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नीतीश कुमार: राजनीतिक खामियां और सियासी मजबूती

जेपी आंदोलन से अपना राजनीतिक करियर शुरु करने वाले नीतीश कुमार देखते ही देखते न सिर्फ बिहार की राजनीति के एक मंझे हुए नेता बन गए बल्कि उन्हें सोशल इंजीनियरिंग का जादूगर भी माना जाने

PRAVEEN DWIVEDI
Updated on: October 07, 2015 20:58 IST
नीतीश कुमार: राजनीतिक...- India TV Hindi
नीतीश कुमार: राजनीतिक खामियां और सियासी मजबूती

जेपी आंदोलन से अपना राजनीतिक करियर शुरु करने वाले नीतीश कुमार देखते ही देखते न सिर्फ बिहार की राजनीति के एक मंझे हुए नेता बन गए बल्कि उन्हें सोशल इंजीनियरिंग का जादूगर भी माना जाने लगा। चार बार राज्य के मुखिया की कमान संभाल चुके नीतीश कुमार पिछले दस सालों से बिहार के मुख्यमंत्री हैं और राज्य में सुशासन और विकास की धारा बहाने के प्रयास कर रहे हैं। बिहार बेशक तेजी से विकास करते राज्यों की सूची में शुमार हो चला है, लेकिन राज्य को अब भी काफी कुछ मिलना बाकी है। यानी बिहार के हालात उतने नहीं सुधरे हैं जितने की उम्मीद नीतीश कुमार से की गई थी। विगत दस सालों में नीतीश कुमार ने कुछ ऐसे कदम उठाए हैं, जो उनकी सबसे बड़ी सियासी खामियां मानी गईं। राजनीतिक पंडितों ने भी नीतीश के कुछ कदमों को उनकी भारी कमियां बताया। जानिए नीतीश कुमार की कौन सी भूलें इस बार के बिहार चुनाव में उनकी सबसे कमजोर कड़ियां मानी जा रही हैं।

बड़ी खामियां-

एनडीए से अलग होना-

साल 2013 के बाद से ही भाजपा में मोदी का कद बढ़ता चला गया। साल 2014 के चुनाव की तैयारियां चल रही थीं। उन्हें पहले केंद्रीय संसदीय समिति में शामिल किया गया और फिर उन्हें आम चुनाव के लिए प्रचार समिति का मुखिया चुन लिया गया। पार्टी की संसदीय बोर्ड की बैठक के बाद 13 सिंतबर 2014 उन्हें तमाम विरोधों के बावजूद पार्टी की तरफ से प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित कर दिया जाता है। इन सब के बाद नीतीश कुमार एनडीए से अलग होने का फैसला कर लेते हैं। आपको बता दें कि धर्मनिर्पेक्षता की दुहाई देकर एनडीए से अलग होने वाले नीतीश कुमार साल 2005 में एनडीए के नेतृत्व में ही मुख्यमंत्री चुने गए थे। ऐसे में 9 साल बाद एनडीए से अलग होने का फैसला करना राजनीतिक गलियारों में उनकी सबसे बड़ी सियासी खामी माना गया।

मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देना-

पहले एनडीए से अलग हुए फिर लोकसभा चुनाव के दौरान मोदी का विरोध कर चुनाव प्रचार किया। इसके बावजूद आम चुनाव में मोदी नाम की ऐसी लहर चली की सारी राजनीतिक कयासबाजियां धरी की धरी रह गईं। नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भाजपा की प्रचंड जीत के बाद नीतीश कुमार ने हार की जिम्मेदारी अपने ऊपर स्वीकार करते हुए जद-यू से इस्तीफा दे दिया था। आपको बता दें कि 2014 के आम चुनाव के दौरान भाजपा के घटक दलों ने मिलकर 31 सीटों पर कब्जा जमाया था। 40 लोकसभा सीटों वाले बिहार में 22 सीटें सिर्फ भाजपा ने जीती थीं। नीतीश की इस कदम को भी हर तरफ से आलोचना मिली।

