ऐसे तो सियासत में बदलाव कोई नई बात नहीं है, लेकिन बिहार में यह साल सियासत में बडे उठा-पटक के रूप में याद किया जाएगा। साल के शुरूआत में तो सियासी समीकरण सामान्य दिखे थे लेकिन छह महीने गुजरने के बाद शुरू हुआ बनने-बिगड़ने का खेल साल के अंत तक जारी रहा, जिस कारण पुराने सियासी दोस्त दुश्मन बन गए जबकि कई सियासी दुश्मन गलबहियां देते नजर आ रहे हैं।
अंतिम पायदान पर बिहार: तेजस्वी
इस वर्ष की शुरूआत में यानी एक जनवरी 2022 को राजद के नेता तेजस्वी यादव ने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार पर निशाना साधते हुए कहा था कि 15-16 साल तो सबने देखा है। इतने साल शासन के बाद भी सबसे अंतिम पायदान पर बिहार है तो आखिर दोषी कौन है। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की डबल इंजन की सरकार है तो फिर कौन बिहार के पिछड़ेपन का जिम्मेदार है।
उन्होंने कहा कि बिहार में शिक्षा, स्वास्थ्य का हाल बुरा है। कल-कारखाने नहीं लगे हैं। बाढ़-सुखाड़ से लोग परेशान रहते हैं। महंगाई चरम पर है। पेट्रोल-डीजल सौ के पार है। अगर ये सब काम नहीं हुआ तो इसका दोषी दूसरा तो नहीं ठहराया जाएगा।
नीतीश कुमार पर सियासी हमला बोला
साल के पहले दिन तेजस्वी ने भले ही नीतीश कुमार पर सियासी हमला बोला हो, लेकिन नौ अगस्त को नीतीश कुमार अचानक राजभवन पहुंचकर मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देकर एनडीए से बाहर होकर बहुत बड़े उल्टफेर के संकेत दे दिए। इसके एक दिन के बाद ही यानी 10 अगस्त को नीतीश कुमार ने महागठबंधन में शामिल दलों की मदद से राज्य में आठवीं बार मुख्यमंत्री पद की शपथ ली और राजद के नेता तेजस्वी यादव राज्य में फिर से उपमुख्यमंत्री बनाए गए।
नीतीश कुमार बने विपक्षी दलों के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार
इस बीच, बिहार में सत्तारूढ़ राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) को झटका देते हुए हिंदुस्ताान अवाम मोर्चा (हम) के नेता और पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी ने भी राजग का साथ छोड़ दिया और महागठबंधन की सरकार में शामिल हो गए। इसके बाद जदयू ने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को विपक्षी दलों के प्रधानमंत्री पद के रूप में सर्वाधिक योग्य उम्मीदवार को लेकर प्रचारित किया। राजद नेता तेजस्वी यादव ने भी नीतीश को प्रधानमंत्री पद के योग्य उम्मीदवार के रूप में अपनी सहमति दे दी।
इस दौरान, मार्च में ही भाजपा ने विकासशील इंसान पार्टी (वीआईपी) के तीन विधायकों को तोड़कर अपनी पार्टी में मिलाकर विधानसभा में सबसे बड़ी पार्टी बन गई। वैसे, भाजपा ज्यादा दिनों तक विधानसभा में सबसे बड़ी पार्टी नहीं रह सकी। राजद ने कुछ ही दिनों के बाद एआईएमआईएम के पांच में चार विधायकों को अपनी पार्टी में शामिल कर फिर से बड़ी पार्टी का तगमा बरकरार रखा।
JDU को नहीं मिला अधिक लाभ
वैसे, इस सत्ता परिवर्तन के बाद गौर से देखा जाए तो जदयू को बहुत लाभ नहीं हुआ। सत्ता परिवर्तन के बाद विधानसभा के लिए हुए उपचुनावों में जदयू को बहुत ज्यादा लाभ नहीं मिल सका। सत्ता परिवर्तन के बाद गोपालगंज, मोकामा और कुढ़नी में हुए उपचुनाव में मोकामा में राजद के प्रत्याशी विजयी रहे तो गोपालगंज और कुढ़नी में भाजपा के प्रत्याशियों ने जीत दर्ज की। कुढ़नी में जदयू को तो गोपालगंज में राजद के प्रत्याशी को हार का सामना करना पड़ा।
बहरहाल, इस एक साल में बिहार की राजनीति में बनते-बिगड़ते रिश्तों के बीच, अब सभी की नजर नए साल पर है, जहां क्या समीकरण बनेंगे और बिगड़ेगें, यह देखना दिलचस्प होगा।