नई दिल्ली: अपनी 'एक देश, एक चुनाव' योजना पर आगे बढ़ते हुए सरकार ने बुधवार को देशव्यापी आम सहमति बनाने की कवायद के बाद चरणबद्ध तरीके से लोकसभा, राज्य विधानसभाओं और स्थानीय निकायों के लिए एक साथ चुनाव कराने के लिए एक उच्च स्तरीय समिति की सिफारिशों को स्वीकार कर लिया। सरकार का कहना है कि कई राजनीतिक दल पहले से ही इस मुद्दे पर सहमत हैं। उसने कहा कि देश की जनता से इस मुद्दे पर मिल रहे व्यापक समर्थन के कारण वह दल भी रुख में बदलाव का दबाव महसूस कर सकते हैं जो अब तक इसके खिलाफ हैं। हाल में इस मुद्दे पर ज्यादा शोर हो रहा है, लेकिन क्या आपको पता है कि BJP यह मुद्दा पिछले 40 साल से उठा रही है?
1984 से ही 'वन नेशन, वन इलेक्शन' की मांग कर रही BJP
भारतीय जनता पार्टी द्वारा 'वन नेशन, वन इलेक्शन' की मांग भले ही पिछले कुछ सालों में लगातार दोहराई गई हो, लेकिन पार्टी के एजेंडे में यह 1984 से ही है। 2014 से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी लगातार ‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ के फायदों के बारे में बताते रहे हैं। बता दें कि पार्टी ने 1984 में पहली बार अखिल भारतीय स्तर पर लोकसभा चुनाव लड़ा था, और उसने अपने घोषणापत्र में बकायदा इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन के साथ-साथ पूरे देश में एक साथ चुनाव कराने की मांग की थी। पार्टी का कहना था कि ये सारे कदम चुनावी सुधारों और एक स्वस्थ लोकतंत्र के लिए बेहद जरूरी हैं।
चुनावी सुधारों के लिए बीजेपी ने प्रस्तुत किया था 11-सूत्रीय ब्लूप्रिंट
अपनी स्थापना के 4 साल बाद 1984 के चुनावों में BJP ने 224 उम्मीदवार उतारे थे। बीजेपी के घोषणापत्र में 4 ‘बुराइयों’ को रोकने का संकल्प लिया गया था जो ‘चुनावों की स्वतंत्रता और निष्पक्षता’ के लिए बड़ा खतरा हैं - धन शक्ति, राजनीतिक शक्ति, मीडिया शक्ति और बाहुबल’, और चुनावी सुधार के लिए 11-सूत्रीय खाका प्रस्तुत किया।
- 18 वर्ष से अधिक आयु के सभी लोगों को वोट का अधिकार दें
- मतदाताओं के लिए पहचान पत्र पेश करें
- इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनों का उपयोग करें, और आवश्यकतानुसार कानून में बदलाव करें
- चुनावों की सूची प्रणाली शुरू करने की व्यवहार्यता की जांच करें
- विदेश में रहने वाले भारतीय नागरिकों को पोस्टल बैलट का अधिकार दें
- हर पांच साल में एक साथ राज्य और केंद्र चुनाव आयोजित करें
- चुनाव आयोग को बहु-सदस्यीय निकाय बनाएं, इस पर होने वाले व्यय को भारत की संचित निधि से वसूल कर और इसे एक स्वतंत्र, न्यूनतम बुनियादी ढांचा प्रदान करके इसकी स्वतंत्रता को मजबूत करें
- चुनाव आयोग के अधिकार क्षेत्र को स्थानीय निकाय चुनावों तक बढ़ाया जाए तथा यह सुनिश्चित किया जाए कि स्थानीय निकायों के चुनाव नियमित रूप से हों
- चुनावों के लिए सार्वजनिक वित्तपोषण की व्यवस्था की जाए जैसा कि जर्मनी, जापान तथा अधिकांश अन्य लोकतांत्रिक देशों में होता है
- पार्टियों के खातों का सार्वजनिक रूप से ऑडिट किया जाए
- सत्तारूढ़ दल द्वारा सरकारी शक्ति के दुरुपयोग को रोकने के लिए चुनाव आयोग द्वारा तैयार की गई आचार संहिता को कानूनी रूप दिया जाए; आचार संहिता का उल्लंघन कानून के तहत भ्रष्ट आचरण माना जाएगा।
अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व वाली बीजेपी द्वारा किए गए इनमें से अधिकांश वादे बाद में चुनाव प्रणाली में अपनाए गए। हालांकि 1984 में कांग्रेस ने रिकॉर्ड 414 सीटें जीतीं, जबकि बीजेपी को केवल 2 सीटें मिली थीं।
1989 से 2019 तक BJP करती रही चुनावी सुधारों की मांग
बता दें कि 1984 के बाद 1989 और आगे के चुनावों में भी बीजेपी अलग-अलग चुनावी सुधारों की मांग करती रही। 1989 में पार्टी ने अनिवार्य वोटिंग और कंपनियों के डोनेशन देने पर बैन लगाने की मांग की थी, तो 1991 और 1996 में कॉरपोरेट फंडिंग को लेकर अपने रुख में बदलाव ला दिया। 1998 और 1999 के चुनावों में पार्टी ने इलेक्टोरल रिफॉर्म बिल और 5 साल के फिक्स्ड टर्म की बात की तो 2004 और 2009 में 1984 के वादों को दोहराया। 2014 में पार्टी ने चुनावों से अपराधियों को बाहर करने और चुनावी खर्चों की लिमिट का पुनर्मूल्यांकन करने की मांग की। 2019 में पार्टी की मांग सभी चुनावों को एक साथ कराना और एक सिंगल वोटर लिस्ट की रही।