शामिल हो गईं और 2004 के चुनावों में मुलुग से चुनाव लड़ा। हालांकि, कांग्रेस की लहर में वह जीत नहीं पाईं लेकिन 2009 में उन्होंने उसी विधानसभा क्षेत्र से चुनाव जीता। वह 2014 के चुनावों में तीसरे स्थान पर रहीं और 2017 में TDP को छोड़ कांग्रेस का हाथ थाम लिया। उन्होंने 2018 में तेलंगाना राष्ट्र समिति (TRS) के क्लीन स्वीप के बावजूद अपनी सीट पर कब्जा करके मजबूत वापसी की। सीथक्का ने कोविड-19 महामारी के दौरान अपने निर्वाचन क्षेत्र के दूरदराज के गांवों में अपने मानवीय कार्यों से सुर्खियां बटोरीं और दूर-दराज के इलाकों तक खुद चलकर लोगों तक मदद पहुंचाई। (IANS)