हाल ही में गुजरात और हिमाचल प्रदेश के विधानसभा चुनाव संपन्न हुए। इन चुनावों में गुजरात में बीजेपी ने ऐतिहासिक जीत हासिल की तो वहीं हिमाचल प्रदेश में कांग्रेस ने बाजी मारी। जहां एक तरफ बीजेपी गुजरात फतह का जश्न मन रही है तो वहीं हिमाचल हारने का गम भी उसे रह-रहकर कचोट रहा होगा। राजनीतिक पंडितों की मानें तो हिमाचल में बीजेपी की हार की सबसे बड़ी वजह गुटबाजी रही है। प्रदेश बीजेपी में कई नेताओं के अपने-अपने गुट थे। यह गुट अपने विरोधी पार्टी को हराने से ज्यादा अपने ही पार्टी के नेताओं को निपटाने में व्यस्त रहे। चुनाव से पहले आलाकमान ने कहा भी था कि राज्य में सब एकजुट हैं। कहीं कोई गुट नहीं है, लेकिन जमीन पर हालात कुछ और ही थे।
अब हिमाचल बीजेपी के हाथों से निकल गया। लेकिन यह अकेला ऐसा राज्य नहीं है जहां बीजेपी के कई गुट हों। राजस्थान, मध्य प्रदेश, पश्चिम बंगाल और कर्नाटक में भी पार्टी कई गुटों में बंटी हुई है। पंडितों की मानें अगर पार्टी आलाकमान इन गुटों को संगठित नहीं करता है तो यहां भी बीजेपी को भारी नुकसान उठाना पड़ सकता है।
राजस्थान बीजेपी में हैं 3 गुट
राजस्थान की बात आते ही अक्सर लोग कांग्रेस की गुटबाजी की बात करने लगते हैं। हाल ही में हुई घटनाओं ने तो खूब सुर्खियां बटोरी थीं। लेकिन यहां बीजेपी के गुट भी कम नहीं हैं। सरकार में न होने की वजह से इन्हें सुर्खियां नहीं मिलती है लेकिन यह गुट बीजेपी को भारी नुकसान पहुंचा सकते हैं। राज्य में पूर्व सीएम वसुंधरा राजे और केंद्रीय मंत्री गजेन्द्र सिंह शेखावत के बीच अक्सर अदावतें होती रहती हैं। दोनों गुटों के नेताओं और कार्यकर्ताओं में कई बार झडपें भी हुई हैं। इसके साथ ही वसुंधरा गुट बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष सतीश पुनिया के खिलाफ भी मोर्चा खोले रहता है। राजनीतिक पंडितों की मानें तो अगर आलाकमान ने अगर राज्य में गुटबाजी का कोई समाधान नहीं खोजा तो अगले साल के अंत में होने वाले विधानसभा चुनाव में उसकी सत्ता वापसी का सपना बस एक सपना बनकर ही रह जाएगा।
कर्नाटक में तो गुटबाजी अपने चरम पर
राजस्थान की तरह कर्नाटक बीजेपी में भी गुटबाजी अपने चरम पर है। यहां पूर्व मुख्यमंत्री बीएस येद्दियुरप्पा और वर्तमान सीएम बीएस बोम्मई गुट आमने-सामने है। पार्टी ने यहां चुनाव हारने के बावजूद साल 2019 में सरकार बना ली थी। लेकिन अगले साल होने वाले चुनावों उसकी राह बेहद कांटों भरी रहने वाली है और उसके रास्ते में पहला कांटा उसके ही नेता बनेंगे। 2019 में सरकार बनाने के बाद येद्दियुरप्पा मुख्यमंत्री बने लेकिन जुलाई 2021 में आलाकमान ने नेतृत्व परिवर्तन करते हुए येद्दियुरप्पा को हटाकर बीएस बोम्मई को राज्य का सीएम बना दिया। इसके बाद से ही येद्दियुरप्पा गुट हाईकमान और सीएम के खिलाफ मोर्चा खोले हुए हैं।
राज्य में जातिगत व अन्य समीकरणों को देखें तो येद्दियुरप्पा की पकड़ बेहद मजबूत है। इस लिहाज से पार्टी येद्दियुरप्पा को नाराज नहीं रख सकती। जिसके बाद बीजेपी ने उन्हें केंद्रीय पार्लियामेंट बोर्ड का सदस्य भी नियुक्त किया था, लेकिन जानकारों का मानना है कि येद्दियुरप्पा अभी भी आलाकमान से नाराज हैं और इसका नुकसान पार्टी को विधानसभा चुनावों में देखने को मिल सकता है।
मध्य प्रदेश, जहां पार्टी के सबसे ज्यादा गुट
मध्य प्रदेश, भारतीय जनता पार्टी का गढ़। पार्टी यहां पिछले कई वर्षों से सत्ता में आसीन। हालांकि कुछ समय के लिए वह विपक्ष में भी रही लेकिन अपनी रणनीति की बदौलत पार्टी ने कांग्रेस की सरकार को बाहर करके सत्ता में वापसी कर ली। लेकिन इससे पार्टी की मुश्किलें और भी बढ़ गईं। आप पूछेंगे कैसे? तो इसका जवाब है कि पार्टी यहां पहले से ही गुटबाजी से परेशान थी और सिंधिया समर्थक विधायकों और कार्यकर्ताओं के शामिल होने के बाद एक गुट और बढ़ गया।
यहां मुख्यमंत्री शिवराज सिंह का पाना गुट माना जाता है तो वहीं गृह मंत्री नरोत्तम मिश्रा का अपना गुट। इसके अलावा और न जाने कितने ही गुट पार्टी में चल रहे हैं। इसके ऊपर एक सिंधिया गुट और भी बढ़ गया। सरकार बनाने की मज़बूरी में पार्टी ने सिंधिया गुट को थोड़ी ज्यादा तवज्जो दी, जिसकी बानगी कई जगह देखने को मिली। पार्टी में सभी गुट एक-दूसरे पर लगातार हावी हैं और रह-रहकर गुटों के बीच तल्खी की ख़बरें भी मीडिया में आती हैं।
पार्टी में कई गुटों का होना बीजेपी को नुकसान पहुंचा सकता है तो वहीं कांग्रेस के लिए फायदेमंद साबित हो सकता है। कांग्रेस के एक नेता के अनुसार, "जिस गुट की वजह से 2020 में कांग्रेस सत्ता से बाहर हुई थी और बीजेपी ने बैकडोर से सरकार बनाई। अब वही गुट बीजेपी की चिंता बढ़ा रहा है और अगले साल होने वाले विधानसभा चुनावों में कांग्रेस की प्रदेश सरकार में वापसी की एक वजह बनेगा।"
भारतीय जनता पार्टी के सभी प्रदेश संगठनों में कई गुट सक्रिय हैं। उत्तर प्रदेश चुनावों में भी कुछ गुट सक्रिय हुए थे लेकिन आलाकमान ने वक़्त रहते हुए गुटबाजी को संभल लिया था और सत्ता में वापसी की थी। लेकिन हिमाचल चुनाव के समय ऐसा नहीं हो पाया और परिणामस्वरुप बीजेपी को उसके ही राष्ट्रीय अध्यक्ष के गृह राज्य में ही पराजय का सामना करना पड़ा। राजनीतिक पंडितों का मनाना है कि हिमाचल से बीजेपी का आलाकमान सबक लेगा और अन्य राज्यों में चल रहे गुटों को इकट्ठा करके संगठन को मजबूत करेगा।