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क्या उत्तराखंड में राष्ट्रपति शासन के खिलाफ फैसले के कारण न्यायमूर्ति जोसेफ की पदोन्नति नहीं हुई: कांग्रेस

सुरजेवाला ने कहा, ''न्यायपालिका की गरिमा और संस्थाओं की संवैधानिक सर्वोच्चता को तार-तार करना मोदी सरकार की फितरत बन गई है। जून, 2014 में उन्होंने (सरकार) जानेमाने न्यायविद जी. सुब्रमण्यम के नाम को उच्चतम न्यायालय के न्यायधीश के रूप मंजूरी नहीं दी क्योंकि वह अमित शाह और उनके लोगों के खिलाफ वकील रहे थे।''

Reported by: Bhasha
Published : April 26, 2018 11:54 IST
Row erupts after Centre declines judge Joseph’s elevation to Supreme Court, Congress questions Modi
क्या उत्तराखंड में राष्ट्रपति शासन के खिलाफ फैसले के कारण न्यायमूर्ति जोसेफ की पदोन्नति नहीं हुई: कांग्रेस  

नयी दिल्ली: उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में उत्तराखंड उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश के. एम. जोसेफ के नाम को मंजूरी नहीं दिए जाने को लेकर कांग्रेस ने आज प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर 'बदले की राजनीति' की राजनीति का आरोप लगाया। पार्टी ने सवाल किया कि क्या दो साल पहले उत्तराखंड में राष्ट्रपति शासन लगाए जाने के खिलाफ फैसला देने की वजह से न्यायमूर्ति जोसेफ को पदोन्नति नहीं दी गई? कांग्रेस के मुख्य प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला ने ट्वीट किया है, ''न्यायपालिका को लेकर प्रधानमंत्री मोदी की 'बदले की राजनीति' और उच्चतम न्यायालय का 'साजिशन गला घोंटने' का प्रयास फिर बेनकाब हो गया है।''

उन्होंने कहा, ''न्यायमूर्ति जोसेफ भारत के सबसे वरिष्ठ मुख्य न्यायाधीश हैं। फिर भी मोदी सरकार ने उन्हें उच्चतम न्यायालय का न्यायधीश नियुक्त करने से इनकार कर दिया। क्या यह इसलिये किया गया कि उन्होंने उत्तराखंड में राष्ट्रपति शासन को रद्द कर दिया था?" खबरों के मुताबिक उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में वरिष्ठ अधिवक्ता इंदु मल्होत्रा के नाम को सरकार ने स्वीकृति दे दी है, लेकिन न्यायमूर्ति जोसेफ नाम को मंजूरी नहीं दी गई। उच्चतम न्यायालय के कॉलेजियम से इन दोनों लोगों के नाम की फाइल 22 जनवरी को कानून मंत्रालय को मिली थी। न्यायमूर्ति जोसेफ उत्तराखंड उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश हैं।

गौरतलब है कि मार्च, 2016 में उत्तराखंड में राष्ट्रपति शासन लगाया था। कुछ दिनों बाद ही न्यायमूर्ति जोसेफ की अध्यक्षता वाली उच्च न्यायालय की पीठ ने इसे निरस्त कर दिया था। सुरजेवाला ने कहा, ''न्यायपालिका की गरिमा और संस्थाओं की संवैधानिक सर्वोच्चता को तार-तार करना मोदी सरकार की फितरत बन गई है। जून, 2014 में उन्होंने (सरकार) जानेमाने न्यायविद जी. सुब्रमण्यम के नाम को उच्चतम न्यायालय के न्यायधीश के रूप मंजूरी नहीं दी क्योंकि वह अमित शाह और उनके लोगों के खिलाफ वकील रहे थे।''

उन्होंने दावा किया, ''मोदी जी ने पहले संसदीय विशेषाधिकार और सर्वोच्चता पर कुठाराघात किया फिर उन्होंने मीडिया की आजादी में दखल दिया। और अब लोकतंत्र की अंतिम प्रहरी न्यायपालिका अब तक के सबसे खतरनाक हमले का सामना कर रही है।“ उन्होंने कहा, ''अगर देश अब नहीं खड़ा हुआ तो सर्वसत्तावाद लोकतंत्र को खत्म कर देगा।''

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