कोलकाता: पश्चिम बंगाल में कांग्रेस और तृणमूल कांग्रेस के बीच विवाद थम नहीं रहा है। दोनों पार्टियों के नेता जमकर एक-दूसरे पर हमला बोल रहे हैं। हालांकि दोनों ही दल इंडिया गठबंधन के सदस्य हिं और साथ में मिलकर लोकसभा चुनाव लड़ने की बात करते हैं। लेकिन राज्य में सीट बंटवारे को लेकर दोनों के बीच विवाद बढ़ता जा रहा है। कांग्रेस की तरफ से सबसे ज्यादा हमलावर कोई और नहीं बल्कि खुद पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष अधीर रंजन चौधरी हैं।
आप लोकसभा चुनाव में मेरे खिलाफ चुनाव लड़ लीजिये- अधीर
उन्होंने इस बार ममता बनर्जी पर हमलावर होते हुए कहा कि आप लोकसभा चुनाव में मेरे खिलाफ चुनाव लड़ लीजिये। दरअसल वह ममता बनर्जी के उस बयान के जवाब में बोल रहे थे, जिसमें ममता ने प्रियंका गांधी वाड्रा को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ वाराणसी से चुनाव लड़ने का सुझाव दिया था। उनके सुझाव का हवाला देते हुए चौधरी ने कहा, "आपने प्रियंका गांधी को प्रधानमंत्री के खिलाफ चुनाव लड़ने का सुझाव दिया। अब मैं आपको इस बार मेरे खिलाफ चुनाव लड़ने की चुनौती दे रहा हूं।''
मैं भी देखना चाहता हूं कि आप कितनी शक्तिशाली हैं- अधीर रंजन
उन्होंने आगे कहा, ''मैं भी देखना चाहता हूं कि आप कितनी शक्तिशाली हैं। यह मत भूलिए कि 2019 में हमने आपकी कृपा से सीटें नहीं जीती थीं।''चौधरी ने कहा कि ममता ने पश्चिम बंगाल की दो लोकसभा सीटों बहरामपुर और मालदा दक्षिण से कोई भी उम्मीदवार नहीं उतारने पर सहमति जताई है, जहां 2019 में कांग्रेस के उम्मीदवार निर्वाचित हुए थे। उन्होंने कहा, "हमने उन दो निर्वाचन क्षेत्रों से तृणमूल कांग्रेस के उम्मीदवारों को हराकर जीत हासिल की। हमारी जीत तृणमूल कांग्रेस या मुख्यमंत्री की कृपा से नहीं हुई थी। याद रखें कि कांग्रेस अन्य निर्वाचन क्षेत्रों से भी अपने दम पर चुनाव लड़ने में सक्षम है।"
'कांग्रेस के पास पश्चिम बंगाल में खोने के लिए कुछ नहीं'
उन्होंने असम, मेघालय और गोवा में सीटों की तृणमूल की मांग का भी मजाक उड़ाया और कहा, ''याद रखें कि कांग्रेस के पास पश्चिम बंगाल में खोने के लिए कुछ नहीं है। हमारी पार्टी की राज्य इकाई सीपीआई (एम) के नेतृत्व वाले वाम मोर्चे के साथ सीट-बंटवारे का समझौता करने की इच्छुक है।'' पश्चिम बंगाल कांग्रेस अध्यक्ष अधीर रंजन चौधरी ने कहा, ''हालांकि, गठबंधन या सीट बंटवारे पर समझौते का अंतिम फैसला पार्टी आलाकमान का होगा। आलाकमान यह भी तय करेगा कि ऑल इंडिया सेक्युलर फ्रंट वहां सहयोगी के तौर पर स्वीकार्य होगा या नहीं।''