शुक्रवार की शाम पटना के10 सर्कुलर रोड पर बेहद गहमा गहमी थी। दिनभर लालू के ठिकानों पर सीबीआई के छापे पड़े और जब शाम को लालू प्रसाद रांची से अपने घर पहुंचे तो आरजेडी कार्यकर्ता नारेबाजी करने लगे। लालू तुनकमिज़ाजी किस्म के नेता हैं। अपने ही कार्यकर्ताओं को डांटना, उन्हें फटकारना उनकी आदत है। वो अपने भाषण के बीच किसी को चूं तक नहीं करने देते लेकिन शुक्रवार की शाम लालू बदले-बदले से नज़र आए। चारा घोटाले में गाड़ियों के काफिले के साथ जेल जाने वाले लालू का चेहरा उतरा हुआ था। भाषण के दौरान कार्यकर्ताओं ने कई बार नारेबाजी की। लालू के भाषण में खलल पड़ा लेकिन इसके बाद भी लालू ने आरजेडी कार्यकर्ताओं को नहीं टोका। संभव है कि उन्होंने ये फैसला कर लिया हो कि विपत्ति की इस घड़ी में कार्यकर्ताओं को अब किसी भी तरह नाराज़ करना ठीक नहीं। लालू का हिला हुआ आत्मविश्वास अब उन्हें बदलने पर मजबूर कर सकता है क्योंकि इस बार संकट बड़ा है और दुश्मन भी खरा है।
आम जनता लालू यादव को अब तक तीन वजहों से जानती थी, पहला- सोशल जस्टिस के सिपाही, दूसरा- बिहार के 15 साल के जंगल राज के अगुआ, तीसरा- चारा घोटाले के दोषी के तौर पर। सीबीआई के छापों के बाद लालू की चौथी पहचान बनी है, और वो इमेज है करप्शन के पोस्टर ब्वॉय की। लालू की यह चौथी इमेज उन्हें गरीबों के मसीहा वाली इमेज से बहुत दूर ले जाती है, क्योंकि गरीबों का मसीहा जंगलराज वाले बिहार में एक पल को फिट बैठ सकता था लेकिन दिनों दिन आगे बढ़ता बिहार करप्शन के पोस्टर ब्वॉय को न सिर्फ नकारता है बल्कि धिक्कारता भी है। यही बात लालू की आगे की राजनीति का सबसे बड़ा रोड़ा भी है। लालू प्रसाद यादव उस मोड़ पर खड़े हैं जहां उन्हें खुद से ज्यादा अपने बेटों का राजनीतिक भविष्य उज्जवल करना है। बीजेपी का विरोध और नीतीश कुमार का साथ बिहार में लालू का सबसे बड़ा प्लस प्वाइंट है। इन दो विशेषताओं ने लालू को सत्ता तक फिर से पहुंचाया। हालांकि इस बार सत्ता बेटों के जरिए मिली है। इसलिए बेटों का भविष्य ही लालू का भविष्य है। लेकिन अगर मौजूदा घटनाक्रम पर नजर डालें तो अगर आरजेडी की जड़ पर ही मठ्ठा पड़ जाएगा तो फिर आगे का सफर कर पाना मुश्किल हो जाएगा।
लालू यादव महागठबंधन की सबसे बुलंद आवाज़ हैं। हालांकि महागठबंधन का अस्तित्व में आना अब तक संदिग्ध बना हुआ है, फिर भी लालू मोदी विरोधी राजनीति के प्रतीक पुरूष तो हैं ही। लालू यादव पर करप्शन के ताजे आरोप उन्हें महागठबंधन की राजनीति के अंधेरे कोने में पटक सकते हैं। उनकी राजनीतिक पहुंच में कमी आ सकती है। जैसे-जैसे सीबीआई का केस आगे बढ़ेगा वैसे-वैसे लालू की राजनीतिक मीटर की सुई भी खिसकेगी। दिखाने के लिए ही सही लेकिन फिलहाल साफ-सुथरी राजनीति का दौर है, साफ-सुथरी राजनीति के पैरोकार नीतीश कुमार भी हैं। बिहार में लालू की बैसाखी नीतीश कुमार ही हैं। नीतीश ही लालू की पसंद और मजबूरी भी हैं। केस की कालिख और गहरी होगी तो नीतीश करप्शन से दागी हुए लालू के साए के साथ भी जाने से डरेंगे। नीतीश से दूरी लालू को एक बार फिर राजनीति के हाशिए पर खड़ी कर सकती है।
बहरहाल लालू प्रसाद यादव आत्ममंथन के दौर में हैं। एक बार फिर उनकी साख का सवाल पैदा हो गया है। चारा घोटाले ने लालू को सत्ता से पंद्रह साल तक दूर रखा। गलतियों से सीखकर आगे बढ़े तो नीतीश कुमार के जरिए फिर से सत्ता में लौटे। एक बार फिर करप्शन के आरोपों ने लालू को घेरा है, इस बार लालू की राजनीति का अज्ञातवास शुरू होगा या फिर लालू पाक साफ होकर निकलेंगे, अब इसपर सबकी निगाहें होंगी।
(ब्लॉग लेखक संजय बिष्ट इंडिया टीवी न्यूज चैनल में प्रोड्यूसर हैं)