भुवनेश्वर: कुदरती और सियासी तूफानों को झेलने में माहिर नवीन पटनायक ने लगातार पांचवीं बार ओडिशा के मुख्यमंत्री पद की शपथ ली और उड़िया ठीक से नहीं बोल पाने वाले इस मृदुभाषी नेता ने ‘मोदी लहर’ में भी अपना जनादेश पूरी शिद्दत से बचाते हुए ओडिशा के इतिहास का नया अध्याय लिख डाला। चक्रवात फोनी के कहर से बुरी तरह प्रभावित ओडिशा के लिए विशेष राज्य के दर्जे की मांग करने वाले नवीन पटनायक ‘ईमानदार और स्वच्छ ’ नेता की अपनी छवि के दम पर भाजपा की कड़ी चुनौती का मुकाबला करने में कामयाब रहे।
विशेषज्ञों की मानें तो पटनायक इस चुनाव के बाद अकेले प्रांतीय छत्रप रह गए हैं। उनके मार्गदर्शन में बीजू जनता दल ने एक बार फिर शानदार जीत दर्ज की और राज्य विधानसभा की 147 सीटों में से 112 पर अपना परचम फहराया। उड़िया भी ठीक से नहीं बोल पाने वाले पटनायक ने 1997 में अपने पिता और ओडिशा के पूर्व मुख्यमंत्री बीजू पटनायक के निधन के बाद पार्टी की कमान संभाली। नवीन पटनायक की पहचान शुरूआत में उनके बेटे के रूप में ही रही लेकिन आज वह एक स्वतंत्र, दमदार एवं लोकप्रिय नेता के तौर पर जाने जाते हैं।
अपने पिता की लोकसभा सीट अस्का से 1997 में चुनाव लड़कर राजनीति में कदम रखने वाले नवीन पटनायक ने धीरे धीरे राज्य के लोगों के दिलों खास जगह बनाई। 1998 में जनता दल टूट गया और पटनायक ने बीजू जनता दल बनाया। उन्होंने भाजपा के साथ गठबंधन किया और 1998 में अटल बिहारी वाजपेयी सरकार में मंत्री रहे। पटनायक 1998 और 1999 में अस्का से फिर चुने गए। भाजपा-बीजद गठजोड़ ने 2000 में राज्य विधानसभा चुनाव जीता तो नवीन पटनायक ही मुख्यमंत्री बने। 2004 में भी वह सत्ता में आये।
विहिप नेता स्वामी लक्ष्मणनंदा सरस्वती की हत्या के बाद हुए कंधमाल दंगों से दोनों दलों में मतभेद पैदा हुआ। पटनायक ने 2009 आम चुनाव और विधानसभा चुनाव से पहले भाजपा से नाता तोड़ दिया। यह राजनीतिक परिप्रेक्ष्य में उनका ‘मास्टरस्ट्रोक’ साबित हुआ और प्रदेश की राजनीति में उनका कद बढ़ा। बीजद ने लोकसभा में 21 में से 14 और विधानसभा में 147 में से 103 सीटें जीतीं। उसके बाद पटनायक ने कई सियासी तूफानों का सामना किया जिनमें 2012 में उनकी ही पार्टी के नेताओं द्वारा कथित तख्तापलट का प्रयास शामिल था जब वह विदेश में थे। उस तूफान में वह और निखरकर उभरे।
बीजद ने 2014 में मोदी लहर के बावजूद रिकार्ड जीत दर्ज की। पटनायक की पार्टी ने 147 में से 117 सीटें और लोकसभा में 21 में से 20 सीटें जीतीं। लेखक, कलाप्रेमी और चतुर राजनीतिज्ञ नवीन पटनायक ऊपर से भले ही शांत दिखते हों लेकिन विरोधियों, पार्टी के बागियों के साथ ही कुदरती और सियासी तूफानों से निपटने का शऊर उन्हें बखूबी आता है और यह उनकी सफलता की कुंजी भी रहा है।
ओडिशा के मुख्यमंत्री के रूप में पहली बार 2000 में शपथ लेने वाले पटनायक का सामना चिटफंड घोटाले से लेकर खनन घोटाले समेत कई विवादों से हुआ लेकिन अपने राज्य में वह निर्विवादित रूप से सबसे लोकप्रिय नेता बने रहे और आज, लगातार पांचवी बार राज्य की बागडोर उन्होंने संभाली। पटनायक की नरम मुस्कान के पीछे आधुनिक राजनीति का सख्त धुरंधर शख्स छिपा है। उन्होंने विजय महापात्रा, प्यारे मोहन महापात्रा, करीबी सहयोगी बैजयंत पांडा और दामोदर राउत जैसे बागियों को भी नहीं बख्शा।
ओडिशा के लोगों के दिलों में पटनायक की खास जगह है। एक रूपये किलो चावल और पांच रूपये में खाने की उनकी योजनायें बेहद लोकप्रिय रहीं। उन्होंने 2019 के विधानसभा चुनाव से पहले महिलाओं के लिये 33 प्रतिशत आरक्षण का समर्थन किया और उसे लागू भी किया। भाजपा और कांग्रेस दोनों से दूरी बनाये रखते हुए पटनायक ने संकेत दिया कि ओडिशा के हितों की रक्षा करने वाले किसी भी गठबंधन का समर्थन करने को वह तैयार हैं। कई किताबें लिख चुके पटनायक ने विधानसभा चुनाव में शानदार प्रदर्शन करके ओडिशा के इतिहास का एक नया अध्याय लिख डाला है जिसके महानायक वह खुद हैं।