नई दिल्ली: नॉर्थ ईस्ट में बीजेपी को मिली जीत प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की दूरगामी रणनीति का नतीजा है। मोदी जब देश के प्रधानमंत्री बने थे उस वक्त नॉर्थ ईस्ट के किसी राज्य में बीजेपी की सरकार नहीं थी। 2003 में एक बार अरुणाचल प्रदेश में कुछ वक्त के लिए बीजेपी की सरकार बनी थी लेकिन उसके बाद पूर्वोत्तर में बीजेपी का ज्यादा वजूद नहीं था। 2014 में मोदी प्रधानमंत्री बने तो उन्होंने नॉर्थ ईस्ट पर फोकस किया। नॉर्थ ईस्ट को देश की मुख्यधारा से जोड़ने की कोशिशें शुरू हुई। इसका नतीजा ये हुआ कि पहले पूर्वोत्तर के सबसे बड़े राज्य असम में बीजेपी की सरकार बनी।
नॉर्थ ईस्ट के 8 में से 6 राज्यों में BJP की सरकार
इसके बाद असम में बीजेपी दोबारा जीती और अब त्रिपुरा में भी बीजेपी ने दोबारा जीत दर्ज की है। इस वक्त पूर्वोत्तर के आठ में से छह राज्यों में बीजेपी और उसके सहयोगी दलों की सरकार है। एक तो बीजेपी हिन्दी भाषी राज्यों की पार्टी की छवि से बाहर निकलेगी। दूसरी बात नॉर्थ ईस्ट में 25 लोकसभा की सीटें हैं। अगर अगले लोकसभा चुनावों में दूसरे राज्यों में बीजेपी को थोड़ा बहुत नुकसान होता है तो पूर्वोत्तर से इसकी भरपाई हो जाएगी इसलिए त्रिपुरा, नागालैंड और मेघालय में बीजेपी की जीत के बड़े मायने हैं।
तीनों राज्यों में 'टूटा हाथ', किस राज्य में कांग्रेस को कितनी सीटें?
- त्रिपुरा- 03
- मेघालय- 05
- नगालैंड- 00
तीनों राज्यों में कांग्रेस का सफाया क्यों हुआ?
त्रिपुरा में तो कांग्रेस ने बीजेपी का मुकाबला करने के लिए अपने परंपरागत सियासी दुश्मन लेफ्ट फ्रंट से हाथ मिलाया लेकिन फिर भी कांग्रेस की लुटिया डूब गई। पिछले चुनाव में बीजेपी को त्रिपुरा में 36 और लेफ्ट फ्रंट को 16 सीटें मिली थी। इस बार लेफ्ट फ्रंट ने कांग्रेस के साथ मिलकर चुनाव लड़ा लेकिन इस बार पिछले चुनाव से भी कम सीटें आईं। त्रिपुरा में कांग्रेस को सिर्फ 3 और लेफ्ट फ्रंट को सिर्फ 11 सीटें मिलीं। नगालैंड में तो कांग्रेस एक भी सीट नहीं जीत सकी है। जिस नगालैंड में शरद पवार की पार्टी NCP ने 7, जेडीयू ने 1 और लोक जनशक्ति पार्टी ने भी एक सीट जीती है वहां कांग्रेस का खाता भी नहीं खुला।
कांग्रेस की हार की सबसे बड़ी वजह क्या?
मेघालय में जरूर कांग्रेस को 5 सीटें मिलीं लेकिन कांग्रेस को सबसे ज्यादा उम्मीद त्रिपुरा से थी क्योंकि एक तो उसने त्रिपुरा में लेफ्ट फ्रंट से हाथ मिलाया था और दूसरा ये कि कांग्रेस उम्मीद कर रही थी कि त्रिपुरा में एंटी इनकम्बेंसी लहर काम करेगी लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ। बीजेपी की चार सीटें कम जरूर हुई लेकिन उसका फायदा कांग्रेस से अलग होकर नई पार्टी बनाने वाले प्रद्योत देब बर्मन को हुआ। प्रद्योत की पार्टी त्रिपुरा इंडिजिनयस रीजनल प्रोग्रेसिव एलायंस यानि टीपरा ही कांग्रेस की हार की सबसे बड़ी वजह बनी।
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प्रद्योत देब बर्मन ने गांधी परिवार के लिए क्या कहा?
प्रद्योत खुद भी त्रिपुरा में कांग्रेस के अध्यक्ष रहे लेकिन NRC के मुद्दे पर उन्होंने कांग्रेस छोड़ दी। प्रद्योत NRC के पक्ष में थे और उनका कहना था कि बांग्लादेशी घुसपैठ के कारण त्रिपुरा में यहां के मूल निवासी आदिवासी माइनॉरिटी में आ गए हैं इसलिए NRC जरूरी है। प्रद्योत ने 2020 में कांग्रेस छोड़कर अपनी पार्टी बना ली। प्रद्योत देव बर्मन की पार्टी ने कुल 42 सीटों पर चुनाव लड़ा और 13 सीटों पर जीत हसिल की जबकि कांग्रेस तीन सीटों पर सिमट गई। जीत के बाद प्रद्योत देब बर्मन ने कहा कि गांधी परिवार की नीयत तो अच्छी है लेकिन वो ऐसे नेताओं से घिरे हुए हैं जिन्हें ज़मीनी राजनीति की समझ नहीं है और जब तक गांधी परिवार खुद ज़मीन पर नहीं उतरेगा तब तक बीजेपी को हरा पाना नामुमकिन है।