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Lok Sabha Elections 2024: लोकसभा चुनाव में 2 हफ्ते पहले भी मणिपुर में सन्नाटा, न रैली हुई और न ही पोस्टर दिख रहे

मणिपुर में लोकसभा चुनाव के लिए मतदान होने में 2 हफ्ते से भी कम समय बचा है लेकिन न तो कहीं कोई बड़ी रैली हुई है और न ही चुनावी माहौल जैसा कुछ लग रहा है।

Edited By: Vineet Kumar Singh @VickyOnX
Published on: April 06, 2024 19:33 IST
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Image Source : PTI मणिपुर में चुनाव आयोग ने मताधिकार की अपील करते हुए ऐसे पोस्टर लगाए हैं।

इंफाल: मणिपुर में लोकसभा चुनाव के लिए मतदान होने में 2 हफ्ते से भी कम समय बचा है, लेकिन न तो राज्य में राजनीतिक दलों के पोस्टर दिख रहे हैं, न बड़ी रैलियां हो रही हैं। यहां तक कि सूबे में नेताओं की आवाजाही भी नहीं दिख रही है। राज्य में चुनाव के नाम पर केवल स्थानीय निर्वाचन अधिकारियों के लगाए कुछ होर्डिंग दिख रहे हैं, जिनके जरिए लोगों से मताधिकार के इस्तेमाल का अनुरोध किया गया है। खामोश चुनावी माहौल के बीच राजनीतिक दलों के प्रमुख नेता प्रचार के लिए राज्य का दौरा करने से परहेज कर रहे हैं।

किसी बड़े नेता ने नहीं किया मणिपुर का दौरा

एक ओर जहां बीजेपी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह जैसी प्रमुख हस्तियों को स्टार प्रचारकों के रूप में सूचीबद्ध किया है, वहीं कांग्रेस के प्रचारकों की सूची में सोनिया गांधी, राहुल गांधी और अन्य प्रमुख नेता शामिल हैं। हालांकि किसी ने भी अब तक मणिपुर का दौरा नहीं किया है। मणिपुर निर्वाचन आयोग ने कहा है कि प्रचार गतिविधियों पर कोई आधिकारिक रोक नहीं है, हालांकि राजनीतिक दलों के प्रतिनिधि राज्य में नाजुक स्थिति को बिगड़ने से बचाने के लिए कम प्रचार कर रहे हैं।

‘चुनाव प्रचार पर कोई प्रतिबंध नहीं लगा है’

मणिपुर के मुख्य निर्वाचन अधिकारी प्रदीप झा ने बताया, 'निर्वाचन आयोग की ओर से चुनाव प्रचार पर कोई प्रतिबंध नहीं लगाया गया है। आदर्श आचार संहिता के दायरे में आने वाली किसी भी चीज की अनुमति है।' मुश्किल स्थिति से निपटने के लिए बीजेपी के उम्मीदवार थौनाओजम बसंत कुमार सिंह, कांग्रेस के अंगोमचा बिमोल अकोइजम, रिपब्लिकन पार्टी ऑफ इंडिया के महेश्वर थौनाओजम और मणिपुर पीपुल्स पार्टी (MPP) समर्थित राजमुकर सोमेंद्रो सिंह अनोखे समाधान के साथ आगे आए हैं। वे गैर-पारंपरिक तरीके से मतदाताओं तक पहुंच रहे हैं जिसमें उनके आवास या पार्टी कार्यालयों में बैठकें आयोजित करना और समर्थकों का घर-घर जाकर प्रचार करना शामिल है।

‘मतदाता अपने वोट के महत्व को जानते हैं’

घर-घर प्रचार के लिए स्वयंसेवकों की टीमों को तैनात करने वाले महेश्वर थौनाओजम ने कहा, ‘बेहतर होता अगर मैं जनसभाओं को संबोधित करता और रैलियां करता, लेकिन मैंने अभियान को सीमित रखने का फैसला किया है। मौजूदा स्थिति में मतदाता अपने वोट के महत्व को जानते हैं और सोच-समझकर चुनाव करेंगे।’ राज्य के निवर्तमान शिक्षा एवं कानून मंत्री बसंत कुमार सिंह इस बार लोकसभा चुनाव लड़ रहे हैं। वह अपने आवास और पार्टी कार्यालय में छोटी-छोटी बैठकें कर रहे हैं। इसी तरह, दिल्ली के जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर अकोइजाम ज्यादातर अपने आवास पर लोगों से मिलते हैं।

‘चुनाव हमारे लिए महत्वपूर्ण हैं, लेकिन…’

इंफाल में कांग्रेस दफ्तर पर राहुल गांधी की भारत जोड़ो न्याय यात्रा और अकोइजाम के समर्थन में पोस्टर लगे हुए हैं। बीजेपी की मणिपुर इकाई की अध्यक्ष ए. शारदा देवी ने कहा, 'चुनाव हमारे लिए महत्वपूर्ण हैं लेकिन हम धूमधाम और दिखावा करके लोगों के घावों पर नमक नहीं छिड़क सकते। चुनाव भी एक त्योहार की तरह हैं लेकिन हम मौजूदा स्थिति के कारण त्योहार को जोर-शोर से नहीं मना सकते। लोग अपने घरों से दूर रह रहे हैं, हम चाहते हैं कि वे हम पर विश्वास करें, हालांकि हम प्रचार नहीं कर रहे हैं।’

सूबे में 3 मई को शुरू हुआ था जातीय संघर्ष

राज्य सरकार के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि किसी भी तरह का जोरदार अभियान राज्य में कानून-व्यवस्था की स्थिति के लिए हानिकारक हो सकता है। अधिकारी ने नाम सार्वजनिक नहीं करने का अनुरोध करते हुए कहा, ‘हालांकि स्थिति फिलहाल नियंत्रण में है, लेकिन किसी भी तरह का जोरदार अभियान राज्य की कानून-व्यवस्था के लिए हानिकारक हो सकता है और कोई भी पार्टी यह जोखिम नहीं लेना चाहती है।’ ST का दर्जा देने की मैतेई समुदाय की मांग के विरोध में पहाड़ी जिलों में 'आदिवासी एकजुटता मार्च' आयोजित किए जाने के बाद पिछले साल 3 मई को राज्य में शुरू हुए जातीय संघर्ष में कम से कम 219 लोग मारे गए हैं।

शिविरों में नहीं पहुंच रहे उम्मीदवार

मणिपुर में 19 और 26 अप्रैल को दो चरण में होने वाले लोकसभा चुनावों ने विस्थापित आबादी की मतदान व्यवस्था पर ध्यान आकर्षित किया है। राहत शिविरों में मतदान की व्यवस्था की जा रही है, हालांकि उम्मीदवारों ने अभी यहां का दौरा नहीं किया है। दो बच्चों की मां और मैतेई बहुल क्वाकीथेम क्षेत्र में एक राहत शिविर में रह रहीं दीमा ने कहा, ‘पार्टियों के कुछ कार्यकर्ता एक या दो बार आए हैं लेकिन कोई उम्मीदवार नहीं आया।’ इस बीच, कुकी समुदाय बहुल मोरेह और चुराचांदपुर जैसे क्षेत्रों में भी ऐसे ही हालात हैं। कुछ कुकी गुटों और सामाजिक समूहों ने चुनावों के बहिष्कार का भी आह्वान किया है। (भाषा)

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