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जब अटल बिहारी वाजपेयी ने लिया यह साहसिक फैसला, हैरान रह गई थी दुनिया

भारत के पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी का 93 वर्ष की आयु में निधन हो गया। वह पिछले 9 हफ्ते से किडनी और फेफड़ों में इन्फेक्शन के चलते दिल्ली के एम्स अस्पताल में भर्ती थे।

Edited by: India TV News Desk
Updated : August 16, 2018 17:55 IST
अटल बिहारी वाजपेयी
अटल बिहारी वाजपेयी

नई दिल्ली: भारत के पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी का 93 वर्ष की आयु में निधन हो गया। वह पिछले 9 हफ्ते से किडनी और फेफड़ों में इन्फेक्शन के चलते दिल्ली के एम्स अस्पताल में भर्ती थे। AIIMS द्वारा जारी प्रेस रिलीज के मुताबिक, गुरुवार को शाम 5 बजकर 5 मिनट पर उन्होने आखिरी सांस ली। वह भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के एक प्रतिष्ठित नेता थे। उन्हें सांस्कृतिक समभाव, उदारवाद और राजनीतिक तर्कसंगतता के लिए जाना जाता था। वे तीन बार भारत के प्रधानमंत्री बने। नरेंद्र मोदी सरकार ने पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी को 27 मार्च, 2015 को भारत रत्न से सम्मानित किया। उनके जन्मदिन 25 दिसंबर को ‘सुशासन दिवस’ के तौर पर मनाया जाता है। 

अटल बिहारी वाजपेयी का शुरुआती जीवन

उनके पिता एक कवि होने के साथ ही स्कूल में शिक्षक थे। वाजपेयी की शुरुआती पढ़ाई ग्वालियर के सरस्वती शिशु मंदिर में हुई। बाद में उन्होंने विक्टोरिया कॉलेज ग्वालियर (अब लक्ष्मी बाई कॉलेज) से स्नातक की उपाधि ली। कानपुर के एंग्लो-वैदिक कॉलेज से वाजपेयी ने राजनीतिक विज्ञान में स्नातकोत्तर की पढ़ाई पूरी की। वे 1939 में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) से जुड़े और 1947 में उसके प्रचारक (पूर्णकालिक कार्यकर्ता) बन गए। उन्होंने इस दौरान राष्ट्रधर्म हिंदी मासिक, पांचजन्य हिंदी साप्ताहिक और दैनिक स्वदेश और वीर अर्जुन जैसे दैनिक अखबारों के लिए भी काम किया।

अटल बिहारी वाजपेयी का राजनीतिक करियर

वाजपेयी एक स्वंतत्रता थे, जो बाद में भारतीय जन संघ (बीजेएस) से जुड़े। यह एक हिंदू दक्षिणपंथी राजनीतिक दल था, जिसका नेतृत्व डॉ. श्याम प्रसाद मुखर्जी करते थे। वे बीजेएस के राष्ट्रीय सचिव बने और उनके पास उत्तरी क्षेत्र का प्रभार था।बीजेएस के नए नेता के तौर पर, वाजपेयी 1957 में पहली बार बलरामपुर से लोक सभा के लिए चुने गए। वे 1968 में जन संघ के राष्ट्रीय अध्यक्ष बने।

नानाजी देशमुख, बलराज मधोक और लालकृष्ण आडवाणी जैसे सहयोगियों की मदद से वाजपेयी ने जन संघ की पहुंच बढ़ाई। 1975 में तत्कालीन प्रधान मंत्री इंदिरा गांधी ने आंतरिक आपातकाल लागू किया था। विरोधियों का दमन हुआ था। इसके खिलाफ जय प्रकाश नारायण (जेपी) ने संपूर्ण क्रांति आंदोलन शुरू किया, जिसमें वाजपेयी भी जुड़े। 1977 में जन संघ का जनता पार्टी में विलय कर दिया गया। दरअसल, जनता पार्टी एक नया संगठन था जो इंदिरा गांधी सरकार के खिलाफ कई पार्टियों के एकजुट होने से बना था।

वाजपेयी ने लाल कृष्ण आडवाणी, भैरो सिंह शेखावत और बीजेएस के कुछ अन्य नेताओं के साथ मिलकर और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के समर्थन से 1980 में भारतीय जनता पार्टी का गठन किया। वे कांग्रेस (आई) सरकार के मुख्य आलोचक हो गए, जो जनता पार्टी सरकार के गिरने के बाद फिर सत्ता में आई थी। भाजपा 1984 के चुनावों में सिर्फ दो सीटों तक सीमित हो गई थी। वाजपेयी भाजपा अध्यक्ष थे और संसद में विपक्ष के नेता भी। अपने उदारवादी विचारों की वजह से, वाजपेयी दिसंबर 1992 को बाबरी मस्जिद के विध्वंस पर दुख जताया और इसे भाजपा का ‘वर्स्ट मिसकैल्कुलेशन’ बताया था।

