नई दिल्ली: महाराष्ट्र में बीते तीन दिनों में जबरदस्त सियासी उतार-चढ़ाव दिखे। इन तीन दिनों में बीजेपी सत्ता पर काबिज भी हुई और सत्ता से बेदखल भी हो गई। इन तीन दिनों में जो चेहरा सबसे ज्यदा चर्चा में रहा वो अजित पवार का है। अजित पवार के समर्थन से ही देवेंद्र फडणवीस दूसरी बार मुख्यमंत्री बने और उसी की वजह से ही फडणवीस की कुर्सी गई। तो आखिर उन तीन दिनों मे ऐसा क्या हुआ कि पवार पॉलिटिक्स के फेर में बीजेपी फंस गई? महाराष्ट्र की राजनीति में दो पवार ऐसे हैं जो इस वक्त पावर सेंट्रल हैं। एक ने बीजेपी का साथ दिया तो फडणवीस की सरकार बनी, दूसरे ने शिवसेना का साथ दिया तो उद्धव की सरकार बन गई।
एक ने डिप्टी सीएम पद से इस्तीफा दिया तो फडणवीस की सरकार गिर गई, दूसरे ने गठबंधन का धर्म निभाया तो उद्धव की ताजपोशी तय हो गई। इन सबके बीच महाराष्ट्र में पवार वर्सेज पवार की लड़ाई भी खूब दिखी। चाचा-भतीजे की तकरार सूर्खियों में भी खूब रही लेकिन जब मान-मनौव्वल के बाद अजित पवार ने डिप्टी सीएम के पद से इस्तीफा दे दिया तो सवाल फिर वही था कि पवार वर्सेज पवार की लड़ाई को कैसे खत्म किया जाए।
काफी कोशिशों के बाद मंगलवार की देर रात शरद पवार और अजित पवार की मुलाकात हुई। शरद पवार के सिल्वर ओक वाली घर पर दोनों मिले। यानी एक तरफ जब उद्धव की ताजपोशी की तैयारी चल रही थी वहीं दूसरी ओर अजित पवार के घर वापसी की भी तैयारी जारी थी। अजित पवार पूरे एपिसोड में विलेन बनकर सामने आए। जब बीजेपी को समर्थन दिया तो एनसीपी, कांग्रेस और शिवसेना नाराज हुई और जब डिप्टी सीएम पद से इस्तीफा दिया तो बीजेपी।
शनिवार की सुबह देवेंद्र फडणवीस ने सीएम पद की शपथ ली थी लेकिन मंगलवार की शाम से पहले ही उन्हें इस्तीफा देना पड़ा। तो फिर आखिर ऐसा क्या हुआ कि फडणवीस को ऐसी फजीहत झेलनी पड़ी? फडणवीस ने दो टूक लहजे में इस चूक की टोपी जूनियर पवार यानी अजित पवार के सर पहना दी। बीजेपी के साथ तीन दिन में ही अजित पवार आए और चले भी गए और फडणवीस देखते रह गए।
देवेंद्र फडणवीस की इस्तीफ़े वाली प्रेस कांफ्रेंस में जब उनसे एक पत्रकार ने पूछा कि क्या अजित पवार ने बीजेपी के साथ कोई गेम किया है, इसके जवाब में देवेंद्र फडणवीस ने कहा कि इसका जवाब अजित पवार से पूछिए। उधर शिवसेना के नेता संजय राउत ने ट्वीट करके बताया कि अजित पवार पार्टी में वापस लौट रहे हैं।
जनता जानती है ये बयान इतना आसान नहीं है। बीजेपी को ये समझने में इतनी देर क्यों लगी कि विधायक अजित पवार के साथ नहीं हैं। मंगलवार की सुबह सुप्रीम कोर्ट के फैसले ने अचानक कहानी बदल दी। इस फैसले के बाद अजित पवार अकेले पड़ गए। अजित पवार के पास एनसीपी के विधायकों से न बात करने का वक्त था न अपने पाले में लाने का। महाराष्ट्र के महा पोलिटिकल ड्रामे में पवार परिवार ने अपने-अपने पावर का खूब परिचय दिया।
इन दोनों ने ऐसे खेल खेले की फडणवीस सत्ता में आकर भी सत्ता से बेदखल हो गए। 23 नवंबर के शपथ ग्रहण के बाद पवार वर्सेज पवार की जंग परिवार तक सिमट गयी। भतीजे अजित पवार ने अपने कदम से चाचा को सीधा चैलेंज दिया लेकिन इस पूरे एपिसोड में अजित पवार सीधे बादशाह से जोकर बन गए हैं।
अजित पवार की घर वापसी हुई मगर वो डिप्टी सीएम की कुर्सी गंवा चुके हैं। पवार परिवार की पॉलिटिक्स में भी कद कमजोर पड़ा है। वहीं सुप्रिया सुले का गुट अब और मज़बूत होकर सामने आएगा। बेटे पार्थ की हार के बाद ये हार उनके लिए दूसरा धक्का है। हालांकि उन्हें मनाने वाले तो शुरु से उनके संपर्क में थे मगर अब उन्हें सत्ता में कैसी हिस्सेदारी मिलेगी कोई नहीं जानता। अजित पवार की मनोदशा का अंदाजा इसी बात से लगा सकते हैं कि वो बिलकुल चुप हैं। संविधान दिवस पर तो ट्वीट भी किया लेकिन इस्तीफ़े के बाद वो भी नहीं। उनकी घर वापसी की खबरें भी दूसरे नेताओं के जरिए आम हो रही थीं।