मुंबई। महाराष्ट्र में सावरकर के नाम पर सियासत थमने का नाम नहीं ले रही है। गुरुवार को सूबे के पूर्व सीएम और भाजपा नेता देवेंद्र फडणवीस ने सावरकर पर कांग्रेस के हमलों को नजरअंदाज करने को लेकर महाराष्ट्र में सत्तारूढ़ शिवसेना पर निशाना साधा। पूर्व मुख्यमंत्री फडणवीस ने महाराष्ट्र कांग्रेस की पत्रिका 'शिडोरी' में सावरकर को लेकर प्रकाशित दो लेखों का जिक्र किया और पूछा कि शिवसेना इतना असहाय क्यों महसूस कर रही है। उन्होंने मराठी पत्रिका पर प्रतिबंध लगाने की मांग करते हुए कहा कि कांग्रेस को सावरकर के खिलाफ अपमानजनक लेखों के लिए माफी मांगनी चाहिए।
आपको बता दें कि महाराष्ट्र कांग्रेस के मुखपत्र 'शिडोरी' में वीर सावरकर पर दो आपत्तिजनक लेख लिखे है। पहले लेख को 'स्वातंत्र्यवीर नहीं, माफी वीर' शीर्षक दिया गया है। इस लेख में लिखा है, "साल 1920 में भोपटकर ने "वीर " यह विशेषण विनायक दामोदर सावरकर इनके नाम के आगे लगाया और वह आगे स्वातंत्र्यवीर नाम से पहचाने जाने लगे परंतु सावरकर संबधित असली कागजों के आधार पर सावरकर स्वतंत्रवीर नहीं, माफी वीर होने की बात 'द वीक ' देश के जिम्मेदार मैगजीन ने जनवरी 2016 में यह जानकरी ऐतिहासिक कागजों के आधार पर सामने लाई जिसे अब तक किसी ने खारिज नही किया है।" (Trascript)
दूसरे लेख का शीर्षक है- 'अंधारातील सावरकर' यानी 'अंधेरे के सावरकर' इस नाम से है। इस लेख में सावरकर को बलात्कारी बताया गया है, साथ ही उनके पारिवारिक जीवन के बारे में भी कई आपत्तिजनक जानकारी लिखी गई है। इसमें लिखा है, "सावरकर ने यमुना बाई उर्फ माई से सिर्फ पैसों के लिए विवाह किया था, यमुना बाई के पिताजी अमीर थे और सावरकर के घर का जिम्मा वही उठाते थे , यमुना बाई सावरकर की दूसरी पत्नी थीं। यह बात इतिहास में दबा कर रखी थी। पिछले साल लंदन के परमान्टेन्ट कोर्ट ऑफ अर्बिटेसन (जहां सावरकर कैद में रहे) और राष्ट्रीय संग्रहालय ने एक पुस्तिका जारी की उसमें जस्टिस बिरनरेट्स के पत्रों का हवाला देते हुए कहा है कि यमुना बाई से पहले कासा बाई सावरकर की पत्नी थीं।"
लेख में यह भी लिखा है- "सावरकर की लंदन में एक महिला मित्र थी जिनका नाम जुडि केट था। वो वहां की एक लाइब्रेरी में सफाई कर्मचारी थीं जो सावरकर से गर्भवती रहीं लेकिन सावरकर ने इस बात से इंकार कर दिया और उस महिला को नकार दिया लेकिन बाद में उन पर लगे बलात्कार के आरोप सिद्ध हुए और उन्हें लंदन में सलाखों के पीछे की हवा खानी पड़ी। यह खबर उनके साथ रहने वाले भाऊसाहेब रानडे द्वारा काल नाम के अखबार के संपादक शिवराम पंत परांजपे को बताई जिनकी मदद से सावरकर को 2 हजार रुपए की शिष्यवृत्ति मिलती थी। वो बाद में बंद हो गई।" (transcript)