नई दिल्ली: भाजपा का विजय रथ रोकने के लिए एक जुट हुए जनता दल के दो धुरंधर अब महागठबंधन के साथ ताल ठोक रहे हैं। किसी जमाने में एक दूसरे के धुर विरोधियों का एक साथ होना बिहार के कुछ तबके को रास नहीं आ रहा है। नीतीश का लालू से साथ होना उन्हें कितना फायदा दिलाएगा यह तो आने वाला वक्त ही बताएगा, लेकिन लालू महागठबंधन में एक अहम फैक्टर बनकर उभर रहे हैं।
नीतीश को लालू से फायदा-
नीतीश को लालू से सबसे बड़ा फायदा यह है कि लालू का कोर माई वोटर्स (यादव और मुसलमान) उन्हें एक बार फिर से सत्ता के करीब पहुंचाने में मदद कर सकता है। बिहार में पिछड़ा वर्ग भी काफी अच्छी खासी तादात में है, ऐसे में लालू इस तबके का भी ध्रुवीकरण कर उसे वोट बैंक में बदल सकते हैं। वहीं अगर महागठबंधन से मुकाबिल एनडीए के भाजपा से तुलना की जाए तो लालू की आरजेडी के पास भी बूथ लेवल तक काम करने वाले एक मजबूत संगठन है और यही संगठन मतदाताओं को घरों से निकालकर पोलिंथ बूथ तक पहुंचाने को प्रेरित कर सकता है।
नीतीश को लालू से नुकसान-
लालू का यादव प्रेम नीतीश को नुकसान दे सकता है। हो सकता है अति यादव प्रेम के कारण अति-पिछड़ा वर्ग समेत बिहार का अन्य मतदाता तबका किसी और विकल्प को पसंद करे। वहीं नीतीश जिस सुशासन का डंका बजाकर बिहार के मुख्यमंत्री बने थे...ऐसे में नीतीश की सुशासन पुरोधा की छवि को भी गहरा धक्का पहुंच सकता है। यानी जो वोटर लालू के ‘जंगलराज’ से खौफजदा था वो महागठबंधन से रुठ सकता है।
भाजपा का कोर वोटर-
- भूमिहार
- राजपूत
- ब्राह्मण
आरजेडी का कोर वोटर
- यादव
- मुसलमान
जदयू का कोर वोटर
- पासवान
- अति पिछड़ा वर्ग
- अति पिछड़ा मुसलमान
बिहार का जातिगत समीकरण- | |
जाति | आबादी |
ओबीसी/ ईबीसी | 51% (यादव-14%, कुर्मी-4%, ईबीसीएस-30%, कुश्वाहा-4%, कोरी-8%, तेली-3.2%) |
महादलित/दलित | 16% (दुसाध-5%, मुसहर- 2.8% |
मुस्लिम | 16.9% |
फॉरवर्ड कॉस्ट | 15% ( भूमिहार- 3%, ब्राह्मण-5%, राजपूत-6% |
आदिवासी | 1.3% |
अन्य | 0.4% (क्रिश्चियन, सिख, जैन) |