Highlights
- 'RBI पर सरकार की मंशा मानने के लिए दबाव बनाया गया है'
- सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों की संख्या घटाकर 12 कर दी गई
- बैंकों के विलय के समर्थन की बात से RBI ने किया इनकार
Congress On BJP: कांग्रेस ने भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) के बुलेटिन में प्रकाशित शोधपत्र का हवाला देते हुए शनिवार को केंद्र सरकार पर निशाना साधा। पार्टी ने कहा कि सरकार को एक श्वेत पत्र जारी कर बताना चाहिए कि सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के निजीकरण को लेकर उसकी मंशा क्या है। कांग्रेस प्रवक्ता सुप्रिया श्रीनेत ने यह आरोप भी लगाया कि सरकार के दबाव के कारण आरबीआई को अपने उस शोधपत्र को खारिज करना पड़ा, जिसमें सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों और उनकी दक्षता की तारीफ की गई है।
'RBI पर दबाव बनाया गया है'
उन्होंने मीडिया से कहा, ‘‘सरकार ने आरबीआई पर दबाव डाला कि वह इस मामले में स्पष्टीकरण दे। इसके बाद आरबीआई ने इस शोधपत्र को अपना मानने से इनकार कर दिया और कहा कि यह उसके नहीं, बल्कि लेखक के विचार हैं। यह पहली बार नहीं है, जब आरबीआई पर सरकार की मंशा मानने के लिए दबाव बनाया गया है।’’ सुप्रिया ने कहा, ‘‘यह दुखद है कि कभी सार्वजनिक बैंकों की सराहना करने वाला आरबीआई अपने उस शोधपत्र को खारिज करने के लिए विवश हुआ है, जिसमें सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों और उनकी दक्षता की तारीफ की गई है।’’
सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों की संख्या घटाकर 12 कर दी गई
उन्होंने दावा किया, ‘‘सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों की संख्या घटाकर 12 कर दी गई है। यह बड़ी चिंता का विषय है। सरकार की योजना और बैंकों के निजीकरण की है।’’ सुप्रिया ने कहा, ‘‘एक भ्रम फैलाया जाता है कि बैंकों में सरकारी पैसा डालना पड़ता है। लेकिन सच्चाई यह है कि सरकार ने जो पैसा डाला है, उस पर बैंकों ने 4 गुना लाभ लौटाया है।’’ उन्होंने कहा, ‘‘हमारी मांग है कि सरकार श्वेत पत्र लेकर लाकर बताए कि बैंकों के निजीकरण को लेकर उसकी मंशा क्या है। सरकार यह भी बताए कि आरबीआई पर दबाव क्यों बनाया गया कि उसे अपनी ही रिपोर्ट को वापस लेना पड़ा?’’
विलय के समर्थन की बात से RBI ने किया इनकार
भारतीय रिजर्व बैंक ने शुक्रवार को कहा कि उसके बुलेटिन में प्रकाशित शोधपत्र में सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के धीरे-धीरे विलय के समर्थन की बात उसके विचार नहीं हैं, बल्कि यह लेखकों की अपनी सोच है। शोधपत्र आरबीआई बुलेटिन के अगस्त अंक में प्रकाशित हुआ है। इसमें कहा गया है, ‘‘सरकार के निजीकरण की ओर धीरे-धीरे बढ़ने से यह सुनिश्चित हो सकता है कि वित्तीय समावेश के सामाजिक उद्देश्य को पूरा करने में एक ‘शून्य’ की स्थिति नहीं बने।’’ शोधपत्र में यह भी कहा गया है कि हाल ही में सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के बड़े स्तर पर विलय से क्षेत्र में मजबूती आई है और अधिक प्रतिस्पर्धी बैंक सामने आए हैं।