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Mulayam Singh Yadav: अखाड़े के महारथी मुलायम सियासत में भी साबित हुए माहिर पहलवान... जानें कई अनसुने किस्से

Mulayam Singh Yadav: अपने नाम के मुताबिक मुलायम सिंह यादव उर्फ नेताजी काफी सरल और सौम्य स्वभाव के राजनेता थे। अपने शुरुआती दिनों में छात्र राजनीति में सक्रिय रहे यादव ने राजनीति शास्त्र में डिग्री लेने के बाद एक इंटर कॉलेज में कुछ समय के लिए शिक्षण कार्य भी किया।

Edited By: Akash Mishra @Akash25100607
Published on: October 10, 2022 16:55 IST
Mulayam Singh Yadav- India TV Hindi
Image Source : INDIA TV Mulayam Singh Yadav

Highlights

  • उत्तर प्रदेश के तीन बार मुख्यमंत्री रहे मुलायम सिंह यादव
  • 1967 में पहली बार जसवंत नगर सीट से विधायक चुने गए मुलायम
  • मुलायम के समर्थक अक्सर कहते थे, ‘नेताजी संसद में होते हैं या सड़क पर’

Mulayam Singh Yadav: दशकों तक राजनीतिक दांव-पेंच के पुरोधा और विपक्ष की सियासत की धुरी रहे समाजवादी पार्टी (सपा) संस्थापक मुलायम सिंह यादव कभी सियासी फलक से ओझल नहीं हुए। कभी कुश्ती के अखाड़े के महारथी रहे मुलायम सिंह यादव बाद में सियासी अखाड़े के भी माहिर पहलवान साबित हुए। सोमवार को गुरुग्राम के मेदांता अस्पताल में अंतिम सांस लेने वाले यादव अपने समर्थकों के बीच हमेशा ‘नेता जी’ के नाम से मशहूर रहे। राम मंदिर आंदोलन के चरम पर पहुंचने के दौरान वर्ष 1992 में समाजवादी पार्टी का गठन करने वाले यादव को देश के हिंदी हृदय स्थल में हिंदुत्ववादी राजनीति के उभार के बीच धर्मनिरपेक्षतापूर्ण सियासत के केंद्र बिंदु के तौर पर देखा गया। एक संघर्षशील और जुझारू नेता के तौर पर अपनी पहचान बनाने वाले यादव के बारे में उनके समर्थक अक्सर कहते थे, ‘नेताजी संसद में होते हैं या सड़क पर।’ यह लोगों से उनके जुड़ाव के साथ-साथ उनके राष्ट्रीय कद की गवाही देता है। 

जोड़-तोड़ की राजनीति में भी माहिर थे नेता जी

उत्तर प्रदेश के इटावा जिले के सैफई गांव में एक किसान परिवार में 22 नवंबर 1939 को जन्मे मुलायम सिंह यादव ने राज्य का सबसे प्रमुख सियासी कुनबा भी बनाया। यादव 10 बार विधायक रहे और सात बार सांसद भी चुने गए। वह तीन बार उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री और 1996 से 98 तक देश के रक्षा मंत्री भी रहे। समाजवाद के प्रणेता राम मनोहर लोहिया से प्रभावित होकर सियासी सफर शुरू करने वाले यादव ने उत्तर प्रदेश में ही अपनी राजनीति निखारी और तीन बार प्रदेश के सत्ताशीर्ष तक पहुंचे। मौकों का उपयोग करने वाले समाजवादी नेता समाजवादी मुलायम सिंह यादव ने राजनीतिक संभावनाओं को हमेशा खोल कर रखा और वह हर अवसर का इस्तेमाल करने वाले राजनेता रहे। जोड़-तोड़ की राजनीति में भी माहिर माने जाने वाले यादव समय-समय पर अनेक पार्टियों से जुड़े रहे। इनमें राम मनोहर लोहिया की संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी और चरण सिंह के भारतीय क्रांति दल, भारतीय लोक दल और समाजवादी जनता पार्टी भी शामिल हैं। उसके बाद वर्ष 1992 में उन्होंने समाजवादी पार्टी का गठन किया। यादव ने उत्तर प्रदेश में अपनी सरकार बनाने या बचाने के लिए जरूरत पड़ने पर बहुजन समाज पार्टी (बसपा), कांग्रेस और भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) से भी समझौते किए।

