प्रधानमंत्री मोदी दो दिन के अपने गृहराज्य गुजरात के दौरे पर हैं। पिछले 12 महीनों में मोदी की यह 12वीं गुजरात यात्रा है। राज्य में इस साल के आखिर में चुनाव होने हैं, लिहाजा मोदी के गुजरात दौरे को पार्टी की चुनाव से जोड़कर भी देखा जाना स्वाभाविक है। गुजरात में पिछले तीन चुनावों बीजेपी को एकतरफा जीत मिली लेकिन इस बार बीजेपी के लिए राह आसान नहीं है। यह गुजरात बीजेपी के नेताओं के साथ साथ पीएम मोदी भी बखूबी समझ रहे हैं, इसलिए पीएम मोदी पाटीदारों के गढ़ में रोड शो कर रहे हैं तो दलित और गोरक्षाकों के मुद्दे पर खुलकर बोल रहे हैं।
दरअसल गुजरात में बीजेपी को तीन बड़ी चुनौतियों से दो-चार होना है। पहली चुनौती गुजरात में पार्टी के नेतृत्व को लेकर है। आने वाले विधानसभा चुनाव में बीजेपी को सबसे ज्यादा कमी पिछले डेढ़ दशक से अपने सेनापति रहे नरेंद्र मोदी की ही खलेगी। मौजूदा समय में गुजरात बीजेपी के पास मोदी जैसे करिश्माई नेतृत्व का अभाव साफ दिख रहा है। मौजूदा समय में गुजरात बीजेपी के पास ऐसा कोई करिश्माई चेहरा नहीं है जो अपने आभामंडल से सबको बांध सके और प्रभावित कर सके। बतौर सीएम मोदी ने राज्य में जो प्रभाव क्षेत्र बिखेरा है उसकी तुलना में सीएम रूपाणी छोटे नहीं बल्कि बौने नजर आते हैं। नरेंद्र मोदी के दिल्ली दरबार में चले जाने की कीमत पिछले तीन साल से राज्य में पार्टी और सरकार चुका रही है।
दूसरी प्रमुख वजह राज्य में पाटीदारों समुदाय का रूख सकारात्मक नहीं है। पिछले 3 साल में तमाम कोशिशों के बावजूद पाटीदार समुदाय के तेवर ठंडे नहीं पड़े हैं। सीएम आंनदी पटेल के कार्यकाल में आरक्षण की मांग को लेकर पाटीदारों का जो आंदोलन शुरू हुआ वह आज तक कायम है। इस आंदोलन की वजह से बीजेपी सरकार और पाटीदारों के बीच 36 का आंकड़ा हो गया। तमाम मुद्दों पर पाटीदार और सरकार आमने-सामने दिखते है। इसी खटास की वजह से आनंदी बेन पटेल को सीएम कुर्सी गंवानी पड़ी, लेकिन खटास आज भी बरकरार बनी हुई है।
पाटीदार आंदोलन के साथ-साथ उग्र गोरक्षकों का मामला भी बीजेपी के लिए गले की हड्डी बना हुआ है। पिछले साल 11 जुलाई को ऊना में दलितों के साथ गोरक्षकों की मारपीट की ऐसी तस्वीरें सामने आईं जिसने बीजेपी के खिलाफ पूरे देश के दलित गुस्से से भर गए। पिछले साल 15 अगस्त को इस मारपीट के विरोध में दलितों ने बीजेपी सरकार के खिलाफ व्यापक स्तर पर विरोध-प्रदर्शन किया था और विपक्षी दलों ने भी इस विरोध प्रदर्शन में बढ़ चढ़कर हिस्सा लिया था। आज भी गाहे-बगाहे राज्य में दलितों के साथ हिंसा की छिटपुट घटनाएं हो रही हैं, जो चुनाव मोड पर चल रही सरकार के लिए सिरदर्द कम नहीं है।
गुजरात में सरकार के खिलाफ आंशिक ही सही लेकिन एंटी इनकमबेंसी भी दिख रही है। पिछले विधानसभा चुनावों तक तो मोदी जैसे करिश्माई चेहरे की वजह से कांग्रेस का हर दांव खाली जाता था, लेकिन इस चुनाव में विपक्ष के सामने सीधे तौर पर नरेंद्र मोदी नहीं हैं। ये अलग बात है कि मोदी भावनात्मक जुड़ाव का दांव चल सकते हैं। बावजूद इसके स्थानीय नेताओं को लेकर विरोध से पूरी तरह इनकार नहीं किया जा सकता। राज्य में विपक्ष के साथ पाटीदारों और दलितों का जुड़ाव भी दिख रहा है, लिहाजा मौजूदा हालात को देखते हुए कांग्रेस भी अपनी वापसी का इसे बेहतरीन मौका मान रही है।
इसके साथ ही विपक्षी दल जिस तरह एकजुट होने की तैयारी कर रहे हैं उससे इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि ऐसी छोटी पार्टियां जो अब तक कांग्रेस के वोट में सेंध लगाती थी, इस बार उसके साथ मैदान में उतरेंगी। विपक्षी एकता से राज्य में बीजेपी के समीकरण को धक्का लग सकता है। हालिया कॉर्पोरेशन के चुनावों में इसके संकेत भी दिखे हैं। इन सब वजहों को देखते हुए पीएम मोदी बार-बार गुजरात का दौरा कर रहे हैं। और दरार को रोकने और एक-एक वोट को साधने में जुटे हुए हैं। आखिर 'ट्रंप कार्ड' मोदी का उनके गृहराज्य में चलना तो स्वाभाविक ही है!!
(इस ब्लॉग के लेखक शिवाजी राय पत्रकार हैं और देश के नंबर वन हिंदी न्यूज चैनल इंडिया टीवी में कार्यरत हैं)