लखनऊ: समाजवादी पार्टी (सपा) के अध्यक्ष अखिलेश यादव आखिरकार 2024 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को समर्थन देने पर राजी हो गए हैं। सपा के रुख में यह एक बड़ा बदलाव है, क्योंकि पार्टी अब तक कांग्रेस को बीजेपी की बी-टीम करार देते हुए इसका विरोध कर रही थी। अखिलेश ने अब पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री और तृणमूल कांग्रेस (TMC) प्रमुख ममता बनर्जी के राष्ट्रीय स्तर पर विपक्षी एकता के बयान का समर्थन करते हुए कहा है कि जो पार्टी जिस राज्य में मजबूत है, उसे वहां चुनाव लड़ना चाहिए।
अखिलेश के रुख में बदलाव कांग्रेस के लिए अच्छी खबर है, जो उत्तर प्रदेश में सपा और बहुजन समाज पार्टी (बसपा) के विरोध का सामना करती रही है, जहां कांग्रेस कमजोर है। सपा प्रमुख ने कहा कि बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार, तेलंगाना के मुख्यमंत्री के. चंद्रशेखर राव और अन्य दलों की भी यही राय है।
विपक्षी एकता को लेकर अखिलेश ने सुझाया फॉर्मूला
गौरतलब है कि विपक्षी एकता पर चर्चा करने के लिए नीतीश ने पिछले महीने लखनऊ में अखिलेश से मुलाकात की थी, लेकिन अखिलेश ने मोर्चे में कांग्रेस को शामिल करने पर चुप्पी बनाए रखी थी। पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ने सोमवार को कहा था कि उनकी पार्टी जहां कांग्रेस मजबूत होगी, वहां उसका समर्थन करेगी। उन्होंने कहा कि कांग्रेस को भी क्षेत्रीय पार्टियों को जहां वे मजबूत हैं, वहां उनका समर्थन करना चाहिए। कर्नाटक चुनाव पर एक सवाल के जवाब में यादव ने कहा कि राज्य के लोगों ने चुनाव जीता है। उन्होंने कहा, भाजपा हमेशा नफरत की राजनीति करती है, लेकिन उसे कर्नाटक में जनता ने हरा दिया है। लोगों ने महंगाई के खिलाफ वोट दिया है।
कांग्रेस ने ममता को दिखा दिया आईना
वहीं, आपको बता दें कि इससे पहले कांग्रेस ने पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री और तृणमूल कांग्रेस की सुप्रीमो ममता बनर्जी का ऑफर ठुकरा दिया है। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता अधीर रंजन चौधरी ने ममता बनर्जी के फॉर्मूले को सिरे से खारिज कर दिया। कर्नाटक में कांग्रेस की जीत के बाद ममता बनर्जी ने अपना मन बदला था। ममता ने कहा था कि वो कांग्रेस के समर्थन कर सकती हैं बशर्ते कांग्रेस भी उन जगहों पर समर्थन करे जहां दूसरी पार्टियां मज़बूत हैं।
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कांग्रेस के नेता अधीर रंजन ने ममता के इस ऑफर को सिरे से खारिज करते हुए कहा, हम बंगाल में ही क्यों, जहां जरूरत पड़ेगी वहां TMC के खिलाफ लड़ेंगे। चौधरी ने कहा कि राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा के प्रभाव को राष्ट्रीय स्तर पर स्वीकार करने में मुख्यमंत्री की अनिच्छा वास्तव में कांग्रेस के बारे में उनकी वास्तविक धारणा को मान्य करती है।