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...तो शरद यादव को वापस करना पड़ सकता है अपना वेतन: दिल्ली हाई कोर्ट

याचिकाकर्ता ने अदालत के उस आदेश में संशोधन का आग्रह किया था जिसमें यादव को एक सांसद के रूप में मिलने वाले वेतन, भत्तों और बंगले के उपयोग की अनुमति दी गई थी...

Reported by: Bhasha
Published on: March 01, 2018 21:01 IST
Sharad Yadav | PTI Photo- India TV Hindi
Sharad Yadav | PTI Photo

नई दिल्ली: दिल्ली हाई कोर्ट ने गुरुवार को कहा कि जनता दल (यूनाइटेड) के पूर्व अध्यक्ष शरद यादव की राज्यसभा सदस्य के रूप में अयोग्यता बरकरार रखे जाने की स्थिति में उन्हें याचिका लंबित रहने के दौरान प्राप्त वेतन वापस करना पड़ सकता है। कोर्ट ने कहा कि राज्यसभा सदस्य के रूप में अयोग्य ठहराए जाने को चुनौती देने वाली शरद की याचिका के लंबित रहने के दौरान उनके द्वारा लिए गए वेतन को उन्हें उनकी याचिका खारिज होने की स्थिति में वापस करना पड़ सकता है। जस्टिस राजीव शकधर ने ऊपरी सदन में जेडी(यू) के नेता रामचन्द्र प्रसाद सिंह द्वारा दायर एक याचिका की सुनवाई के दौरान यह टिप्पणी की।

याचिकाकर्ता ने अदालत के उस आदेश में संशोधन का आग्रह किया था जिसमें यादव को एक सांसद के रूप में मिलने वाले वेतन, भत्तों और बंगले के उपयोग की अनुमति दी गई थी। कोर्ट ने हालांकि कोई आदेश पारित नहीं किया और मामले को सुनवाई के लिए 21 मार्च को सूचीबद्ध किया जिसमें यह निर्णय लिया जाएगा कि क्या यादव की याचिका की सुनवाई एकल पीठ करेगी या एक खंडपीठ करेगी। सिंह ने अपनी याचिका में आग्रह किया है कि यादव की याचिका की सुनवाई हाई कोर्ट की एक खंडपीठ द्वारा की जाए। इस बीच राज्यसभा सभापति की ओर से पेश अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल (ASG) संजय जैन ने कहा कि सुनवाई की अगली तिथि से पहले एक हलफनामा के जरिए उनके मुवक्किलों का रुख रखा जाएगा।

वकीलों गोपाल सिंह और शिवम सिंह के माध्यम से दायर अपनी याचिका में रामचन्द्र प्रसाद सिंह ने कहा कि चूंकि सांसदों को भत्तों का भुगतान सदन की कार्यवाही में उनकी भागीदारी के आधार पर होता है, इसलिए यादव इस तरह के लाभ के हकदार नहीं थे क्योंकि उन्हें संसद या उसकी समितियों में शामिल होने की अनुमति नहीं दी गई है। हाई कोर्ट ने पिछले साल 15 दिसंबर को यादव को अयोग्य ठहराए जाने पर अंतरिम रोक लगाने से इंकार कर दिया था। हालांकि अदालत ने कहा था कि शरद यादव को वेतन, भत्ते और बंगले की सुविधा मिलती रहेगी। यादव ने वकील निजाम पाशा के जरिए दायर अपनी याचिका में 4 दिसंबर, 2017 को उन्हें अयोग्य ठहराए जाने के आदेश को चुनौती दी थी।

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