भारत के प्रधान मंत्री के तौर पर (1996 से 2004 तक)

वाजपेयी ने 1996 के आम चुनावों के बाद देश के 10वें प्रधान मंत्री के तौर पर शपथ ली। उस समय लोकसभा चुनावों में भाजपा सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी थी। हालांकि, सरकार 13 दिन ही चल सकी क्योंकि वाजपेयी बहुमत हासिल करने के लिए अन्य पार्टियों का समर्थन नहीं जुटा सके। इस तरह वे भारत के सबसे कम अवधि के प्रधान मंत्री बन गए। भाजपा-नीत गठबंधन यानी राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग या एनडीए) 1998 में फिर सत्ता में लौटा। वाजपेयी ने फिर प्रधान मंत्री के तौर पर शपथ ली। हालांकि, वाजपेयी की सरकार 13 महीने ही चली, जब अखिल भारतीय अन्ना द्रविड़ मुनेत्र कषगम (एआईएडीएमके) ने 1999 के बीच में सरकार से समर्थन वापस ले लिया था।

बाद के चुनावों में, हालांकि, एनडीए पूर्ण बहुमत के साथ सत्ता में लौटा और वाजपेयी पांच साल का कार्यकाल (1999-2004) करने में सफल रहे। वे यह उपलब्धि हासिल करने वाले पहले गैर-कांग्रेसी प्रधान मंत्री भी बने। वाजपेयी ने 13 अक्टूबर 1999 को तीसरी बार भारत के प्रधान मंत्री के तौर पर शपथ ली थी। 2004 के आम चुनावों में एनडीए का पतन हो गया। अपनी करीब आधी सीटें एनडीए हार गया। कांग्रेस-नीत संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (संप्रग या यूपीए) सत्ता में आया। वाजपेयी ने विपक्ष के नेता का पद लेने से इनकार कर दिया और इस तरह भाजपा का नेतृत्व लालकृष्ण आडवाणी के हाथों में आ गई थी।

भारत को परमाणु शक्ति सम्पन्न राष्ट्र बनाना

अटल सरकार ने 11 और 13 मई 1998 को पोखरण में पाँच भूमिगत परमाणु परीक्षण विस्फोट करके भारत को परमाणु शक्ति संपन्न देश घोषित कर दिया। इस कदम से उन्होंने भारत को निर्विवाद रूप से विश्व मानचित्र पर एक सुदृढ वैश्विक शक्ति के रूप में स्थापित कर दिया। 

पाकिस्तान से संबंधों में सुधार की पहल

19 फ़रवरी 1999 को सदा-ए-सरहद नाम से दिल्ली से लाहौर तक बस सेवा शुरू की गई। इस सेवा का उद्घाटन करते हुए प्रथम यात्री के रूप में वाजपेयी जी ने पाकिस्तान की यात्रा करके नवाज़ शरीफ से मुलाकात की और आपसी संबंधों में एक नयी शुरुआत की।

कारगिल युद्ध

पाकिस्तान के तत्कालीन सेना प्रमुख परवेज़ मुशर्रफ की शह पर पाकिस्तानी सेना व उग्रवादियों ने कारगिल क्षेत्र में घुसपैठ करके कई पहाड़ी चोटियों पर कब्जा कर लिया। अटल सरकार ने पाकिस्तान की सीमा का उल्लंघन न करने की अंतर्राष्ट्रीय सलाह का सम्मान करते हुए धैर्यपूर्वक किंतु ठोस कार्यवाही करके भारतीय क्षेत्र को मुक्त कराया। इस युद्ध में प्रतिकूल परिस्थितियों के कारण भारतीय सेना को जान माल का काफी नुकसान हुआ और पाकिस्तान के साथ शुरु किए गए संबंध सुधार एकबार फिर शून्य हो गए।

कवि के रूप में अटल

अटल बिहारी वाजपेयी राजनीतिज्ञ होने के साथ-साथ एक कवि भी थे। मेरी इक्यावन कविताएँ अटल जी का प्रसिद्ध काव्यसंग्रह है। वाजपेयी जी को काव्य रचनाशीलता एवं रसास्वाद के गुण विरासत में मिले हैं। उनके पिता कृष्ण बिहारी वाजपेयी ग्वालियर रियासत में अपने समय के जाने-माने कवि थे।

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