1985 में उत्तर प्रदेश की बिजनौर लोकसभा सीट पर कांग्रेस की मीरा कुमार, जनता दल के राम विलास पासवान और बहुजन समाज पार्टी (बसपा) की मायावती के बीच दिलचस्प उपचुनाव मुकाबला हुआ था। इसमें मीरा कुमार ने जीत हासिल की थी लेकिन रामविलास पासवान को भी बिजनौर के लोगों द्वारा खूब पसंद किया गया था। यह पहली बार था जब कांग्रेस नेता मीरा कुमार चुनावी राजनीति में उतरीं और उनका सामना दो बड़े दलित नेताओं, राम विलास पासवान और मायावती से हुआ। एक दलित परिवार से आने वाली मीरा कुमार ने इस चुनौती स्वीकार किया और अनुसूचित जाति (SC) विरोधियों के खिलाफ अपनी उम्मीदवारी साबित की।
बिजनौर में डेरा डाले थे मुलायम सिंह और शरद यादव
कांग्रेस के गिरधारी लाल के निधन के बाद खाली हुई बिजनौर लोकसभा सीट पर 1985 में उपचुनाव हुआ था। कांग्रेस से बाबू जगजीवन राम की बेटी मीरा कुमार ने अपना पहला चुनाव लड़ा था। उनका मुकाबला उस समय लोकदल में रहे रामविलास पासवान से था। मान्यता प्राप्त दल नहीं होने के कारण बसपा प्रत्याशी होते हुए भी मायावती निर्दलीय मैदान में थी। बताया जाता है कि चुनाव में प्रचार करने के लिए मुलायम सिंह यादव, शरद यादव समेत कई नेता बिजनौर में कई दिनों तक डेरा डाले हुए थे।
हार के बावजूद चमके थे रामविलास पासवान
इस रोमांचक चुनाव में कांग्रेस की दलित नेता ने लोकदल प्रत्याशी राम विलास पासवान को 5,339 वोटों के अंतर से हराया। बसपा सुप्रीमो मायावती निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में चुनाव लड़ीं और वे तीसरे नंबर पर रहीं। मीरा कुमार को कुल 1,28,086 वोट मिले। वहीं, राम विलास पासवान को 1,22,747 वोट मिले जबकि मायावती को 61,504 वोट मिले। हार के बावजूद यह रामविलास पासवान की लोकप्रियता ही थी, कि हार का अंतर करीब 5 हजार वोट का ही रहा था।
लोकसभा चुनाव के बाद, मीरा कुमार को 1986 में विदेश मंत्रालय की सलाहकार समिति के सदस्य के रूप में नियुक्त किया गया था। मीरा कुमार पूर्व उपप्रधानमंत्री और प्रमुख अनुसूचित जाति नेता जगजीवन राम की बेटी हैं।
बिजनौर में 19 अप्रैल को हुई थी वोटिंग
2024 में, बिजनौर में मुख्य मुकाबला समाजवादी पार्टी (सपा) के दीपक सैनी, राष्ट्रीय लोक दल (RLD) के चंदन चौहान और बसपा के चौधरी विजेंद्र सिंह के बीच है। बिजनौर में पहले चरण में 19 अप्रैल को मतदान संपन्न हो चुका है।
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