लखनऊ: दिल्ली के मुख्यमंत्री और आम आदमी पार्टी के नेता अरविंद केजरीवाल ने बुधवार को समाजवादी पार्टी के सुप्रीमो अखिलेश यादव से मुलाकात की। इस मौके पर पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान, दिल्ली सरकार में मंत्री आतिशी और राज्यसभा सांसद संजय सिंह भी केजरीवाल के साथ मौजूद थे। वहीं, अखिलेश के चाचा और यूपी सरकार के पूर्व मंत्री शिवपाल यादव ने भी बैठक में हिस्सा लिया। केजरीवाल की यह मुलाकात दिल्ली में प्रशासनिक सेवाओं पर नियंत्रण संबंधी केंद्र के अध्यादेश के खिलाफ राजनीतिक दलों के नेताओं से समर्थन मांगने के बीच हुई है।
'एंटी-डेमोक्रेटिक है केंद्र सरकार का अध्यादेश'
अरविंद केजरीवाल जिस काम के लिए लखनऊ आए थे, उनका वह काम पूरा हो गया। अखिलेश ने केंद्र सरकार के अध्यादेश के मुद्दे पर केजरीवाल के समर्थन का एलान कर दिया। अखिलेश ने कहा कि केंद्र सरकार का यह अध्यादेश लोकतंत्र के खिलाफ है। उन्होंने कहा कि हम इस मुद्दे पर केजरीवाल सरकार का समर्थन करते हैं और राज्यसभा में अध्यादेश के खिलाफ वोट करेंगे। उन्होंने कहा कि बीजेपी की सरकार स्वास्थ्य एवं शिक्षा के क्षेत्र में केजरीवाल सरकार द्वारा किए कामों से डर गई है, इसलिए यह अध्यादेश लाई है।
पहले भी कई CMs से मिल चुके हैं केजरीवाल
बता दें कि अखिलेश से पहले केजरीवाल पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी, बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार, झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन, तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन, तेलंगाना के मुख्यमंत्री के. चंद्रशेखर राव, राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के सुप्रीमो शरद पवार और महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे से मुलाकात कर चुके है। केजरीवाल को उम्मीद है कि उनकी इन मुलाकातों का असर जरूर होगा और विपक्ष एकजुट होकर केंद्र सरकार के अध्यादेश के खिलाफ मतदान करेगा। वहीं, कई विपक्षी दलों का रुख अभी भी इस मसले पर साफ नहीं हो पाया है।
केंद्र सरकार के अध्यादेश में क्या है?
केंद्र ने भारतीय प्रशासनिक सेवा और केन्द्र शासित राज्यों के कैडर के अधिकारियों के ट्रांसफर और उनके खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई के लिए राष्ट्रीय राजधानी सिविल सेवा प्राधिकरण बनाने के उद्देश्य से 19 मई को एक अध्यादेश जारी किया था। यह अध्यादेश सुप्रीम कोर्ट की ओर से दिल्ली में निर्वाचित सरकार को पुलिस, सार्वजनिक व्यवस्था और भूमि से संबंधित मामलों को छोड़कर अन्य मामलों का नियंत्रण सौंपने के बाद लाया गया था। इस अध्यादेश के बाद केजरीवाल सरकार इन अधिकारियों के तबादले और उनके ऊपर अनुशासनात्मक कार्रवाई की शक्ति खो बैठी है। यही वजह है कि केजरीवाल अध्यादेश के खिलाफ समर्थन जुटाने की कोशिश कर रहे हैं।