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EWS के लिए 10 फीसदी आरक्षण बरकरार रखने के सुप्रीम कोर्ट के फैसले का स्वागत: मल्लिकार्जुन खरगे

कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने EWS आरक्षण बरकरार रखने के सुप्रीम कोर्ट के फैसले का स्वागत किया है। उन्होंने कहा कि यह एक संशोधन था जिसे संसद में सर्वसम्मति से पारित किया गया था।

Edited By: Vineet Kumar Singh @JournoVineet
Published : Nov 08, 2022 9:01 IST, Updated : Nov 08, 2022 9:02 IST
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Image Source : PTI कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे।

बेंगलुरु: कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने सोमवार को आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग (EWS) के लिए 10 प्रतिशत आरक्षण बरकरार रखने के सुप्रीम कोर्ट के फैसले का स्वागत किया। खरगे ने एक सवाल के जवाब में कहा, ‘यह एक संशोधन था जिसे संसद ने सर्वसम्मति से पारित किया था। सर्वोच्च न्यायालय ने इसे बरकरार रखा है। मैं इसका स्वागत करता हूं।’ बता दें कि सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए दाखिले और सरकारी नौकरियों में EWS के लिए 2019 में शुरू किए गए 10 प्रतिशत आरक्षण को बरकरार रखा। SC/ST/OBC श्रेणियों के गरीबों को इस आरक्षण के दायरे से बाहर रखा गया था।

‘EWS कोटा तो ठीक है, लेकिन...’

कोर्ट ने अपने फैसले में सोमवार को कहा कि शैक्षणिक संस्थानों और सरकारी नौकरियों में EWS कोटा ठीक है, लेकिन पहले से आरक्षण का फायदे उठा रहे SC/ST/OBC को इससे बाहर रखना नया अन्याय बढ़ाएगा। अदालत ने EWS के लिए शैक्षणिक संस्थानों में नामांकन और सरकारी नौकरियों में 10 प्रतिशत आरक्षण का प्रावधान करने वाले 103वें संविधान संशोधन की वैधता को 3:2 के बहुमत वाले फैसले से सोमवार को बरकरार रखा। जस्टिस दिनेश महेश्वरी, जस्टिस बेला एम. त्रिवेदी और जस्टिस जे. बी. पारदीवाला ने इस संविधान संशोधन को बरकरार रखा, जबकि जस्टिस एस. रवींद्र भट और चीफ जस्टिस उदय उमेश ललित ने अल्पमत वाले अपने फैसले में इससे असहमति जताई।

‘उपबंध मनमाने तरीके से संचालित’
जस्टिस भट ने अपना और चीफ जस्टिस ललित का करीब 100 पन्नों का फैसला लिखा। जस्टिस भट ने कहा कि सामाजिक रूप से वंचित वर्गों और जातियों को उनके आवंटित आरक्षण कोटा के अंदर रख कर पूरी तरह से इसके दायरे से बाहर रखा गया है। यह उपबंध पूरी तरह से मनमाने तरीके से संचालित होता है। उन्होंने कहा कि संवैधानिक रूप से मान्यता प्राप्त पिछड़े वर्गों को इसके दायरे से पूरी तरह से बाहर रखना और एससी-एसटी समुदायों को बाहर रखना कुछ और नहीं, बल्कि भेदभाव है जो समता के सिद्धांत को कमजोर और नष्ट करता है।

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