छात्र जीवन से ही राजनीति में सक्रिय थे मुलायम

शुरुआती जीवन के शुरुआती दिनों में छात्र राजनीति में सक्रिय रहे यादव ने राजनीति शास्त्र में डिग्री हासिल करने के बाद एक इंटर कॉलेज में कुछ समय के लिए शिक्षण कार्य भी किया। वह वर्ष 1967 में पहली बार जसवंत नगर सीट से विधायक चुने गए। अगले चुनाव में वह फिर इसी सीट से विधायक चुने गए। बेहद जुझारू नेता माने जाने वाले मुलायम सिंह यादव ने वर्ष 1975 में तत्कालीन इंदिरा गांधी सरकार द्वारा देश में आपातकाल घोषित किए जाने का कड़ा विरोध किया। वर्ष 1977 में आपातकाल खत्म होने के बाद वह लोकदल की उत्तर प्रदेश इकाई के अध्यक्ष बने। सियासत की नब्ज जानने की बेमिसाल योग्यता रखने वाले यादव वर्ष 1982 में उत्तर प्रदेश विधान परिषद के लिए चुने गए और और इस दौरान वह वर्ष 1985 तक उच्च सदन में विपक्ष के नेता भी रहे। वह वर्ष 1989 में पहली बार उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने। इसी दौरान राम जन्मभूमि आंदोलन ने तेजी पकड़ी और देश-प्रदेश की राजनीति इस मुद्दे पर केंद्रित हो गई। 

मुस्लिम-यादव का चुनाव जिताऊ समीकरण

अयोध्या में कारसेवकों का जमावड़ा लग गया और उग्र कारसेवकों से बाबरी मस्जिद को ‘बचाने’ के लिए 30 अक्टूबर 1990 को कारसेवकों पर पुलिस ने गोलियां चलाई जिसमें पांच कारसेवकों की मौत हो गई। इस घटना के बाद राज्य के तत्कालीन मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव भाजपा तथा अन्य हिंदूवादी संगठनों के निशाने पर आ गए और उन्हें ‘मुल्ला मुलायम’ तक कहा गया। बाबरी मस्जिद को बचाने के लिए कारसेवकों पर कड़ी कार्रवाई के बाद मुस्लिम समाज का एक बहुत बड़ा वर्ग सपा के साथ जुड़ गया, जिससे पार्टी के लिए ‘मुस्लिम-यादव’ का चुनाव जिताऊ समीकरण उभर कर सामने आया। इससे समाजवादी पार्टी राजनीतिक रूप से बेहद मजबूत हो गई। उत्तर प्रदेश की सियासत के पहलवान बनकर उभरे मुलायम सिंह यादव ने उसके बाद एक लंबे अरसे तक भाजपा, कांग्रेस और अन्य विरोधी दलों को राज्य में मजबूत नहीं होने दिया। 

जब तक जीवित रहे तब तक नेता जी बने रहे 

वर्ष 1996 में  यादव ने राष्ट्रीय राजनीति का रुख किया और 1996 में मैनपुरी से लोकसभा चुनाव जीते। विपक्षी दलों द्वारा कांग्रेस का गैर भाजपाई विकल्प तैयार करने की कोशिशों के दौरान मुलायम कुछ वक्त के लिए प्रधानमंत्री पद के दावेदार के तौर पर भी नजर आए। हालांकि, वह एचडी देवेगौड़ा के नेतृत्व में बनी यूनाइटेड फ्रंट की सरकार में रक्षा मंत्री बनाए गए। बाद में मुलायम सिंह यादव ने एक बार फिर उत्तर प्रदेश की राजनीति का रुख किया और वर्ष 2003 में तीसरी बार प्रदेश के मुख्यमंत्री बने।

2007 में हुए विधानसभा चुनाव के बाद बसपा की सरकार बनने पर वह विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष भी रहे। वर्ष 2012 में हुए विधानसभा चुनाव में सपा को पहली बार पूर्ण बहुमत मिला। उस वक्त भी मुलायम सिंह यादव के ही मुख्यमंत्री बनने की पूरी संभावना थी लेकिन उन्होंने अपने बड़े बेटे अखिलेश यादव को यह जिम्मेदारी सौंपी और अखिलेश 38 वर्ष की उम्र में प्रदेश के सबसे युवा मुख्यमंत्री बने। जिंदगी के आखिरी दिनों में मुलायम सिंह यादव स्वास्थ्य संबंधी कई समस्याओं से घिर गए और 10 अक्टूबर 2022 को गुरुग्राम के मेदांता अस्पताल में उन्होंने आखिरी सांस ली। मुलायम जब तक जीवित रहे सपा कार्यकर्ताओं के लिए ‘नेता जी’ ही बने रहे

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