Ghulam Nabi Azad : गुलाम नबी आज़ाद 9 साल से एक चिट्ठी लिखने की सोच रहे थे। एक ऐसी चिट्ठी जिसमें कांग्रेस और खासकर गांधी परिवार का पूरा चिट्ठा है। कांग्रेस कह रही है कि राहुल गांधी की कांग्रेस ने उन्हें राज्यसभा में नहीं भेजा तो आज़ाद ने कांग्रेस छोड़ दी। लेकिन पूरा सच क्या है? क्या राहुल ने मीटिंग में कहा कि, सारे नेता हाथ खड़े करें जिन्होंने मोदी को चौकीदार चोर कहा है। इस मीटिंग में गुलाम नबी आज़ाद और उनके करीबी सीनियर लीडर्स ने हाथ खड़े नहीं किए। मोदी को 'चौकीदार चोर है' ना कहना ही गुलाम नबी आज़ाद को महंगा पड़ा और इसी बात से राहुल को गुस्सा आया। कांग्रेस कहती है राहुल ने गुलाम नबी आज़ाद को बार-बार राज्यसभा भेजा और उन्हें राज्यसभा का विपक्ष का नेता बनाया। गुलाम नबी आज़ाद का तर्क दूसरा है। गुलाम नबी की बात यहां सही लगती है, गुलाम नबी आज़ाद को पिछले तीन बार से राज्यसभा की 'पक्की' सीट नहीं मिली, एक बार उन्हें तीस विधायकों का इंतजाम करना पड़ा। दूसरी बार 13 विधायक जुटाने पड़े और तीसरी बार 18 विधायक जुगाड़ करने पड़े।
गुलाम नबी आज़ाद और राहुल गांधी में झगड़ा कब शुरु हआ?
बात 2013 से शुरू हुई, जयपुर में कांग्रेस की बैठक थी। संगठन कैसे चुनाव लड़े, इस पर गुलाम ने पूरी रिपोर्ट पार्टी को सौंपी थी। अगले दिन इस रिपोर्ट पर चर्चा होनी थी, लेकिन अगले दिन राहुल को पार्टी का उपाध्यक्ष बना दिया गया और नौ साल से उस रिपोर्ट पर काम शुरू नहीं हुआ। गुलाम का दावा है कि उन्होंने बार-बार सोनिया गांधी और राहुल गांधी को याद दिलाया, लेकिन कुछ नहीं हुआ। इस बीच में राहुल गांधी 2014 और 2019 का लोकसभा चुनाव हारे। क्या राहुल गांधी से मिलना बहुत मुश्किल हो गया था। गुलाम नबी आज़ाद ने एक चिट्ठी सोनिया गांधी को लिखी? उस वक्त गुलाम नबी राज्यसभा में विपक्ष के नेता थे। गुलाम का तर्क था कि 25 साल से कोई चुनाव नहीं हुआ इसलिए आपके परिवार के लोग (सोनिया, राहुल या प्रियंका) कांग्रेस के नेताओं से मिलना शुरू करें। सोनिया गांधी ने केसी वेणुगोपाल का नाम बताया, तब गुलाम ने कहा जब मैं महासचिव था तो वेणुगोपाल स्कूल में थे। जब गुलाम नबी ने राहुल से बात की तो राहुल ने रणदीप सुरजेवाला का नाम बताया, गुलाम नबी ने कहा सुरजेवाला काफी जूनियर हैं, सुरजेवाला के पिताजी उनके अंडर काम करते थे। जब बातचीत बंद हो गई तो G-23 का गठन हुआ।
क्या राहुल और सोनिया में बहुत फर्क है?
