नई दिल्ली: मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने विधानसभा को कई बार व्यापम मामले की गलत जानकारी दी थी। चौहान के पिछले कार्यकाल के दौरान विधानसभा में प्रश्नकाल में दिए उनके जवाबों में ही विरोधाभास देखने को मिलता है।
अंग्रेजी अखबार द हिंदू की एक रिपोर्ट के मुताबिक चौहान ने व्यापम मामले पर विधानसभा में तथ्यों के उलट जानकारी दी थी। चौहान के पास दिसंबर 2008 से मार्च 2012 तक चौहान के पास मेडिकल एजुकेशन का भी जिम्मा था, जब प्री-मेडिकल टेस्ट में गड़बड़ी की बात सामने आई थी।
रिपोर्ट के मुताबिक, 17 दिसंबर 2009 को विपक्षी विधायक प्रताप ग्रेवाल ने सदन में पूछा था कि क्या 2007 से 2010 के बीच मेडिकल और डेंटल कॉलेजों में फेक ऐडमिशन हुए हैं और क्या सरकार ने इस मामले की जांच के लिए कोई कमिटी बनाई है।
31 मार्च 2011 को इन सवालों के जवाब में शिवराज ने विधानसभा को बताया था कि 2007 से 2010 के बीच स्टेट मेडिकल ऐंड डेंटल कॉलेज में गलत तरीके से ऐडमिशन लेने वाला कोई भी स्टूडेंट नहीं पाया गया था। MP विधानसभा में विपक्ष के नेता सत्यदेव कटारे ने आरोप लगाया है कि चौहान ने यह जवाब देकर सदन को गुमराह किया।
उन्होंने कहा है, '19 नवंबर 2009 को MP नगर पुलिस स्टेशन में 9 फेक स्टूडेंट्स के खिलाफ FIR दर्ज की गई थी। 2010 में ऐसे 40 और फेक स्टूडेंट्स पाए गए थे। CM एक साल बाद भी सदन को अपने विभाग से संबंधित मामले की गलत जानकारी दे रहे थे।' ये FIR व्यापम के ही एक अधिकारी की शिकायत पर दर्ज की गई थी। कटारे ने कहा, 'जनवरी 2014 को शिवराज ने माना कि 1,000फर्जी ऐडमिशन हुए हैं, लेकिन तब भी उनकी संख्या कई गुना ज्यादा थी। इस तरह वह लगातार सदन को गुमराह कह रहे थे।'
23 फरवरी 2012 को चौहान ने कहा था कि फेक कैंडिडेट्स के प्रूफ फॉरेंसिक लैब में वेरिफिकेशन के लिए भेजे गए हैं। जबकि, व्यापम घोटाले के विसल ब्लोअर आशीष चतुर्वेदी की 2012 में दी गई RTI के जवाब में हैदराबाद और चंडीगढ़ दोनों लैब ने कहा था कि उन्हें ऐसे मामले के कोई सैंपल नहीं भेजे गए हैं। हैदराबाद की लैब ने RTI के जवाब में लिखा, 'रेकॉर्ड्स के मुताबिक ऐसा कोई केस नहीं आया है।' एक हफ्ते बाद ही उन्हें चंडीगढ़ की लैब से भी यही जवाब मिला।
इस पर बीजेपी का कहना है कि कांग्रेस पुराने मामले को उछाल रही है। बीजेपी प्रवक्ता जीवीएल नरसिम्हा राव ने कहा है, 'अगर कांग्रेस को सीएम की दी गई जानकारी गलत लगती है तो उसे यह मामला विधानसभा में उठाना चाहिए।'