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Heat wave : सहारा रेगिस्तान सी तप रही धरती, पिछले 120 वर्षों में सबसे भीषण गर्मी झेल रहा उत्तर भारत

Heat wave: उत्तर भारत में लू का कहर जारी है। धरती सहारा के रेगिस्तान की तरह तप रही है। अब तक दर्जनों लोगों की मौत हो चुकी है। मौसम से जुड़े वैज्ञानिकों का मानना है कि इस साल गर्मी के मौसम में तापमान ‘‘चिंताजनक है, हालांकि आश्चर्यजनक नहीं है।’’

Edited By: Niraj Kumar @nirajkavikumar1
Published on: June 02, 2024 19:43 IST
Heat Wave- India TV Hindi
Image Source : PTI उत्तर भारत में भीषण गर्मी

नई दिल्ली: उत्तर भारत इन दिनों भीषण गर्मी की मार झेल रहा है। यहां कई जगह तापमान 50 डिग्री के आसपास पहुंच गया है जो अपने आप में एक रिकॉर्ड है। उत्तर भारत में पिछले कुछ दिनों में लू के चलते कई लोगों को जान गंवानी पड़ी हैं वहीं दूसरे ओर पूर्वोत्तर में बाढ़ व भूस्खलन ने लाखों लोगों को प्रभावित किया। जलवायु वैज्ञानिकों का मानना है कि इस साल गर्मी के मौसम में तापमान ‘‘चिंताजनक है, हालांकि आश्चर्यजनक नहीं है।’’ भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) गांधीनगर में सिविल इंजीनियरिंग और पृथ्वी विज्ञान विभाग के विक्रम साराभाई चेयर के प्रोफेसर विमल मिश्रा ने बताया, ‘‘यह पिछले 120 वर्षों में उत्तर भारत के लिए सबसे भीषण गर्मी हो सकती है। इतने बड़े क्षेत्र में जो घनी आबादी वाला भी है, तापमान कभी इतना अधिक, 45-47 डिग्री सेल्सियस से ज्यादा नहीं रहा है। यह अपने आप में एक रिकॉर्ड है।’’ मिश्रा के अनुसार, ‘‘अफ्रीका के सहारा रेगिस्तान के समान तापमान कम से कम तीन या चार डिग्री तक अधिक है।’’ 

पश्चिम एशिया बहुत तेजी से गर्म हो रहा 

आईआईटी मुंबई में पृथ्वी प्रणाली के वैज्ञानिक रघु मुर्तुगुडे ने कहा कि यह जलवायु परिवर्तन, अल-नीनो और जनवरी 2022 में टोंगा के हुंगा टोंगा ज्वालामुखी विस्फोट से निकले जलवाष्प का मिलाजुला प्रभाव है। अल-नीनो की स्थिति में समुद्र के सतह का तापमान बढ़ता है जिससे विश्व का मौसम प्रभावित होता है। मुर्तुगुडे ने कहा, ‘‘पश्चिम एशिया बहुत तेजी से गर्म हो रहा है क्योंकि रेगिस्तान ‘ग्लोबल वार्मिंग’ के दौरान उष्मा को अवशोषित कर लेता है - गर्म वायुमंडल अधिक आर्द्र होता है और जल वाष्प एक ग्रीनहाउस गैस है।’’ उन्होंने कहा कि इस उष्मा के कारण अरब सागर के ऊपर की हवाएं गर्मियों में और मानसून के दौरान भी उत्तर की ओर मुड़ जाती हैं। ये हवाएं अरब सागर को बहुत तेजी से गर्म कर रही हैं और दिल्ली में अधिक आर्द्रता वाली हवाएं ला रही हैं, जिससे ‘हीट इंडेक्स’ बढ़ रहा है। 

दिल्ली में कंक्रीट के स्ट्रक्चर से हालात और बिगड़े

मुर्तुगुडे ने कहा, ‘‘हालांकि, दिल्ली में कंक्रीट के ढांचों ने स्थिति को और भयावह कर दिया है। शहरों में कंक्रीट और डामर से बनी सतह दिन में उष्मा को अवशोषित कर लेती है और शाम को तापमान गिरने पर इसे वायुमंडल में मुक्त कर देती है। यह उष्मा अंतरिक्ष में नहीं जाती, बल्कि इमारतों के बीच ही रहती है और रात के समय वातावरण को ठंडा होने से बाधित करती है।’’ मिश्रा ने कहा कि इस तरह की अत्यधिक उष्मा सार्वजनिक स्वास्थ्य, बिजली, पानी की आपूर्ति और अर्थव्यवस्था पर व्यापक प्रभाव डालती है। विभिन्न अध्ययनों ने लंबे समय तक रहने वाली लू की स्थिति को अस्पताल में मरीजों की संख्या बढ़ने, समयपूर्व बच्चों का जन्म और गर्भवती महिलाओं में गर्भपात जैसे प्रतिकूल परिणामों से जोड़ा है। अध्ययन में जलवायु परिवर्तन के कारण दुनिया भर में मुद्रास्फीति में वृद्धि और सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में गिरावट का भी अनुमान लगाया गया है। 

दिल्ली में 29 मई को मौसम विभाग के मुंगेशपुर केंद्र पर 52.9 डिग्री सेल्सियस तापमान दर्ज किया गया था और शहर में बिजली की मांग 8,302 मेगावाट के रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच गई। हालांकि, मौसम विभाग ने शनिवार को कहा था कि उत्तर-पश्चिमी दिल्ली के मुंगेशपुर स्थित स्वचालित मौसम विज्ञान केंद्र (एडब्ल्यूएस) द्वारा 52.9 डिग्री सेल्सियस तापमान सेंसर में गड़बड़ी के कारण दर्ज किया गया था। आईएमडी ने कहा कि मौसम संबंधी अनुमान लगाने के लिए स्थापित ऐसे उपकरणों की जांच की जाएगी। वहीं, सफदरजंग मौसम केंद्र में दर्ज किया गया उस दिन का अधिकतम तापमान 46.8 डिग्री सेल्सियस था, जो 79 साल का उच्चतम तापमान है। इसने 17 जून 1945 को दर्ज किए गए 46.7 डिग्री सेल्सियस के पिछले रिकॉर्ड को तोड़ दिया। 

नॉर्थ ईस्ट में छह लाख लोग प्रभावित

इस सप्ताह असम और मणिपुर में अचानक बाढ़ आई और मिजोरम और मेघालय में चक्रवात ‘रेमल’ के कारण भूस्खलन हुआ। इससे कम से कम छह लाख लोग प्रभावित हुए हैं। मुर्तुगुडे ने कहा, ‘‘रेमल चक्रवात, (अल-नीनो प्रभाव के कारण) बंगाल की खाड़ी से आने वाली उष्मा के कारण स्थल पर लंबे समय तक बना रहा। चक्रवात के कारण बहुत अधिक वर्षा हुई।’’ अमेरिका स्थित वैज्ञानिकों के स्वतंत्र समूह ‘क्लाइमेट सेंट्रल’ के विश्लेषण से पता चला है कि जलवायु परिवर्तन के कारण भारत में वसंत ऋतु की अवधि कम हो रही है, और सर्दियां तेजी से गर्मियों जैसी स्थितियों में बदल रही हैं। शोधार्थियों के अनुसार, देश के कई उत्तरी क्षेत्रों में वसंत ऋतु अब देखने को नहीं मिल रही है। (इनपुट-भाषा)

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