जम्मू कश्मीर विधानसभा चुनाव के परिणाम अब साफ होते दिख रहे हैं। जम्मू कश्मीर में नेशनल कॉन्फ्रेंस को बहुमत मिलती दिख रही है। वहीं राज्य में भारतीय जनता पार्टी दूसरी सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी है। इस बीच सितंबर महीने की शुरुआत में लोकसभा सांसद शेख अब्दुल राशिद उर्फ इंजीनियर राशिद के नेतृत्व में वाली आवामी इत्तेहाद पार्टी (एआईपी) ने विधानसभा चुनाव के लिए जमात-ए-इस्लामी (जेईआई) से गठबंधन किया था। उस दौरान इस गठबंधन को जम्मू-कश्मीर में गेम चेंजर बताया जा रहा है। लेकिन इस चुनाव में यह गठबंधन कुछ खास कर पाने में असफल साबित हुई है।दरअसल एआईपी ने जिन 35 सीटों पर चुनाव लड़ा था, उनमें से सिर्फ लंगेट विधानसभा सीट पर एआईपी की उम्मीदवार आगे चल रही थीं, जबकि जमात समर्थिक सभी 10 उम्मीदवार निर्वाचन क्षत्रों में पीछे चल रहे हैं।
जमात और इंजीनियर राशिद की पार्टी रही असफल
बता दें कि जेईआई समर्थित उम्मीदवारों की भागीदारी के कारण 37 साल पर जेईआई की राजनीति में वापसी हुई है। उनमें से सैयार अहमद रेशी (कुलगाम) अपने विरोदझियों को कड़ी टक्कर देने वाले एकमात्र उम्मीदवार बने थे। रेशी ने विधानसभा चुनाव के मद्देनजर 4 मुख्य चुनाव प्रचार किए। इस चुनाव प्रचार के दौरान उन्होंने लोकतंत्र और कश्मीरी पंडितों की घर वापसी की बात कही थी। 17 में से 16वें राउंड के बाद उनहें 24,753 वोट मिले। वे भारतीय कम्युनिष्ट पार्टी (मार्क्सवाद) के नेता और चार बार के सांसद एमवाई तारिगामी से पीछे चल रहे थे। बता दें कि साल 2019 में प्रतिबंधित जमात द्वारा उनके समर्थित उम्मीदवारों का प्रदर्शन अन्य स्थानों पर निराशाजनक रहा। पूर्व जमात महासचिव गुलाम कादिर लोन के बेटे कलीमुल्लाह लोन को लंगेट में मतगणना के अंतिम दौर के समापन के बाद कुल 3,300 और इसी के साथ वे पांचवे स्थान पर रहे।
लोकसभा चुनाव में राशिद ने दर्ज की थी जीत
एआईपी के इस विधानसभा चुनाव में कूद जाने के बाद यह संभावना जताई जा रही थी कि यह चुनाव और कड़ा होने जा रहा है। दरअसल लोकसभा चुनाव में राशिद ने नेशनल कॉन्फ्रेंस के नेता उमर अब्दुल्ला और पूर्व मंत्री सज्जाद गनी लोन को हराया था। राशिद ने बारामूला लोकसभा क्षेत्र के 18 विधानसभा क्षेत्रों में से 14 पर बढ़त हासिल की। बता दें कि राशिद को साल 2019 में टेरर फंडिंग के मामले में गिरफ्तार किया गया था। विधानसभा चुनाव में प्रचार के लिए राशिद को जमानत दी गई थी। इस दौरान राशिद की चुनावी रैलियों में अच्छी-खासी भीड़ देखने को मिलती थीं। उनके भाई खुर्शीद अहमद शेख एआईपी के गढ़ लंगेट को बरकरार रखने में सफल रहे। बता दें कि राशिद दो बार से लंगेट से विधायक रह चुके हैं। वर्तमान में खुर्शीद अहमद शेख पीपुल्स कॉन्फ्रेंस के इरफान सुल्तान पंडितपुरी के खिलाफ 24,977 वोटों के साथ आगे चल रहे हैं।
क्यों असफल हुई जईआई और एआईपी की जोड़ी?
दरअसल शुरुआती दिनों में राशिद की पार्टी एआईपी और जमात के बीच गठबंधन हुआ तो ऐसा कहा जाने लगा कि इन्हें भाजपा ने भेजा है, जो कि कहीं न कहीं इनके खिलाफ गया। वहीं दूसरी तरफ विधानसभा चुनावों में नेशनल कॉन्फ्रेंस ने अच्छी चुनावी कैंपेनिंग की थी। इसे लेकर एक्सपर्ट्स का कहना है कि लोग जम्मू कश्मीर में स्पष्ट जनादेश चाहते थे और वो किसी तरह के वोट के विघटन या बिखराव से बचना चाहते थे। इस कारण भी लोगों का वोट एकतरफा नेशनल कॉन्फ्रेंस और कांग्रेस या फिर भाजपा को मिला। हालांकि जम्मू कश्मीर की राजनीति में जमात कभी भी प्रमुख चुनावी कारक नहीं रहा है। क्योंकि जमात को कभी कोई बड़ी सफलता कश्मीर में नहीं मिली। वहीं ऐसा कहा जा रहा है कि लोकसभा चुनाव में राशिद को सहानुभूति के कारण वोट मिला, जिस कारण राशिद की चुनाव में जीत हुई थी।