नीतीश कुमार-
जेपी आंदोलन की उपज नीतीश कुमार साल 1974 से ही राजनीति के क्षेत्र में सक्रिय हैं उस वक्त वो बिहार के इंजीनियरिंग कॉलेज में पढ़ ही रहे थे। वो उस दौर के राजनीतिक मठाधीशों जैसे कि सत्येंद्र नारायण सिंह, कर्पूरी ठाकुर, राम मनोहर लोहिया, वी पी सिंह और जॉर्ज फर्नाडीज से भी जुड़े हुए थे। साल 1977 में उन्होंने जनता पार्टी के बैनर तले बिहार विधानसभा का चुनाव लड़ा, लेकिन वो सफल नहीं रहे।
साल 1985 में वो पहली बार बिहार विधानसभा के सदस्य बने। वो 1987 से 1988 तक लोकदल के प्रांतीय अध्यक्ष (राज्य) भी रहे। 1989 में उन्हें बिहार में जनता दल का महासचिव चुना गया। इसके बाद वो बिहार की बगहा सीट से लोकसभा सदस्य भी बने। नीतीश अप्रैल 1990 से नवंबर 1990 तक केंद्रीय कृषि एवं सहयोग राज्य मंत्री भी रहे।
साल 1991 में उन्हें एक बार फिर से 10वीं लोकसभा के लिए चुना गया। इसके बाद वो सोशल जस्टिस के मसीहा बनकर उभरे और उन्होंने मंडल कमीशन के कार्यान्वयन में अहम भूमिका निभाई। उन्होंने जॉर्ज फर्नाडीज के साथ मिलकर साल 1995 के विधानसभा चुनाव में लालू प्रसाद यादव के खिलाफ भी चुनाव लड़ा था। नीतीश अटल बिहारी बाजपेयी की सरकार में रेल मंत्रालय भी संभाल चुके हैं।
साल 2000 में जनता दल यूनाइटेड ने बिहार विधानसभा चुनाव में हिस्सा लिया और नीतीश कुमार 7 दिन के लिए बिहार के मुख्यमंत्री बने। नवंबर 2005 में हुए विधानसभा चुनाव के दौरान वो दूसरी बार राज्य के मुख्यमंत्री बने। इसके बाद साल 2010 में तीसरी बार उन्हें बिहार के मुख्यमंत्री बनने का मौका मिला।
साल 2014 के लोकसभा चुनाव में पार्टी की बहुत बड़ी हार की जिम्मेदारी अपने ऊपर लेते हुए नीतीश कुमार ने मुख्यमंत्री पद छोड़ दिया। उन्होंने जीतन राम मांझी को मुख्यमंत्री बनाया। मांझी को मुख्यमंत्री बनाने के बाद काफी तरह की अड़चने आईं और आखिरकार लंबी जद्दोजहद के बाद एक बार फिर से नीतीश को बिहार का मुख्यमंत्री बनना पड़ा। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सामने नीतीश एक बड़ी चुनौती हैं। नीतीश विधानपरिषद से आते हैं।
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