जीतन राम मांझी को मुख्यमंत्री पद से हटाना-

मुख्यमंत्री पद की कुर्सी छोड़ने के बाद नीतीश एक और सियासी गलती की तरफ बढ़ गए। उन्होंने अपने वफादार जीतन राम मांझी को मुख्यमंत्री बना दिया। मांझी शुरु शुरु में नीतीश को अपना भगवान बताते रहे, लेकिन बाद में मांझी ने भी अपना रंग दिखाना शुरु कर दिया। मांझी जब नीतीश के लिए मुश्किलें खड़ी करने लगे तो उन्हें मांझी को कुर्सी और पार्टी से बेदखल करने पर मजबूर होना पड़ा। यह नीतीश की ऐसी भूल थी जिससे उनके बैकवर्ड क्लास के वोट का नुकसान हो सकता है। मांझी का कॉडर भी अब नीतीश से रुठा-रुठा सा है और यह उन्हें चुनाव में भारी नुकसान दे सकता है।

लालू से हाथ मिलाना-

लालू और नीतीश एक ही जनता पार्टी से निकले नेता थे लेकिन दोनों की विचारधाराएं और राजनीतिक शैली एकदम जुदा थीं। साल 2005 में लालू के 15 सालों के ‘जंगलराज’ की पोल खोलकर बिहार के मुख्यमंत्री बने नीतीश कुमार ने साल 2015 में लालू से हाथ मिलाकर बिहार के उस तबके को निराश कर दिया जो लालू राज से त्रस्त था। नीतीश खुद बिहार के ‘जंगलराज’ की बात कहते थे लेकिन लालू से हाथ मिलाने के बाद उनके सुर बदल गए। वो अब कह रहे हैं कि उन्होंने कभी अपने मुंह से जंगलराज शब्द का जिक्र नहीं किया। राज्य में सुशासन और मंगलराज लाने वाले नीतीश का ‘जंगलराज’ वाले लालू से हाथ मिलाना किसी को भी रास नहीं आ रहा है। ऐसे में महागठबंधन के साथ नीतीश की मुश्किलें कम होती नहीं दिख रही हैं।

सियासी मजबूती

बिहार में अपराधियों का भय खत्म हो रहा है-

बिहार के रहने वाले कहते हैं कि बिहार में नीतीश के आने के बाद काफी कुछ बदला है। पहले सूर्यास्त के बाद घर से निकना मुश्किल हुआ करता था, लेकिन अब ऐसा नहीं है। पहले राज्य में डकैती, अपहरण और हत्या (जंगलराज) आम बात हो चुकी थी, लेकिन इन सब में अब काफी तब्दीली आ चुकी है। ऐसा नहीं कह सकते हैं बिहार अब पूरी तरह बदल गया है लेकिन हालात पर पहले से ज्यादा नियंत्रण हो चुका है।

'क्या था जंगलराज'-

विरोधी दल लालू पर यह आरोप लगाते रहे हैं कि राजद के शासनकाल में राजनेता और नौकरशाह मिलकर आम जनता का शोषण करते थे, पुलिस भी तब बेबस थी, जिस वजह से जंगलराज की बात सामने आई थी।

अपहरण(किडनैपिंग) और मर्डर-

ऐसा माना जाता है कि लालू और राबड़ी के 15 सालों के शासन में अपहरण की घटनाएं पहले से बहुत ज्यादा बढ़ गई थीं। डॉक्टरों, इंजीनियरों और व्यापारियों को दिनदहाड़े उठा लिया जाता था। वहीं हत्याओं की वारदातें भी इस दौरान काफी चर्चा में रहती थीं।

देना पड़ता था रंगदारी टैक्स-

बिहार में कोई भी व्यक्ति अगर नया धंधा लगाता था, कोई संपत्ति या गाड़ी खरीदता, तो गुंडे उनसे जबरन पैसा वसूल करते थे, जिसे रंगदारी कहा जाता था। पुलिस-प्रशासन राजनीतिक पहुंच वाले गुंडों के खिलाफ कुछ नहीं कर पाता था। नीतीश के शासनकाल में ऐसी घटनाओं में काफी कमी आई है।

ब्यूरोक्रेसी की हालत में आया सुधार-

बिहार में ब्यूरोक्रेसी की हालत में सुधार देखने को मिला है। सरकारी कामकाजों में पारदर्शिता और केंद्र से आवंटित धन के सही उपयोग के जरिए बेहतर बिहार बनाने की कोशिश हुई है। राज्य में बेहतर सड़कों और पुलों ने पूर्व स्थिति में बदलाव लाने की कोशिश की है।

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