लखनऊ. बसपा की सुप्रीमो मायावती ने कांग्रेस पार्टी पर बड़ा हमला बोला है। उन्होंने चरणजीत सिंह चन्नी को पंजाब का सीएम बनाए जाने पर उन्हें बधाई तो दी है लेकिन कांग्रेस के इस फैसले को महज चुनावी हथकंडा बताया। उन्होंने कहा कि पंजाब चुनाव में कांग्रेस का चेहरा गैर-दलित होगा। मायावती ने कहा कि कहा कि अगर कांग्रेस पार्टी इनको पहले ही 5 सालों के लिए सीएम बना देती तो अच्छा होता। इन्हें कुछ समय के लिए मुख्यमंत्री बनने से तो ये लगता है कि ये महज चुनावी हथकंडा है।
मायावती ने कहा कि पंजाब में कांग्रेस अगला चुनाव गैर दलित के नेतृत्व में लड़ेगी, जिससे साफ जाहिर हो जाता है कि कांग्रेस पार्टी का दलितों पर अभी भी भरोसा नहीं है। इसलिए वहां के दलित लोगों को कांग्रेस से सजग रहना होगा। उन्होंने कहा कि पंजाब में कांग्रेस बसपा औऱ अकाली दल के गठबंधन से घबराई हुआ है। कांग्रेस को दलित लोग मजबूरी में ही याद आते हैं।
कौन हैं चरणजीत सिंह चन्नी
पंजाब के नए मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी दलित सिख (रामदासिया सिख) समुदाय से आते हैं और अमरिंदर सरकार में तकनीकी शिक्षा मंत्री थे। वह रूपनगर जिले के चमकौर साहिब विधानसभा क्षेत्र से विधायक हैं। वह इस क्षेत्र से साल 2007 में पहली बार विधायक बने और इसके बाद लगातार जीत दर्ज की। वह शिरोमणि अकाली दल-भाजपा गठबंधन के शासनकाल के दौरान साल 2015-16 में विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष भी थेरंधावा और सोनी ने ली मंत्री पद की शपथ
चरणजीत सिंह चन्नी के साथ सुखजिंदर सिंह रंधावा और ओपी सोनी ने मंत्री पद की शपथ ली। रंधावा गुरुदासपुर जिले के डेरा बाबा नानक विधानसभा क्षेत्र से विधायक हैं। वह अमरिंदर सिंह के नेतृत्व वाली सरकार में कारागार मंत्री थे। सोनी अमृतसर (मध्य) विधानसभा क्षेत्र से विधायक हैं और पिछली सरकार में स्कूली शिक्षा मंत्री थे। रंधावा और सोनी को इस सरकार में महत्वपूर्ण जिम्मेदारी सौंपकर कांग्रेस ने सामाजिक समीकरण को साधने की कोशिश की है।
राहुल गांधी की पसंद हैं चन्नी
अमरिंदर सिंह के इस्तीफा देने के बाद चन्नी को कांग्रेस विधायक दल का नया नेता चुना गया था। कांग्रेस सूत्रों का कहना है कि चन्नी मुख्यमंत्री पद के लिए राहुल गांधी की पसंद हैं। सूत्रों का कहना है कि मुख्यमंत्री चन्नी आज पूर्व मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह से मुलाकात कर उन्हें मनाने की कोशिश कर सकते हैं। अमरिंदर सिंह ने शनिवार को मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया था और कहा था कि विधायकों की बार-बार बैठक बुलाए जाने से उन्होंने अपमानित महसूस किया, जिसके बाद उन्होंने यह कदम उठाया।