केंद्र सरकार ने राष्ट्रपति भवन में स्थित मुगल गार्डन का नाम बदलकर अमृत गार्डन कर दिया। अब इस विषय पर राजनीति जोर पकड़ती जा रही है। इसी विषय को लेकर सीपीआई के सांसद बिनॉय विश्वम ने राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को पत्र लिखकर विरोध जताया है। उन्होंने मुग़ल गार्डन के नाम बदलने को देश के इतिहास पर चोट बताया है। सीपीआई के राज्यसभा सांसद बिनॉय विश्वम ने राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को मुलिखे पत्र में कहा, इतिहास से मुगल शब्द को मिटाने की कोशिश को केवल भारतीय इतिहास को फिर से लिखने और राष्ट्रवाद को फिर से परिभाषित करने के प्रयास के रूप में देखा जा सकता है।"
वहीं इससे पहले उन्होंने ट्वीट करके सरकार के फैसले पर सवाल उठाए थे। उन्होंने कहा था, "मुगल काल भारतीय इतिहास का एक हिस्सा है। एक साम्राज्य का हिस्सा होने के नाते, उन शासकों के कुछ प्लस और माइनस पॉइंट हैं। यही हाल हिंदू साम्राज्यों का भी है। इतिहास से मुगल शब्द को मिटाने की कोशिश साम्प्रदायिकता से प्रेरित है।" उन्होंने कहा कि दुर्भाग्य की बात यह है कि इस काम के लिए राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को इसका जरिया बनाया गया है।
बता दें कि सरकार ने 28 जनवरी को मुगल गार्डन का नाम बदलकर अमृत उद्यान कर दिया था। इस बदलाव के बारे में सूचना देते हुए राष्ट्रपति के उप प्रेस सचिव नविका गुप्ता ने कहा, "स्वतंत्रता के 75 वर्ष पूरे होने के अवसर पर 'आजादी का अमृत महोत्सव' के तहत भारत के राष्ट्रपति ने राष्ट्रपति भवन के बगीचों को 'अमृत उद्यान' के रूप में एक सामान्य नाम दिया है।
5 एकड़ में फैला है गार्डन
5 एकड़ के विशाल विस्तार में फैले, राष्ट्रपति भवन में स्थित मुगल गार्डन के लिए जम्मू और कश्मीर के मुगल गार्डन, ताजमहल के आसपास के बगीचों और यहां तक कि भारत और फारस के लघु चित्रों से प्रेरणा ली गई है। जैसे राष्ट्रपति भवन की इमारत में वास्तुकला की दो अलग-अलग शैलियां हैं- भारतीय और पश्चिमी, उसी तरह, मुगल गार्डन में दो अलग-अलग बागवानी परंपराएं हैं, जिसमें मुगल शैली और अंग्रेजी फूलों का बगीचा शामिल है। मुगल नहरों, छतों और फूलों की झाड़ियों को यूरोपीय फूलों, लॉन और निजी हेजेज के साथ खूबसूरती से मिश्रित किया गया है। हर्बल गार्डन आदि के अलावा विभिन्न प्रकार के गुलाब, ट्यूलिप और हर्बल गार्डन मुगल गार्डन के प्रमुख आकर्षण हैं।
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