Highlights
- लाल बहादुर शास्त्री के निधन के बाद इंदिरा बनी थीं प्रधानमंत्री
- इंदिरा सरकार में मोरारजी देसाई को वित्त मंत्रालय की जिम्मेदारी दी गई थी
- बाद में उन्हें वित्त मंत्री के पद से हटा दिया गया था
इंदिरा गांधी के विरोध के बाद जब जनता पार्टी को जनसमर्थन मिला तो कई चेहरे उभरकर आगे आए। तमाम चेहरों के बीच एक नाम मोरारजी देसाई का भी था। मोरारजी को लेकर पहले कई नेताओं ने विरोध किया क्योंकि वह कभी कांग्रेस के कद्दावर नेता रहे थे। मोरारजी देसाई उस समय के इकलौते ऐसे नेता थे जो कई मंचों से प्रधानमंत्री बनने की इच्छा जाहिर कर चुके थे और वह कभी इस पर बोलने से बचते भी नहीं थे।
दिवंगत पत्रकार कुलदीप नैय्यर ने 'बीबीसी' को बताया था, 'पंडित नेहरू के निधन के बाद मैं मोरारजी देसाई के घर गया। वहां मुझे मोरारजी के बेटे कांति देसाई मिले। उन्होंने कहा कि शास्त्री से कहो न कि बैठ जाए। मैंने एक स्टोरी लिखी और बाद में लोगों ने मुझे कहा कि मैंने मोरारजी को हरा दिया क्योंकि वो स्टोरी उनके विरोध में थी। मुझे कांग्रेस के तत्कालीन अध्यक्ष के. कामराज ने भी मुझे धन्यवाद कहा। लेकिन ऐसा बिल्कुल नहीं था।'
प्रधानमंत्री बनीं इंदिरा तो मोरारजी को कर दिया मंत्रिमंडल से बाहर-
साल 1966 में लाल बहादुर शास्त्री के निधन के बाद इंदिरा गांधी को देश का प्रधानमंत्री बनाया गया। इंदिरा सरकार में मोरारजी देसाई को डिप्टी पीएम और वित्त मंत्रालय की जिम्मेदारी दी गई। लेकिन पार्टी और सरकार में इंदिरा के बढ़ते कद के बाद मोरारजी को सरकार से बाहर का रास्ता दिखा दिया गया था। दिवंगत इंदर मल्होत्रा ने इससे जुड़ा किस्सा भी सुनाया था।
इंदर मल्होत्रा बताते हैं, 'इंदिरा गांधी की बात को दरकिनार करके नीलम संजीव रेड्डी को राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार बनाया गया। इंदिरा को ये बात बिल्कुल पसंद नहीं आई और वह काफी गुस्सा हो गईं। इंदिरा ने मोरारजी देसाई को चिट्ठी लिखी कि मैं जानती हूं कि आपका काम बहुत अच्छा है। क्योंकि मेरी आर्थिक नीति आपको पसंद नहीं आ रही, इसलिए आपसे वित्त मंत्रालय की जिम्मेदारी मैं ले रही हूं। लेकिन आप डिप्टी पीएम बने रहेंगे।'
मोरारजी देसाई को जब ये बात पता चली तो उन्होंने पलटकर इंदिरा गांधी को कहा-
आप तो चपरासी से भी ज्यादा मेरी बेइज्ज़ती कर रही हैं और मैं एक पल भी आपकी सरकार में नहीं रहना चाहता हूं।
इसके बाद मोरारजी देसाई जेपी आंदोलन में भी कूदे और इंदिरा सरकार के खिलाफ खूब जोर-शोर से आवाज उठाई। दावा किया जाता है कि 1977 में भी बाबू जगजीवन राम और मोरारजी देसाई के नाम पर चर्चा होनी थी, लेकिन मोरारजी एक बड़े और अनुभवी नेता थे इसलिए उन्हें पीएम पद सौंप दिया गया।