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Election Results: देश में सियासत का तरीका बदल सकती है आजमगढ़ और रामपुर में बीजेपी की जीत

आजमगढ़ की सीट पर निरहुआ को निश्चित तौर पर मुकाबले के त्रिकोणीय होने का फायदा मिला।

Written by: Vineet Kumar Singh @VickyOnX
Published : June 28, 2022 19:04 IST
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Image Source : PTI FILE BJP supporters during an election campaign rally.

Highlights

  • आजमगढ़ और रामपुर की सीटें हारना समाजवादी पार्टी के लिए एक बड़ा झटका है।
  • अखिलेश का प्रचार के लिए न निकलना भी पार्टी की हार का एक कारण माना जा रहा है।
  • 2024 के लोकसभा चुनावों के दौरान देश को सियासत में नए प्रयोग दिखने को मिल सकते हैं।

Election Results: भारतीय जनता पार्टी ने उत्तर प्रदेश की आजमगढ़ और रामपुर लोकसभा सीटों पर हुए उपचुनावों में शानदार जीत दर्ज की है। खास बात यह है कि इन दोनों ही सीटों की डेमोग्राफी बीजेपी के पक्ष में नजर नहीं आती है। इसके बावजूद इन सीटों पर भगवा परचम का लहराना आने वाले दिनों में देश की सियासत की दशा और दिशा, दोनों बदल सकता है। आइए, जानते हैं आजमगढ़ और रामपुर में बीजेपी की जीत का देश में सियासत के तरीके पर क्या असर पड़ सकता है।

दोनों सीटों पर बीजेपी के इन नेताओं ने दर्ज की जीत

आजमगढ़ में बीजेपी नेता और भोजपुरी फिल्मों के ऐक्टर दिनेश लाल यादव 'निरहुआ' ने सपा नेता और अखिलेश यादव के चचेरे भाई धर्मेंद्र यादव को पटखनी दी। वहीं, रामपुर में बीजेपी के घनश्याम लोधी ने सपा नेता आसिम राजा को हराया। आजमगढ़ की सीट पर निरहुआ को निश्चित तौर पर मुकाबले के त्रिकोणीय होने का फायदा मिला। वहीं, रामपुर में आसिम राजा के लिए आजम खां ने वोटरों से इमोशनल अपील की थी, इसके बावजूद घनश्याम लोदी की जीतना खास हो जाता है।

आजमगढ़ और रामपुर की जीत इसलिए है खास
आजमगढ़ और रामपुर, दोनों ही लोकसभा सीटों की डेमोग्राफी पर नजर डालें, तो पहली नजर में ये कहीं से भी बीजेपी के पक्ष में नजर नहीं आती है। रामपुर की सीट पर जहां आधे वोटर मुसलमान हैंं, वहीं आजमगढ़ की सीट पर मुसलमान और यादव वोटर मिलाकर कुल मतदाताओं का 40 फीसदी हैं। इन दोनों ही सीटों के समीकरण समाजवादी पार्टी के पक्ष में नजर आते हैं। ऐसे में यहां बीजेपी की जीत ने समाजवादी पार्टी और अन्य विपक्षी दलों को चिंता में जरूर डाल दिया होगा।

आजमगढ़ और रामपुर में बीजेपी की जीत के कारण
आजमगढ़ और रामपुर में बीजेपी की जीत कुछ हद तक सियासी जानकारों को भी चौंका रही है। हालांकि उनका मानना है कि इन दोनों सीटों पर बीजेपी को सपा की लचर रणनीति का भी फायदा मिला है। सपा सुप्रीमो अखिलेश यादव का प्रचार के लिए न निकलना भी दोनों सीटों पर पार्टी की हार का एक कारण रहा है। सियासी एक्सपर्ट्स बताते हैं कि रामपुर में वोटों का ध्रुवीकरण और मुसलमानों का मतदान के लिए कम निकलना, जबकि आजमगढ़ में सपा और बसपा में मुस्लिम वोटरों का बंटवारा बीजेपी की जीत के बड़े कारण हैं।

देश में बदलने वाली है सियासत की दिशा!
आजमगढ़ और रामपुर में बीजेपी की जीत इस देश की सियासत की दिशा बदलने वाली साबित हो सकती है। मुस्लिम वोट बैंक के मिथ को बीजेपी ने 2014 में ही ध्वस्त कर दिया था, और इसके बाद वे पार्टियां भी 'सॉफ्ट हिंदुत्व' की तरफ मुड़ने को मजबूर हो गई थीं, जो कभी इसकी बात ही नहीं करती थीं। रामपुर और आजमगढ़ के नतीजों के बाद मुसलमान जहां एक नया नेतृत्व खड़ा करने की तरफ कदम बढ़ा सकते हैं, वहीं विपक्षी पार्टियां हिंदुत्व के मुद्दे पर और खुलकर सामने आ सकती हैं।

2024 में दिख सकते हैं राजनीति में नए प्रयोग
2024 के लोकसभा चुनावों के दौरान देश को सियासत में नए प्रयोग दिखने को मिल सकते हैं। हाल के दिनों में देखने को मिला है कि कुछ बड़ी विपक्षी पार्टियों ने मुसलमानों से जुड़े मुद्दों को पहले की तरह उठाना बंद कर दिया है, या बिल्कुल कम कर दिया है। कांग्रेस जरूर कभी-कभी इन मुद्दों पर बात करती नजर आती है। 2024 के चुनावों में यदि मुसलमानों से जुड़े मुद्दे सियासी दलों की चर्चा से बाहर ही दिखें तो आश्चर्य नहीं होना चाहिए। ये चुनाव आने वाले कई सालों के लिए देश का भविष्य तय कर देंगे।

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