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बीजेपी ने बनाया प्रतिरोध वाहिनी, कहा-टीएमसी जो भाषा समझेगी, उन्हें उसी भाषा में जवाब देंगे

जहां 2016 में राजनीतिक हिंसा में 36 लोग मारे गए थे तो 2018 में मरने वालों की संख्या 96 पहुंच गईं। इस साल अभी तक करीब 30 लोग चुनावी हिंसा में मारे जा चुके हैं।

Written by: IndiaTV Hindi Desk
Published : June 20, 2019 7:47 IST
बीजेपी ने बनाया प्रतिरोध वाहिनी, कहा-टीएमसी जो भाषा समझेगी, उन्हें उसी भाषा में जवाब देंगे
बीजेपी ने बनाया प्रतिरोध वाहिनी, कहा-टीएमसी जो भाषा समझेगी, उन्हें उसी भाषा में जवाब देंगे

नई दिल्ली: लोकसभा चुनाव खत्म हुए एक महीना हो चुका है लेकिन पश्चिम बंगाल में सियासी हिंसा थमने का नाम नहीं ले रही है। बंगाल से हर रोज राजनीतिक हिंसा की तस्वीरें आ रही हैं। कभी टीएमसी पर बीजेपी कार्यकर्ता पर हमले का आरोप लगता है तो कभी बीजेपी पर टीएमसी पर हमले का आरोप। हिंसा के बीच अब टीएमसी और बीजेपी के बीच अपने-अपने कार्यकर्ताओं की सुरक्षा के लिए ग्रुप बनाना शुरू कर दिया है। इस ग्रुप का काम पार्टी कार्यकर्ताओं पर होने वाले हमलों का जवाब देना है।

पश्चिम बंगाल के हावड़ा जिले में बीजेपी ने प्रतिरोध वाहिनी नाम से एक ग्रुप का गठन किया है। इस ग्रुप में शामिल कार्यकर्ताओं का काम बीजेपी कार्यकर्ताओं पर होने वाले हमले का जवाब देना है। बंगाल में पार्टी के सीनियर नेता मुकुल रॉय का कहना है कि टीएमसी की हिंसा का अब मुंहतोड़ जवाब दिया जाएगा। वो जिस भाषा में समझेंगे, उन्हें उन्हीं की भाषा में जवाब दिया जाएगा। कुछ दिनों पहले ममता बनर्जी ने भी जय हिंद वाहिनी नाम से एक ग्रुप का गठन किया था। इसी के जवाब में बीजेपी ने प्रतिरोध वाहिनी तैयार किया है।

गृहमंत्रालय की ताजा एडवायजरी के मुताबिक पश्चिम बंगाल में 2016 के बाद राजनीतिक हिंसा काफी बढ़ गई है। आंकड़ों के अनुसार 2016 में बंगाल राजनीतिक हिंसा की 509 घटनाएं दर्ज की गई थी जो 2018 में बढ़कर दोगुने से अधिक 1035 हो गई। इस साल अभी तक करीब 780 हिंसक घटनाएं हो चुकी है। हिंसक घटनाओं की बढ़ती संख्या के मुताबिक ही उसमें मारे जाने वालों की संख्या भी बढ़ती जा रही है। 

जहां 2016 में राजनीतिक हिंसा में 36 लोग मारे गए थे तो 2018 में मरने वालों की संख्या 96 पहुंच गईं। इस साल अभी तक करीब 30 लोग चुनावी हिंसा में मारे जा चुके हैं।

पश्चिम बंगाल के जो इलाक़े सबसे ज़्यादा हिंसा से प्रभावित हैं उनमें उत्तरी 24 परगना, कूचबिहार, हावड़ा, दुर्गापुर और पश्चिमी बर्दवान शामिल हैं। जाहिर है ये आंकड़े बताने के लिए काफी हैं कि बंगाल में राजनीतिक हिंसा पिछले तीन साल में किस कदर बढ़े हैं लेकिन जिस तरह से दोनों पार्टियां अपने-अपने कार्यकर्ताओं की सुरक्षा के लिए ग्रुप बना रही हैं उससे इस तरह की हिंसा घटने के बजाए और बढ़ने की आशंका है।

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