नई दिल्ली: महाराष्ट्र में सरकार बनाने के लिए शिवसेना को समर्थन देने को लेकर कांग्रेस और एनसीपी में अभी भी मंथन का दौर चल रहा है। बता दें कि शिवसेना को समर्थन देने का फैसला लेना कांग्रेस के लिए आसान नहीं है। लोकसभा चुनाव के दौरान कांग्रेस पार्टी की देशभर में हार के बावजूद केरल ऐसा राज्य रहा है जहां कांग्रेस को भारी जनसमर्थन मिला है। राज्य की 20 लोकसभा सीटों में से कांग्रेस पार्टी अकेले 15 सीटों पर चुनाव जीतने में कामयाब हुई थी। उस समय पार्टी के अध्यक्ष राहुल गांधी ने भी केरल की वायनाड सीट से चुनाव लड़ा था और भारी मतों से जीत प्राप्त की थी। ऐसा समझा जाता है कि केरल में मुस्लिम मतदाताओं ने कांग्रेस पार्टी को भारी संख्या में वोट दिए थे।
वहीं दूसरी तरफ शिवसेना हिंदुत्व की राजनीति करती आई है और ऐसा माना जाता है कि महाराष्ट्र में मुस्लिम मतदाता शिवसेना को ज्यादा वोट नहीं करते। अब कांग्रेस पार्टी के लिए यह बड़े इम्तिहान की घड़ी है कि वह शिवसेना के साथ हाथ मिलाए या नहीं। सत्रों के मुताबिक केरल से आने वाले कांग्रेस पार्टी के कई बड़े नेता शिवसेना के साथ गठबंधन का विरोध कर रहे हैं। सूत्रों के मुताबिक वरिष्ठ कांग्रेस नेता और पूर्व रक्षा मंत्री ए के एंटनी भी कांग्रेस पार्टी और शिवसेना के बीच गठबंधन से खिलाफ हैं, ए के एंटनी केरल के मुख्यमंत्री भी रह चुके हैं।
राजनीतिक विश्लेषकों के मुताबिक कांग्रेस की 'केरल लॉबी' नहीं चाहती कि महाराष्ट्र में शिवसेना को समर्थन दे। पहले ही दिन से ए के एंटनी इसका विरोध कर रहे है और वहीं कांग्रेस के संगठन महासचिव केसी वेणुगोपाल भी केरल से ही आते हैं या यू कहे कि कांग्रेस आलाकमान पर केरल लॉबी इस वक्त काफी हावी है।
शिवसेना अपने कट्टरपंथी उद्देश्यों और कट्टरपंथी हिंदुत्व विचारधारा की हमेशा से पैरोकार रही है। शिवसेना के अतीत के इस पहलू से कांग्रेस के नेतृत्व को भारी असुविधा हो रही है, कांग्रेस में एके एंटनी और के सी वेणुगोपाल की 'केरल लॉबी' सोनिया गांधी को इसे लेकर आगाह भी करते आ रहे हैं।
कांग्रेस को डर है कि शिवसेना का समर्थन करने पर अल्पसंख्यक वोट बैंक उससे छिटक सकता है। इन सब वजहों से सोनिया गांधी शिवसेना को समर्थन देने पर फैसला नहीं ले पा रही हैं। सेक्युलरिज्म के कैंप की अगुआ रही कांग्रेस के लिए उग्र हिंदुत्व की पैरोकार शिवसेना से हाथ मिलाना ऐसा फैसला नहीं है, जिसे वह सहजता से ले सके। साथ ही कांग्रेस को लंबी राजनीति की चिंता है। वह जानती है कि एक बार शिवसेना के साथ गए तो उत्तर भारतीय और अल्पसंख्यक वोट दूर चला जाएगा। साथ ही देश की राजनीति में कांग्रेस पर 'कम्युनल' कहलाने वाली शिवसेना से हाथ मिलाने का आरोप लगेगा। इससे केंद्र में सेक्युलर गठजोड़ का उसका सपना अधूरा रह जाएगा।