देश में इस वक्त चुनावी सीजन चल रहा है। दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र भारत में आम चुनाव का आयोजन हो रहा है। हजारों की संख्या में उम्मीदवार देशभर की 543 लोकसभा सीटों पर अपनी किस्मत आजमाएंगे। इस चुनाव को संपन्न कराने की जिम्मेदारी भारतीय निर्वाचन आयोग पर है। चुनाव लड़ने वाले सभी उम्मीदवारों के पास अपना-अपना सिंबल भी होगा। उन्हें अपनी पार्टियों से 'सिंबल' भी मिलेंगे। तो आखिर ये चुनावी सिंबल होता क्या है? ये कैसे किसी पार्टी या उम्मीदवार को मिलता है? इसे देने का मकसद क्या है? आइए जानते हैं इन सभी सवालों के जवाब हमारे इस खबर के माध्यम से।
जानें चुनावी सिंबल का महत्व
चुनाव चिह्न किसी राजनीतिक दल या उम्मीदवार को आवंटित मानक चिह्न होता है। इसका उपयोग पार्टियों द्वारा अपने प्रचार के दौरान किया जाता है। इसे इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनों (ईवीएम) पर दिखाया जाता है, जहां मतदाता सिंबल चुनता है और संबंधित पार्टी को वोट देता है। सिंबल देने का एक और कारण ये भी होता है कि जो लोग पढ़ नहीं सकते वो भी सिंबल देख कर अपने उम्मीदवार की पहचान कर सकते हैं।
उम्मीदवार को कैसे मिलता है सिंबल?
भारत के चुनाव आयोग के पास कई तरह के चुनावी सिंबल होते हैं। कई पार्टियां आयोग को सिंबल के लिए अपनी पसंद भी बताती है। अगर किसी के पास वह सिंबल न हो तो उसे ये दे दिया जाता है। आयोग के पास रिजर्व सिंबल भी होते हैं जैसे भाजपा का कमल का फूल या कांग्रेस का हाथ। इसके अलावा आयोग के पास मुक्त सिंबल भी होते हैं जो किसी नए दल या उम्मीदवार को दिए जाते हैं। निर्दलीय उम्मीदवार को आयोग से सिंबल मिलता है। जब कोई राजनीतिक दल अपने किसी नेता को चुनाव में खड़ा करता है तो वह उसी सिंबल पर चुनाव लड़ता है जो उसकी पार्टी को चुनाव आयोग से मिला है। इसमें होता ये है कि पार्टी का राष्ट्रीय अध्यक्ष अपने प्रत्याशियों का नाम प्रदेश अध्यक्ष को देता है, जिसे फॉर्म-A कहा जाता है। इसके बाद उस पार्टी का प्रदेश अध्यक्ष प्रत्याशियों को नामांकन दाखिल करने के लिए फॉर्म-B देता है। इसे ही आम बोलचाल में 'सिंबल' देना कहते हैं।
क्या है चुनाव का सिंबल देने का नियम?
भारत के संविधान के भाग 15 में अनुच्छेद 324 से लेकर अनुच्छेद 329 तक निर्वाचन की व्याख्या की गई है। संविधान के अनुच्छेद 324 में ही निर्वाचन आयोग को चुनाव संपन्न कराने की ज़िम्मेदारी दी है। इसी तरह चुनाव चिह्न (आरक्षण और आवंटन) आदेश, 1968 चुनाव आयोग को राजनीतिक दलों को मान्यता देने और प्रतीक आवंटित करने का अधिकार देता है। चुनाव आयोग चुनाव के उद्देश्य से राजनीतिक दलों को पंजीकृत करता है और उनके चुनाव प्रदर्शन के आधार पर उन्हें राष्ट्रीय या राज्य दलों के रूप में मान्यता देता है। इसके बाद प्रत्येक राष्ट्रीय पार्टी और प्रत्येक राज्य पार्टी को एक सिंबल आवंटित किया जाता है।
कब शुरू हुआ सिंबल देने का काम?
भारत में आजादी से पहले भी राजनीतिक पार्टियों जैसे कांग्रेस व मुस्लिम लीग के पास सिंबल था। हालांकि, सिंबल देने की शुरुआत साल 1951-1952 के बीच पहले आम चुनाव के दौरान हुई। इस दौरान देश में साक्षरता दर काफी कम थी। चुनाव में आम जनता की भागीदारी बढ़ाने के मकसद से दलों और उम्मीदवारों को सिंबल बांटने की शुरुआत की गई।
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