अहमदाबाद: पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने आज किसानों की आमदनी दोगुनी करने के वादे को लेकर नरेंद्र मोदी सरकार पर निशाना साधा। सिंह ने कहा कि यह मोदी का एक और चुनावी जुमला है क्योंकि सरकार ने इस लक्ष्य को हासिल करने के लिए किसी तरह की पुख्ता योजना नहीं बनाई है।
यहां संवाददाता सम्मेलन को संबोधित करते हुए सिंह ने कहा कि इस लक्ष्य को हासिल करने के लिए कृषि क्षेत्र की वृद्धि दर 10 प्रतिशत होनी चाहिए। उन्होंने मोदी सरकार पर हमला बोलते हुए कहा कि स्टार्ट अप इंडिया, स्टैंड अप इंडिया और स्किल इंडिया सुनने में अच्छे नारे हैं, लेकिन इनके लिए किसी तरह की प्रभावी नीतियां नहीं बनाई गई हैं।
मोदी के काम करने के तरीके पर भी सिंह ने निशाना साधा। उन्होंने कहा कि नेताओं को आलोचना को सुनना चाहिए और उसी के हिसाब से सुधारात्मक कदम उठाना चाहिए, उन्हें सिर्फ प्रशंसा की उम्मीद नहीं करनी चाहिए। पूर्व प्रधानमंत्री ने कहा कि मोदी कहते हैं कि वह 2022 में जब देश अपनी आजादी की 75वीं वर्षगांठ मनाएगा, तो उनका सपना है कि किसानों की आय दोगुनी हो जाए।
सिंह ने कहा, ‘‘मोदी सरकार के पहले तीन साल के कार्यकाल में कृषि क्षेत्र की औसत वृद्धि दर सिर्फ 1.8 प्रतिशत रही है। यह जबकि संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (UPA) सरकार के दस साल के कार्यकाल में कृषि क्षेत्र की औसत सालाना वृद्धि दर 3.7 प्रतिशत रही थी।’’ सिंह ने कहा कि देश की 50 प्रतिशत आबादी कृषि पर निर्भर है। ‘‘मोदी ने नारा दिया है कि कृषि आय पांच साल में दोगुनी हो जाएगी। पांच साल में इसे दोगुना करने के लिए कृषि आमदनी में सालाना 14 प्रतिशत वृद्धि की जरूरत है।’’
उन्होंने कहा, ‘‘मुझे नहीं पता कि दोगुना करने में मुद्रास्फीति के प्रभाव को शामिल किया गया है या नहीं। यदि वह मुद्रास्फीति को चार प्रतिशत मान रहे हैं तो भी वास्तविक रूप से 10 प्रतिशत की सालाना वृद्धि की जरूरत होगी।’’ पूर्व प्रधानमंत्री ने कहा कि मुझे कोई ऐसा कार्यक्रम नहीं दिखाई देता जिससे देश के किसानों के लिए यह वृद्धि दर हासिल की जा सके।
नोटबंदी पर सिंह ने कहा, ‘‘मैंने इस पर काफी समय लगाया है क्योंकि मुझे यह चिंता है जबकि ऐसी दुनिया जहां आर्थिक नीतियां जटिल होती जा रही हैं, हम ऐसी संस्कृति का विकास नहीं कर पा रहे हैं जिसमें नीतिगत विकल्प का आलोचनात्मक रूप से आकलन किया जा सके और आलोचना के आधार पर हम सुधारात्मक कदम उठा सकें।’’ उन्होंने मोदी के विकास एजेंडा पर कहा, ‘‘यदि नेता सिर्फ प्रशंसा सुनना चाहते हैं, तो उन्हें इसके अलावा कुछ और सुनने को मिलेगा। यह विकास की ‘रेसिपी’ नहीं है।’’