नई दिल्ली: महाराष्ट्र में सरकार बनाने को लेकर शिवसेना, एनसीपी और कांग्रेस के बीच लगातार बैठक हो रही है लेकिन इसके बाद भी कुछ मुद्दों पर सहमति नहीं हो पाई है इसलिए आज फिर बैठक होगी। हलांकि ये तय हो गया है कि उद्धव ठाकरे महाराष्ट्र के अगले मुख्यमंत्री होंगे। मतलब महाराष्ट्र में सत्ता का अगल केंद्र मातोश्री बनने वाला है। महाराष्ट्र में विधानसभा चुनाव में एक भी पार्टी को स्पष्ट बहुमत नहीं मिला, तब से दिल्ली से मुंबई तक सियासी जोड़-घटाव, गुणा-भाग चल रहा था और इसका परिणाम कल शाम में तब आया जब तीनों पार्टियों की मीटिंग हुई और शरद पवार बाहर निकले।
शरद पवार जब बाहर निकले तब वो बात बोल कर निकल गए जिस पर महाराष्ट्र की जनता एक महीने से कान लगाकर बैठी थी कि उद्धव ठाकरे ही होंगे महाराष्ट्र के नए मुख्यमंत्री। ठाकरे खानदान का पहला शख्श महाराष्ट्र की गद्दी संभालने जा रहा है और गद्दी भी ऐसी जिसे हासिल करने के लिए विचारधारा को छोड़नी पड़ी, सिद्धातों की तिलांजलि दी गई।
ये तो साफ है कि उद्धव ठाकरे महाराष्ट्र की सियासत के सबसे बड़े खिलाड़ी बन गए हैं लेकिन कांग्रेस इस सच को स्वीकार करने में अब भी परहेज कर रही है। जो बात पवार बोल कर निकल गए, उसे अहमद पटेल नहीं बोल पाए। ना वो सीएम पद की सहमति के बारे में बोल पाए और ना ही सरकार गठन के बारे में बता पाए। उन्होंने साफ कहा कि अभी कुछ मुद्दों पर बात अटकी है। आज फिर बैठक होगी और उसके बाद कुछ बताएंगे।
पत्रकारों ने एक बार नहीं कई बार सवाल किया लेकिन अहमद पटेल ने कुछ नहीं कहा। इसके बाद समझना आसान था कि कुछ मुद्दों पर बात नहीं बन पाई है। मतलब शुक्रवार को बैठक खत्म नहीं हुई थी, बस एक ब्रेक हुआ था और आज फिर वहीं से मंथन शुरु होगा। तो सवाल है कौन से हैं वो मुद्दे जिसपर राज्यपाल के पास जाने की तारीख तय नहीं हो पा रही है?
दरअसल स्पीकर कौन होगा, इस बात पर बात अटक गई है। एनसीपी इसे अपने पास रखना चाहती है। दो-दो मुख्यमंत्री पर भी बात अटकी हुई है। गृह मंत्रालय किसके पास रहेगा इस पर भी बात नहीं बन पा रही है और ना ये तय हो पा रहा है कि राजस्व मंत्रालय और शहरी विकास मंत्रालय किसके पास होगा।
मतलब जो दिख रहा है या दिखाने की कोशिश हो रही है वैसा है नहीं। उद्धव ठाकरे की चाहत, पवार की सियासत और कांग्रेस की मजबूरी ने एक ऐसे तिकड़म को महाराष्ट्र में रच दिया है जिसकी उम्मीद चुनाव से पहले किसी ने नहीं की थी। खुद उद्धव ठाकरे ने भी नहीं की थी।
30 साल की दोस्ती, सत्ता के खेल में दुश्मनी में बदल गई और 53 साल की दुश्मनी सत्ता के लिए दोस्ती में बदल गई। चुनाव परिणाम के बाद सबने सोचा था कि मातोश्री का सूरज ढल गया है लेकिन ये कोई नहीं जानता था कि मातोश्री ही महाराष्ट्र की शक्ति और सत्ता का नया पता बनने वाला है।