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मप्र में कमलनाथ के कौशल के आगे BJP बौनी पड़ी, अमित शाह अब किसे करेंगे क्लीन बोल्ड?

मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री कमलनाथ की राष्ट्रीय राजनीति में पहचान 'कम बोलने वाले और बड़ा काम करने वाले' नेता की रही है। राज्य की सियासत में यह नजर भी आया, जब विधानसभा के भीतर भाजपा के दो विधायकों ने कांग्रेस के विधेयक का समर्थन कर सबको चौंका दिया।

Reported by: IANS
Published on: July 25, 2019 19:12 IST
 Kamal Nath- India TV Hindi
Image Source : PTI Madhya Pradesh Chief Minister Kamal Nath along with two BJP MLAs Narayan Tripathi and Sharad Kaul

भोपाल: मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री कमलनाथ की राष्ट्रीय राजनीति में पहचान 'कम बोलने वाले और बड़ा काम करने वाले' नेता की रही है। राज्य की सियासत में यह नजर भी आया, जब विधानसभा के भीतर भाजपा के दो विधायकों ने कांग्रेस के विधेयक का समर्थन कर सबको चौंका दिया। राज्य की 7 माह पुरानी कमलनाथ सरकार के भविष्य को लेकर लगातार सवाल उठते रहे हैं, क्योंकि कांग्रेस के पास पूर्ण बहुमत नहीं है। यह सरकार बसपा, सपा और निर्दलीय विधायकों के समर्थन से चल रही है। सरकार के बाहरी समर्थन से चलने के कारण ही भाजपा की ओर से लगातार 'कमजोर सरकार' कहकर हमले किए जाते रहे हैं।

कर्नाटक के घटनाक्रम के बाद भाजपा के विधायक उत्साहित थे और उन्होंने सरकार को कभी भी गिरा देने का ऐलान तक कर दिया। नेता प्रतिपक्ष गोपाल भार्गव ने तो ऊपर के इशारे पर एक दिन भी सरकार के न चलने देने का दावा किया, मगर शाम होते तक उलटा हो गया, भाजपा के दो विधायकों ने खुले तौर पर कांग्रेस के विधेयक का समर्थन कर दिया। इसे कमलनाथ की राजनीतिक जीत के तौर पर देखा जा रहा है। विधानसभा के भीतर भाजपा के दो विधायकों द्वारा कांग्रेस के विधेयक को समर्थन देने का घटनाक्रम अचानक नहीं हुआ, बल्कि इस पर कांग्रेस लंबे समय से काम कर रही थी। बस कमलनाथ और भाजपा के विधायकों को मौके की तलाश थी।

राज्य सरकार और मुख्यमंत्री कमलनाथ ने बीते सात माह में विशेष मौकों पर कई बार यह संदेश देने की कोशिश की है कि उनकी सरकार को किसी तरह का खतरा नहीं है। विधानसभा में बजट पारित कराने का मामला हो या दीगर, कम से कम चार बार बहुमत साबित भी किया है।

कमलनाथ की बतौर मुख्यमंत्री सात माह की कार्यशैली पर गौर किया जाए तो पता चलता है कि उन्होंने अपने ही दल और समर्थन देने वाले दलों के विधायकों से लेकर विपक्ष के विधायकों की मांग को भी पूरा करने में हिचक नहीं दिखाई। यही कारण है कि, भाजपा की ओर से सीधे तौर पर कमलनाथ पर कम ही हमले किए गए, वहीं दूसरी ओर कमलनाथ सरकार ने उन सारे मामलों को खोलने की कोशिश की है, जिसमें भाजपा के बड़े नेताओं पर आंच आने की आशंका को नकारा नहीं जा सकता।

भाजपा बीते कुछ दिनों से कमलनाथ सरकार पर तबादला उद्योग चलाने का आरोप लगाती रही, संभावना थी कि विधानसभा सत्र में यह मसला गर्म रहेगा, मगर विधानसभा में भाजपा की ओर से इस मसले का जिक्र तक नहीं किया। इतना ही नहीं, किसान कर्जमाफी पर भी भाजपा कमजोर नजर आई। इसे कमलनाथ की राजनीतिक रणनीति की सफलता के तौर पर देखा जा रहा है। एक तरफ जहां भाजपा के हमले कमजोर पड़ रहे थे, विधानसभा में भाजपा का बिखराव नजर आ रहा था, उसी बीच एक विधेयक के जरिए कमलनाथ ने भाजपा की कमजोर कड़ी को उजागर कर दिया। भाजपा के नेता प्रतिपक्ष गोपाल भार्गव सहित अन्य नेता लोकतंत्र की हत्या करार दे रहे हैं तो सरकार के मंत्री पी.सी. शर्मा भाजपा के और भी विधायक उनके संपर्क में होने का दावा कर रहे हैं।

राजनीतिक विश्लेषक साजी थॉमस का कहना है कि राष्ट्रीय राजनीति में कमलनाथ की पहचान मैनेजमेंट के महारथी के तौर पर रही है। केंद्र की कांग्रेस के लिए संकट मोचक के तौर पर रहे हैं। राज्य के विपक्षी दल के नेता उनकी इस विशेषज्ञता से सीधे वाकिफ नहीं है, अपने साथी के साथ विरोधी के काम को महत्व देना उनकी खूबी है, वे कम बोलने वाले नेता हैं, इसके चलते कई बार विरोधी उनके कम बोलने को कमजोरी मान बैठते हैं, मगर विधानसभा में बुधवार को जो हुआ, उसने विरोधियों के हाथ से तोते उड़ा दिए।

उन्होंने कहा कि राज्य की सियासत में कमलनाथ ने अपने कौशल का पहली बार परिचय दिया है। आने वाले दिनों में राज्य की सियासत में उठापटक बढ़ने के साथ कमलनाथ को अपना राजनीतिक चातुर्य दिखाने की आगे भी जरूरत पड़ेगी, क्योंकि उन्होंने राज्य ही नहीं, भाजपा के हाईकमान से पंगा जो लिया है।

अपनी राजनीतिक चाल को सही ठहराते हुए मुख्यमंत्री कमलनाथ ने कहा भी है, "भाजपा पिछले छह माह से रोज कहती रही कि, हमारी सरकार अल्पमत की सरकार हे। आज जाने वाली है कल जाने वाली है, ऐसा वह रोज कहती थी। इस स्थिति में हमने सोच लिया कि, हम बहुमत सिद्ध कर देंगे ताकि दूध का दूध और पानी का पानी अलग हो जाए। बुधवार हुआ मतदान एक विधेयक पर मतदान नहीं है यह बहुमत सिद्ध का मतदान है।''

राज्य विधानसभा के गणित पर नजर दौड़ाएं तो पता चलता है कि 230 विधायकों वाली विधानसभा में कांग्रेस के पास 114 विधायक ही हैं। उसे निर्दलीय चार, बसपा के दो और सपा के एक विधायक का समर्थन हासिल है। वहीं भाजपा के पास 108 विधायक है और एक पद रिक्त है। बुधवार को कांग्रेस की ताकत उस समय और बढ़ गई, जब दंड विधि संशोधन विधेयक पर हुए मत विभाजन में विधेयक का 122 विधायकों ने समर्थन किया। समर्थन करने वालों में भाजपा के दो विधायक शामिल हैं।

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