नई दिल्ली: जमीयत उलेमा-ए-हिंद के अध्यक्ष मौलाना महमूद मदनी ने मदरसा बोर्ड पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले का स्वागत किया है। उन्होंने कहा, 'सुप्रीम कोर्ट के फैसले का वेलकम किया जाना चाहिए। हमारी अदालतों और खास तौर पर निचली अदालतों से शिकायत है कि उनके फैसले बहुत से मामलों में इंसाफ के खिलाफ आते हैं।'
मदनी ने और क्या कहा?
मौलाना महमूद मदनी ने कहा कि इसी तरह का एक फैसला हाई कोर्ट ने किया था, जिसमें इनको गैरकानूनी करार दिया गया था और मदरसे को चलाने के निजाम को ही असंवैधानिक कहा गया था। आज सुप्रीम कोर्ट ने कुछ ऑब्जरबेशन के साथ एक अच्छा फैसला किया है।
मदनी ने कहा कि इस बात को सीजेआई ने कहा है कि जियो और जीने दो। ये जुमला बहुत मायने रखता है। आज की तारीख में भारत का मुसलमान खुद को निरुत्साहित महसूस कर रहा है। इसके तमाम कारण हैं। मुझे लगता है कि ये फैसला सभी के लिए इत्मिनान बख्स होगा। मैं यूपी मदरसा बोर्ड एसोसिएशन, टीचर्स एसोसिएशन को उनकी लड़ाई के लिए मुबारकबाद देता हूं।
मदनी ने कहा कि जिस तरह सांप्रदायिक ताकतें और सत्ता में बैठे कई मंत्री खुलेआम हिंसा की अपील कर रहे हैं, मदरसों के अस्तित्व पर हमला कर रहे हैं, इस संदर्भ में सुप्रीम कोर्ट का यह बयान एक महत्वपूर्ण संदेश है।
क्या है पूरा मामला?
दरअसल यूपी का मदरसा एक्ट संवैधानिक है या असंवैधानिक, इस पर सुप्रीम कोर्ट के तीन जजों की बेंच ने फैसला सुनाया और सुप्रीम कोर्ट ने यूपी मदरसा बोर्ड एक्ट 2004 को संवैधानिक घोषित कर दिया। यानी यूपी मदरसा बोर्ड की संवैधानिकता को बरकरार रखा गया है। हालांकि कुछ प्रावधानों को छोड़ा गया है लेकिन 'उत्तर प्रदेश मदरसा शिक्षा बोर्ड अधिनियम 2004' की संवैधानिक वैधता को बरकरार रखा गया है।
गौरतलब है कि इससे पहले इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ बेंच ने 22 मार्च को यूपी मदरसा बोर्ड एक्ट को असंवैधानिक बताया था और सभी छात्रों का दाखिला सामान्य स्कूलों में करवाने का आदेश दिया था। हालांकि, हाई कोर्ट के इस फैसले पर सुप्रीम कोर्ट ने 5 अप्रैल को रोक लगा दी थी।