नई दिल्ली: भारतीय जनता पार्टी ने साल भर के भीतर पांच मुख्यमंत्रियों को बदलकर उस जमाने की याद दिला दी है जब केंद्र और राज्यों में कांग्रेस का वर्चस्व था और कुछ महीनों के बाद ही मुख्यमंत्री का चेहरा भी बदल जाया करता था। बहुत कम मुख्यमंत्री ही पांच साल का कार्यकाल पूरा कर पाते थे। अब बीजेपी के शासन वाले राज्यों में पिछले साल भर के अंदर जहां उत्तराखंड में दो बार मुख्यमंत्री बदले गए वहीं, कर्नाटक, असम और अब गुजरात में मुख्यमंत्री का चेहरा बदल दिया गया है। ऐसे यह सवाल उठना लाजिमी है कि आखिर बीजेपी ने साल भर के अंदर पांच मुख्यमंत्रियों को क्यों बदला? आइये इसके बारे में विस्तार से जानते हैं।
गुजरात में रूपाणी की जगह भूपेंद्र पटेल
सबसे पहले बात करते हैं ताजा घटनाक्रम की जहां गुजरात में विजय रुपाणी की जगह भूपेंद्र पटेल को मुख्यमंत्री बनाया गया है। विजय रूपाणी को आनंदी बेन पटेल की जगह राज्य की कमान मिली थी। उनके मुख्यमंत्री रहते हुए गुजरात में पिछला विधानसभा चुनाव हुआ था और पार्टी बहुत कम अंतर से बहुमत प्राप्त करने में सफल रही थी। अब जबकि गुजरात विधानसभा चुनाव में कुछ महीने ही बाकी रह गए हैं ऐसे समय में बीजेपी का अचानक मुख्यमंत्री बदलने का फैसला कितना सही साबित होता है यह तो आनेवाले समय में पता चलेगा। लेकिन रूपाणी के प्रति पटेलों की नाराजगी, संगठन और सरकार के बीच समन्वय की कमी को भी इस बदलाव का कारण माना जा रहा है।
उत्तराखंड में कुछ महीने के भीतर दो सीएम बदले
उत्तराखंड में बीजेपी ने कुछ ही महीने के भीतर दो बार मुख्यमंत्री को बदल दिया। सबसे पहले त्रिवेंद्र सिंह रावत को हटाकर उनकी जगह तीरथ सिंह रावत को मुख्यमंत्री बनाया। बीजेपी को लगा कि त्रिवेंद्र सिंह रावत के नेतृत्व में पार्टी अपना जनाधार खो देगी। इसलिए नए सीएम के तौर पर तीरथ सिंह को सामने लाया गया। लेकिन तीरथ सिंह रावत मुश्किल से चार महीने ही कुर्सी पर रह पाए थे कि एक बार फिर केंद्रीय नेतृत्व के फरमान ने उनकी सीएम की कुर्सी ले ली। पार्टी को लगा कि तीरथ को सीएम बनाने का फैसला गलत था। इसके बाद मार्च में कुर्सी संभालने वाले तीरथ जुलाई की शुरुआत में ही अपना पद खो बैठे। आलाकमान ने उनकी जगह पुष्कर सिंह धामी को उत्तराखंड की कमान सौंप दी।
कर्नाटक में येदियुरप्पा की जगह बोम्मई
कर्नाटक में भी बीजेपी ने येदियुरप्पा जैसे कद्दावर नेता को सीएम पद से हटाकर बसवराज बोम्मई को सीएम बना दिया। येदियुरप्पा को मौजूदा सरकार के दो साल पूरा होने के मौके पर अपने इस्तीफे का ऐलान करना पड़ा। हालांकि कर्नाटक की राजनीति में उनके इस्तीफे की चर्चा लंबे अर्से से चल रही थी और खुद येदियुरप्पा ने इसका कई बार खंडन किया था। लेकिन कयासों का दौर जल्द ही खत्म हो गया और अंतत: येदियुरप्पा को इस्तीफा देना पड़ा। इस इस्तीफे की वजह जहां उनकी बढ़ती उम्र बताई गई वहीं सियासी गलियारों में परिवारवाद की चर्चा जोरों पर रही। खासतौर से उनके बेटे को लेकर यह चर्चा आम रही कि सरकार के कामों में उनकी दखलंदाजी बढ़ रही थी।
असम में चुनावी जीत के बाद सोनोवाल हटे, सरमा को मिली कमान
असम में भारतीय जनता पार्टी ने बिल्कुल अलग दांव चला। वहां विधानसभा चुनाव पिछले पांच साल से मुख्यमंत्री रहे सर्वानंद सोनोवाल के नेतृत्व में लड़ा गया लेकिन चुनाव परिणाम आने के बाद जब सीएम पद की बात आई तो उसमें हेमंत बिस्व सरमा ने सोनोवाल को पटखनी दे दी। पार्टी के केंद्रीय नेतृत्व ने सोनोवाल की जगह हेमंत बिस्व सरमा को असम का मुख्यमंत्री बना दिया। माना जाता है कि विचारधारा के प्रति ज्यादा प्रतिबद्धता और पूर्वोत्तर में पार्टी के विस्तार में अहम भूमिका निभाने के चलते हेमंत बिस्व सरमा सर्वानंद सोनोवाल पर भारी पड़े।