गुलाम नबी आज़ाद खुलकर कहते हैं राहुल ना सुनते हैं, ना कुछ करते हैं। सोनिया गांधी ने अध्यक्ष बनने के बाद सुनना शुरू किया। जिसके पास चुनाव जिताने का अनुभव था उसे चुनाव जिताने का जिम्मा दिया। राहुल गांधी ने इस्तीफा दिया क्योंकि कांग्रेस के बाकी नेताओं ने मोदी को चौकीदार चोर है नहीं कहा। राहुल को शिकायत ही यही थी कि उनका आइडिया वरिष्ठ नेताओं को पसंद नहीं आता और कोई उन्हें अपनाता नहीं है। सोनिया गांधी के वक्त में एक टीम फैसला लेती थी। गुलाम का दावा है कि राहुल अपने सिक्योरिटी गार्ड और पर्सनल स्टाफ से पूछते थे किसको क्या पद देना चाहिए।
क्या संगठन को लेकर राहुल गांधी और नरसिंहा राव एक जैसे हैं?
गुलाम नबी आज़ाद नरसिंहा राव के वक्त भी केंद्र में मंत्री रहे हैं। गुलाम नबी बताते हैं कि संगठन को लेकर नरसिंहा राव और राहुल गांधी दोनों ही एक जैसे हैं। राव को भी संगठन चलाने में रुचि नहीं थी, राव भी संगठन को वक्त नहीं देते थे। राहुल का भी यही हाल है। गुलाम कहते हैं नरसिंहा राव जबरदस्त प्रधानमंत्री थे लेकिन बेहद खराब कांग्रेस अध्यक्ष रहे। 1996 में चुनाव से पहले आज़ाद ने बार-बार कहा कि संगठन पर ध्यान देना चाहिए। आज़ाद ने साथियों के साथ मिलकर अलग-अलग राज्यों में कांग्रेस की टीम बनाई और जब राव के पास गए तो राव ने कहा उनके कंप्यूटर में डाटा डाल दें। राव का पर्सनल कंप्यूटर उनके बेडरूम में रहता था। आज़ाद ने माधव राव सिंधिया के साथ बैठकर पूरी लिस्ट राव के कंप्यूटर में फीड की। लेकिन वो नाम कंप्यूटर में ही रहे। कभी सामने नहीं आए।
क्या नए अध्यक्ष से कांग्रेस बचेगी?
पिछले साढ़े तीन साल से कांग्रेस लगातार चुनाव हार रही है। साल 2018 में कांग्रेस मध्य प्रदेश जीती, राजस्थान जीतने में कामयाब रही और छत्तीसगढ़ में बंपर वोट मिले। इसके बाद से कांग्रेस चुनाव हार ही रही है। केरल से राहुल गांधी को उम्मीद थी, केरल में सरकार पांच साल में बदलती रहती है। लोकसभा चुनाव में केरल से राहुल को सबसे ज्यादा सीटें मिली थी। 90 फीसदी का स्ट्राइक रेट रहा था। राहुल खुद वायनाड से सांसद बने थे। लेकिन विधानसभा चुनाव में राहुल की पार्टी केरल नहीं जीत पाई। पंजाब में केजरीवाल की पार्टी से बुरी तरह हार गई। मध्य प्रदेश की बनी हुई सरकार सिंधिया के जाने की वजह से चली गई और शिवराज वापस मुख्यमंत्री बन गए। मतलब 2018 के बाद कांग्रेस ने चुनाव जीता ही नहीं और जो जीता हुआ था वो भी हार गए। इसलिए नए अध्यक्ष के आने भर से पार्टी की किस्मत नहीं चमकने वाली है। राहुल के करीबी अब भी यही मानकर बैठे हैं कि कभी तो मोदी का जादू खत्म होगा और कांग्रेस का नंबर आएगा। सिर्फ सोशल मीडिया पर हैशटैग ट्रेंड कराने से चुनाव नहीं जीता जा सकता है । धीरे-धीरे कांग्रेस के पास राज्यों के दिग्गज नेता खत्म हो चुके हैं। ज्यादातर वोटर नौजवान हैं और कांग्रेस इतिहास से बाहर आकर नए प्रयोग करना नहीं चाहती। अनुभवी नेता साइडलाइन हैं और नए नेताओं के पास सोशल मीडिया वाले फॉलोअर्स तो हैं लेकिन जनाधार नहीं है। यही कांग्रेस की रियल प्रॉब्लम है।