कांग्रेस-जनता दल गठबंधन सरकार का नेतृत्व कर रहे कर्नाटक के मुख्यमंत्री एच. डी. कुमारस्वामी के शपथग्रहण समारोह में बुधवार को लगभग सारे गैर-भाजपाई दलों के नेता एक मंच पर नजर आए। गैर-भाजपाई दलों के इस जुटाव ने अगले साल होने वाले लोकसभा चुनावों में मोदी बनाम अन्य सभी के बीच मुकाबले की संभावनाओं को बल दिया है। हालांकि व्यावहारिक तौर पर देखा जाए तो मोदी के खिलाफ एक बड़े गठबंधन के बनने की संभावना अभी भी धुंधली नजर आ रही है।
इसमें कोई शक नहीं है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के डर ने इन गैर-भाजपाई नेताओं को एक मंच पर लाने का काम किया है। अगले लोकसभा चुनावों में मोदी की जीत की संभावनाओं से ये नेता चिंतित हैं। कर्नाटक में कांग्रेस-जनता दल सेक्युलर की गठबंधन सरकार के गठन ने इन नेताओं को हौसला दिया है। इस बात से कांग्रेस सबसे ज्यादा खुश नजर आ रही है, और वह लगातार इस बात पर जोर दे रही है कि अगले साल होने वाले आम चुनावों में मोदी को टक्कर देने के लिए सभी विपक्षी दलों को एक साथ आने की जरूरत है।
हालांकि, कुछ अन्य पार्टियों के विचार कांग्रेस से थोड़े भिन्न नजर आ रहे हैं। चंद्रबाबू नायडू ने जहां ‘क्षेत्रीय पार्टियों के संयुक्त मोर्चे’ की बात पर जोर दिया है, वहीं तृणमूल कांग्रेस की मुखिया ममता बनर्जी ने भी ‘क्षेत्रीय दलों की एकता (को) वक्त की जरूरत’ बताया है। ममता बनर्जी के इस विचार कि कांग्रेस जैसी राष्ट्रीय पार्टी को कर्नाटक में एक क्षेत्रीय पार्टी के सामने झुकना पड़ा, ने अन्य क्षेत्रीय पार्टियों में भी जान फूंक दी है। मार्क्सवादी कम्युनिष्ट पार्टी के महासचिव सीताराम येचुरी और राष्ट्रीय लोकदल के अध्यक्ष अजित सिंह अभी भी इस बात को लेकर आश्वस्त नहीं हैं कि सभी विपक्षी पार्टियों के एक बैनर के तले आना चाहिए या नहीं।
कई राज्य ऐसे हैं जहां क्षेत्रीय दलों का सीधा मुकाबला भारतीय जनता पार्टी से है। कुछ राज्यों में कांग्रेस और बीजेपी एक-दूसरे के खिलाफ मुख्य प्रतिद्वंदी हैं और वहां अन्य दलों की भूमिका नगण्य है। ऐसा कोई भी गठबंधन इन राज्यो में कोई अहमियत नहीं रखता। लेकिन, बिहार, उत्तर प्रदेश, कर्नाटक और आंध्र प्रदेश जैसे राज्यों में, जहां मुकाबला त्रिकोणीय होता है, कांग्रेस और क्षेत्रीय पार्टियां मिलकर भारतीय जनता पार्टी को कड़ी टक्कर दे सकती हैं। (रजत शर्मा)