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वरिष्‍ठ पत्रकार, लेखक, राजनेता और अब आरोपी, ऐसी है एमजे अकबर की कहानी

वरिष्‍ठ पत्रकार, लेखक, राजनेता और अब आरोपी, ऐसी है एमजे अकबर की कहानी

Edited by: India TV News Desk
Updated on: October 17, 2018 17:55 IST
MJ Akbar- India TV Hindi
Image Source : MJ AKBAR MJ Akbar

मोबाशर जावेद (एमजे) अकबर का जन्‍म 11 जनवरी 1951 को एक बिहारी परिवार में हुआ। उन्‍होंने कोलकाता बॉयज स्‍कूल से शिक्षा ग्रहण की और बाद में कोलकाता के ही प्रेसीडेंसी कॉलेज से इंग्लिश में बीए की डिग्री भी हासिल की।

एमजे अकबर के पूर्वज नहीं थे मुस्लिम, इस वजह से कबूला था इस्‍लाम

विदेश राज्‍य मंत्री के पद से इस्‍तीफा देने वाले वरिष्‍ठ पत्रकार एमजे अकबर के पूर्वज हिंदु थे और वे बिहार से ताल्‍लुक रखते थे। एमजे अकबर के बाबा का नाम प्रयाग था और वो पश्चिम बंगाल के चंदननगर के पास तेलिनीपारा कस्‍बे में रहते थे। यहां जूट मिले थीं।

सांप्रदायिक दंगों के दौरान प्रयाग के मां-बाप का कत्‍ल हो गया और वे अनाथ हो गए। इसके बाद एक मुस्लिम परिवार ने प्रयाग को गोद ले लिया। बाद में प्रयाग ने इस्‍लाम कबूल कर लिया और अपना नाम भी बदलकर  रेहमतउल्‍लाह रख लिया। बस तब से ही ये परिवार पूरी तरह से इस्‍लाम को मानने लगा।

एमजे अकबर ने अपने साथ टाइम्‍स ऑफ इंडिया में काम करने वाली मल्लिका जोसेफ के साथ विवाह किया। उनके दो बच्‍चे हैं। एमजे अकबर ने अपने बेटे का नाम प्रयाग रखा है, जबकि बेटी का नाम मुकुलिका है। अकबर के दोनों बच्‍चों ने कैम्ब्रिज से पढ़ाई की है।

टाइम्‍स ऑफ इंडिया से की थी शुरुआत

अकबर ने 1971 में टाइम्‍स ऑफ इंडिया के साथ एक ट्रेनी के तौर पर अपने पत्रकारिता जीवन की शुरुआत की। इसके बाद वह इलूस्‍ट्रेटेड वीकली ऑफ इंडिया में चले गए। यह उस समय भारत में सबसे ज्‍यादा बिकने वाली मैग्‍जीन हुआ करती थी। फ्री प्रेस जरनल ग्रुप की पत्रिका ऑनलुकर के वह 1973 में संपादक बन गए। 1976 में वह कोलकाता चले गए और वहां आनंद बाजार पत्रिका ग्रुप की दि संडे मैग्‍जीन के एडिटर बन गए। 1982 में अकबर ने टेलीग्राफ अखबार को लॉन्‍च किया, जिसने भारत में अखबारी पत्रकारिता को एक नया मुकाम दिलाया।

कांग्रेस के टिकट पर बने सांसद

1989 में वह राजनीति में आए और कांग्रेस के टिकट पर बिहार के किशनगंज से लोकसभा सदस्‍य चुने गए। 1991 लोकसभा चुनाव में उनकी हार हुई। उन्‍होंने प्रधानमंत्री राजीव गांधी के आधिकारिक प्रवक्‍ता की भी भूमिका निभाई।

1991 में एमजे अकबर को मानस संसाधन मंत्रालय में सलाहकार नियुक्‍त किया गया और उन्‍होंने शिक्षा, राष्‍ट्रीय शैक्षणिक मिशन और ऐतिहासिक विरासतों के संरक्षण के लिए नीति बनाने में मदद की। 1992 में वह राजनीति छोड़कर दोबारा प‍त्रकारिता में लौट आए। 1993 में अकबर ने एक नई मीडिया कंपनी की स्‍थापना कर फरवरी 1994 में दि एशियन एज अखबार का प्रकाशन शुरू किया।

मुस्लिम देशों के लिए बनाई पॉलिसी

2005 में साउदी अरब के किंग अब्‍दुल्‍लाह ने अकबर को ऑर्गेनाइजेशन ऑफ इस्‍लामिक को-ऑपरेशन की ओर से मुस्लिम देशों के लिए 10 साल का चार्टर बनाने के लिए गठित की गई समिति का सदस्‍य बना दिया। मार्च 2006 में उन्‍होंने वॉशिंगटन के ब्रूकिंग इंस्‍टीट्यूशन में विजिटिंग फेलो के रूप में सेवाएं दीं। 90 के दशक में अकबर ने दि एशियन एज में अपनी बहुलांश हिस्‍सेदारी डेक्‍कन क्रोनीकल ग्रुप के मालिकों को बेच दी।

इसके बाद अकबर ने 13 मई 2008 को दिल्‍ली में एक राजनीतिक पत्रिका कवर्ट को लॉन्‍च किया, जो कुछ समय बाद ही बंद हो गई। अकबर ने 31 जनवरी 2010 को एक नया संडे अखबार संडे गार्जियन को लॉन्‍च और मई 2014 तक, जब उन्‍होंने पूर्ण रूप से राजनीति में प्रवेश किया, वो इसके एडिटन इन चीफ और एडिटोरियल डायरेक्‍टर बने रहे।

अकबर ने लिखी कई किताबें

एमजे अकबर ने 1990 में नेहरू: दि मेकिंग ऑफ इंडिया नाम की किताब लिखी। इसके बाद 1991 में रॉयट आफ्टर रॉयट और कश्‍मीर: बिहाइंड दि वेल किताब लिखी। 1996 में उन्‍होंने इंडिया नाम से किताब लिखी। 2003 में दि शेड ऑफ सॉर्ड, 2004 में बाइलान, 2006 में ब्‍लड ब्रदर जैसी किताबें लिखीं। 2010 में अकबर ने हैव पेन, विल ट्रेवल और 2012 में पाकिस्‍तान पर एक किताब टिंडरबॉक्‍स लिखी।

दोबारा राजनीति में किया प्रवेश

2014 में अकबर ने भाजपा की सदस्‍यता ली और उन्‍हें लोकसभा चुनावों के दौरान रार्ष्‍टीय प्रवक्‍ता नियुक्‍त किया गया। जुलाई 2015 में अकबर को झारखंड से राज्‍यसभा सदस्‍य बनाया गया। 5 जुलाई 2016 को पीएम नरेंद्र मोदी ने एमजे अकबर को अपने मंत्रिमंडल में शामिल कर विदेश राज्‍य मंत्री की जिम्‍मेदारी सौंपी। अपनी साथी महिला पत्रकारों के साथ यौन दुर्व्‍यवहार के आरोपों से घिरे एमजे अकबर को आखिरकार 17 अक्‍टूबर 2018 को अपने पद से इस्‍तीफा देना पड़ा।

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