Highlights
- यह सत्र एक बार फिर सरकार और विपक्ष के बीच टकराव का गवाह बना।
- शीतकालीन सत्र में हंगामे की शुरुआत 12 विपक्षी सांसदों के निलंबन के बाद हुआ।
- शीतकालीन सत्र ने बीजेपी नेतृत्व वाली एनडीए और विपक्ष के बीच खटास को और बढाने का काम किया।
नई दिल्ली: सरकार और विपक्ष में टकराव के बीच संसद का शीतकालीन सत्र तय वक्त से एक दिन पहले ही खत्म हो गया। इस दौरान लोकसभा और राज्यसभा में विभिन्न मुद्दों पर जबर्दस्त हंगामा हुआ। संसद का शीतकालीन सत्र 29 नवंबर को शुरू हुआ था जो 22 दिसंबर को खत्म हुआ। हालांकि सरकार का कहना है कि दोनों सदनों में रिकॉर्ड काम हुआ है। उनका कहना है कि इस शीतकालीन सत्र में लोकसभा में करीब 82 फीसदी और राज्यसभा में 48 फीसदी काम हुआ, लेकिन अब सवाल उठ रहे हैं कि सरकार ने बिना चर्चा और बिना नोटिस के कई अहम बिल क्यों पेश किए।
यह सत्र एक बार फिर सरकार और विपक्ष के बीच टकराव का गवाह बना। शीतकालीन सत्र में हंगामे की शुरुआत 12 विपक्षी सांसदों के निलंबन के बाद हुआ। इन सांसदों को मानसून सत्र के दौरान राज्यसभा में भारी हंगामा करने के आरोप में निलंबित किया गया। वहीं, तृणमूल कांग्रेस के नेता डेरेक ओ ब्रायन को सेक्रेटरी जनरल पर रूल बुक फेंकने के मामले में 21 दिसंबर को सस्पेंड कर दिया गया।
शीतकालीन सत्र ने बीजेपी नेतृत्व वाली एनडीए और विपक्ष के बीच खटास को और बढाने का काम किया। जहां सरकार ने कहा कि वह दोनों सदनों के पटल पर हर विषय पर चर्चा के लिए तैयार है, वहीं विपक्ष ने ट्रेजरी बेंचों पर आरोप लगाया। इस दौरान हंगामे के बीच सरकार ने वोटर कार्ड को आधार नम्बर से जोड़ने समेत कई अन्य बिल बिना चर्चा के पास करा दिए।
कांग्रेस और ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस ने सरकार पर राज्यसभा में बहुमत के लिए सांसदों को निलंबित करने का आरोप लगाया। उनका आरोप था कि हंगामे में बिना चर्चा के अहम बिलों को पास करवाने के लिए हीं इन सांसदों को नियम के विपरीत सस्पेंड किया गया।
सत्र के दौरान कुल 13 नए बिल पेश किए गए जिनमें 12 लोकसभा जबकि 1 बिल राज्यसभा में पेश किया गया। कुल 11 बिल ऐसे रहे जो दोनों सदनों से पारित किए गए। पारित होने वाले बिलों में सबसे अहम रहा तीनों कृषि कानूनों को वापस लेने वाला बिल, जिसे सत्र के पहले दिन ही दोनों सदनों से पारित किया गया।
इसके अलावा वोटर कार्ड को आधार नम्बर से जोड़ने समेत कुछ अन्य चुनावी सुधारों से जुड़ा बिल भी दोनों सदनों से पारित हो गया। वहीं विरोध के बावजूद सीबीआई और ईडी निदेशक के कार्यकाल को पांच सालों तक विस्तार देने वाला बिल भी पारित करवा लिया गया। एक अन्य बिल जिसपर आने वाले दिनों में बवाल होना तय है वो लड़कियों की शादी की उम्र सीमा 18 साल से 21 साल करने को लेकर है। बिल को लोकसभा में पेश करने के बाद स्टैंडिंग कमिटी में भेजा गया है।